क्षेत्रीय न्यूज चैनल 'सुदर्शन न्यूज' द्वारा एक बेहद घिनौना 'प्रोमोशनल वीडियो' पोस्ट किया गया. जिसका सभी तरफ विरोध हो रहा है. तथ्यात्मक रूप से गलत इस वीडियो में सिविल सेवा में जाने की कोशिश कर रहे मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवारों और संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) पर भी निशाना साधा गया है. इस गलत जानकारी और उकसावे का उद्देश्य समाज का माहौल खराब करना है.
ये वीडियो UPSC पर झूठ से भरा हमला है. प्रशासनिक और सैन्य अफसरों के अच्छे चुनाव के लिए हम सभी देशवासी UPSC की ओर देखते हैं और विश्वास करते हैं.
UPSC की विश्वनीयता पर आज तक कोई दाग नहीं लगा है. हमारे गणतंत्र के संस्थापक, हर राजनीतिक पार्टी के प्रधानमंत्रियों ने UPSC को एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संगठन के रूप में विकसित करने के लिए अपना समय, अपने प्रयास दिए हैं.
UPSC का बेदाग रिकॉर्ड कितना दुर्लभ है इसे समझने के आप राज्यों के लोक सेवा आयोगों और भारत जैसे दूसरे देशों के ऐसे ही संगठनों में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से तुलना कर सकते हैं.
यह वीडियो बेबुनियाद आरोप लगाता है कि आवेदक के धर्म के आधार पर UPSC “भेदभाव’ करता है. यह सरासर गलत है, और एक प्रमुख संवैधानिक बॉडी को कमजोर करने की कोशिश है.
वीडियो भारतीयों को बांटने की कोशिश, हमें इसका विरोध करना चाहिए
यह वीडियो ऐसे समय में भारतीयों को बांटने की कोशिश करता है, जब हम स्वास्थ्य संकट और नतीजतन आर्थिक संकट का भी सामना कर रहे हैं, ऐसे में ये चीज इसे और भी गंभीर बना देती है. मेरी समझ यह है कि भारतीय कानून में हेट स्पीच पर प्रावधान है. दिल्ली हाईकोर्ट ने चैनल के इस पूरे एपिसोड के प्रसारण पर रोक लगा दी है और मुझे उम्मीद है कि अपराधियों को कड़े कानून का सामना करना पड़ेगा.
लेकिन और भी जरूरी यह है कि देश के लोग एक आवाज में घृणा फैलाने वाले संदेशों का विरोध करें
मैं अपने राज्य केरल से एक उम्मीद भरा वाकया आपके सामने रखना चाहता हूं.
मुस्लिम समुदाय से आने वाले मेरे एक सहयोगी राज्य में डीएम के तौर पर बेहद संवेदनशील मुद्दे को देख रहे थे. इस मुद्दे ने राष्ट्रीय स्तर पर सबका ध्यान खींचा था. कुछ नफरत फैलाने वालों ने धार्मिक आधार पर उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाए. डीएम के समर्थन में और नफरत फैलानों वालों के खिलाफ राज्यभर से आवाजें उठने लगीं. बीते कई सालों में जिले में आया वह सबसे अच्छा डीएम था और 2018 में केरल में आई बाढ़ के दौरान भी उसने अगुवाई की थी.
केरल में जनता की आवाज से अपराधी पीछे हट गए और फिर कभी भी रास्ते में नहीं आए. आइए राष्ट्रीय स्तर पर भी हमें कुछ ऐसा ही करना चाहिए.
सिविल सर्विस में मुस्लिमों को बेहद कम प्रतिनिधित्व स्ट्रक्चरल खामियों की ओर करता है इशारा
वीडियो में कही गई बातें तथ्यात्मक रूप से गलत हैं. सिविल सर्विस में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के अनुपात से बेहद कम है. मुस्लिम समुदाय से सफल होने वाले उम्मीदवारों का अनुपात बीते कुछ सालों थोड़ा बदला है, लेकिन यह लगातार 4-5% तक रहा है.
सेवा के प्रतिष्ठित पद आईएएस, आईएफएस और आईपीएस में यह अनुपात और भी ज्यादा कम है.
भारत की जनसंख्या में मुस्लिमों की आबादी 14% है. ये आंकड़े मुस्लिमों की शिक्षा और उस तक पहुंच स्ट्रक्चरल खामियों की ओर इशारा करते है.
लोकतांत्रिक राजनीति में स्वस्थ्य समाज के लिए प्रतिनिधित्व 'जरूरी है, काफी नहीं'. जबकि हमें तो ये सवाल करना चाहिए कि कम मुसलमान सिविल सेवा में सफल क्यों होते हैं और उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए.
सिविल सेवा के अफसरों के लिए राष्ट्रीय हित सबसे पहले
वीडियो में सिविल सेवा के अफसरों की ईमानदारी और निष्ठा पर सवाल उठाए गए हैं. इनमें से कई अफसर अपने घरों और प्रियजनों से दूर हैं और देशसेवा में लगे हुए हैं. मेरा एक करीबी मुस्लिम दोस्त स्टेट एजुकेशन डायरेक्टर है. जो 24x7 स्टूडेंट्स के लिए ऑनलाइन क्लासेस को सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है.
सिविल सेवा के अफसरों को देश हित को किसी भी चीज से ऊपर रखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
वे दो साल के कठोर ट्रेनिंग से गुजरते हैं और राज्य में बड़ी जिम्मेदारियां लेने से पहले लोक सेवा के स्वभाव के साथ तैयार होते हैं. मुझे यकीन है कि लाखों भारतीयों को मुस्लिम समुदाय से आने वाले डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक पेशेवराना और हमदर्दी भरे प्रशासन का अनुभव खुद हुआ होगा.
उदाहरण बहुत हैं, लेकिन एक बहुत मार्मिक है. बिहार में एक डीएम ने बिहार के ही दो सीआरपीएफ जवानों की बेटियों को गोद लिया था. ये जवान 2019 में पुलवामा हमले में शहीद हुए थे. डीएम ने उनकी बेटियों की शिक्षा के लिए आर्थिक मदद भी की.
कुशलता का एक और उदाहरण है. एक अफसर राज्य प्रशासन के लिए इतना जरूरी हो गया था कि उसकी दक्षता के आधार पर एक साल की मिड-करिअर ट्रेनिंग के खत्म होने के दो महीने पहले ही उसकी पोस्टिंग के आदेश दे दिए थे.
मैं उम्मीद करता हूं कि कानून अपना काम करे, और अपराधियों को सजा मिले. लेकिन देश के लोगों को नफरत फैलाने वालों और समाज को बांटने वालों को अस्वीकार करना चाहिए.
(लेखक केरल कैडर से आईएएस अधिकारी हैं. वह प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से इकनॉमिक और पब्लिक पॉलिसी में ग्रेजुएट हैं. उनका टि्वटर हैंडल gokul_gr हैं. ये एक एडिटोरियल लेख है, लेखक के निजी विचार हैं. क्विंट न ही इसका समर्थन करता है और न ही जिम्मेदार है.)
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