बीजेपी का नया अवतार ‘लोटस लिओपॉर्ड’
प्रभु चावला ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि डिवाइड एंड रूल की फिलॉसोफी अब यूनाइट एंड रूल में बदल रही है. महाराष्ट्र में यह दिखा है. हालांकि यह 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव के लिए छोटे दलों का शिकार करने जैसा है. कांग्रेस मुक्त भारत जैसे नारे के विफल होने के बाद ‘लोटस लिओपॉर्ड’ अब छोटे दलों का शिकार कर रही है.
प्रभु चावला लिखते हैं कि न तो सियासी रूप में और न ही अंकगणितीय आवश्यकता के तौर पर एनसीपी को तोड़ने और जोड़ने की कोई जरूरत थी. ऐसा लगता है जैसे क्षेत्रीय दलों को तोड़कर मजबूत होने की गरज से ऐसा किया गया है.
इससे ऐसा लगता है जैसे बीजेपी को अपने दम पर महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव में जीत का भरोसा ना हो. हालांकि, एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के बावजूद चुनाव मैदान में यह गठबंधन चुनाव जीतने का भरोसा नहीं रखता.
इसकी वजह है कि शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार्यता नहीं मिल सकी है. महाराष्ट्र 48 में से 41 सीटें जीतने वाले एनडीए के लिए महाराष्ट्र सिरदर्द बना हुआ है. 2024 में सत्ता में वापसी के लिए बेहतर प्रदर्शन का भारी दबाव है.
चावला लिखते हैं कि बीजेपी का करीब 10 राज्यों में एकतरफा जीत का प्रदर्शन रहा था. इनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात जैसे प्रदेश शामिल हैं.
लेकिन, कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है. कांग्रेस कई राज्यों में बीजेपी से या फिर क्षेत्रीय दलों से सीधे संघर्ष कर रही है.
कर्नाटक में क्षेत्रीय दल के कमजोर प्रदर्शन ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया. इसे देखते हुए अब बीजेपी क्षेत्रीय दल का ही शिकार करने की रणनीति पर चल पड़ी है.
महाराष्ट्र में विचार से समझौता!
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि महाराष्ट्र में बीते हफ्ते राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो हिस्से हुए.
एक हिस्से के सरदार बने गये राज्य के उपमुख्यमंत्री. अजित पवार ने कहा कि उनको चाचा से बेवफाई इसलिए करनी पड़ी कि उनका ईमान उनको बीजेपी-शिवसेना सरकार में मजबूर करके खींच लाया.
ऐसा लगा कि अचानक उन्हें पता चला कि देश के असली राजनेता सिर्फ नरेंद्र मोदी हैं. चाचा के 83 साल होने पर भी उन्हें तकलीफ हुई. नयी पीढ़ी को मौका मिलना चाहिए. अजित ने यह भी कहा कि वे शरद पवार के बेटे होते, भतीजे नहीं तो उनको यह कदम शायद उठाने की जरूरत नहीं पड़ती.
तवलीन सिंह लिखती हैं कि...
ऐसा नहीं दिखा कि अजित पवार के फैसले में महाराष्ट्र के भविष्य की चिंता कहीं दिखी. उस तरफ भी राजनीतिक आदर्श नहीं दिखा जहां वे गये हैं. हाल में प्रधानमंत्री ने 70 करोड़ के सिंचाई घोटाले का जिक्र किया था जिसका साया अजित पवार के सिर पर सालों से मंडरा रहा है.
सवाल है कि ऐसे व्यक्ति का क्या प्रधानमंत्री स्वागत करते हैं?
बीते दिनों देवेंद्र फडणवीस ने स्वीकार किया था कि वे भूल नहीं पाए कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने उनको छोड़ कर बहुत बड़ा धोखा किया था.
लेखिका याद दिलाती हैं कि...
बीजेपी के बारे में कहा जाता है था कि वह बाकी राजनीतिक दलों से अलग है और वह अपनी विचारधारा के साथ कभी समझौता नहीं करती है.
मध्यप्रदेश और गोवा में यह विचारधारा कहां थी? परिवारवादी राजनीतिक दलों से नफरत कहां चली गयी?
ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद जैसे लोगों की राजनीति पूरी तरह परिवारवाद से जुड़ी रही है. ‘न खाएंगे न खाने देंगे’ के नारे क्या प्रधानमंत्री भूल गये?
पंजाब में नजदीक आएंगे अकाली-बीजेपी?
आदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल यूरोप में दो सप्ताह की छुट्टियां बितकार लौटे हैं और जिलास्तरीय नेताओं की बैठक की है.
छुट्टियों पर रहते ऐसी अटकलें सुनकर वे चकित थे कि अकाली दल और बीजेपी दोबारा एक हो सकती हैं.
शिरोमणि अकाली दल 2017 और 2022 में लगातार दो विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं और उसकी हालत बेहद पतली है. उसके केवल तीन विधायक हैं.
जालंधर लोकसभा सीट पर हुए चुनाव में अकाली दल तीसरे नंबर पर रही थी. अकाली दल और बीजेपी को मिलाकर 33.04 प्रतिशत वोट मिले थे.
अकेले अकाली दल को 17.85 प्रतिशत वोट मिले थे. आम आदमी पार्टी ने 34.05 फीसदी वोट लाकर जीत हासिल की थी. कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी.
आदिति लिखती हैं कि पंजाब में बीजेपी की वृद्धि और विकास तथा उसकी प्रतिष्ठा को शिरोमणि अकाली दल के साथ जुड़ाव के चलते झटका लगा है. पंजाब और बाहर भी बीजेपी का आधार इस वजह से सिमट रहा है.
ऑस्ट्रेलिया में करीब दो लाख सिख हैं और उसकी आबादी देश की आबादी का 0.8 फीसदी है. पंजाबी ऑस्ट्रेलिया की सबसे तेज बढ़ती भाषा है. लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल के आरंभ में ऑस्ट्रेलिया गये तो वहां हुए आयोजन में कुल 6 सिख मौजूद दिखे.
बीजेपी नेता के हवाले से आदिति लिखती हैं कि सिखों की स्मृति दीर्घकालिक होती है. अब तक उन्होंने जनरल डायर को माफ नहीं किया है. 2020-21 में प्रदर्शनकारी किसानों का दमन भी वे नहीं भूले हैं.
बीजेपी के लिए मुश्किल हालात हैं और इसलिए अकाली दल उनकी आवश्यकता है. सुनील जाखड़ को पंजाब का अध्यक्ष बनाए जाने से बीजेपी के सिख नेताओं में नाराजगी है. जाखड़ हिंदू हैं.
चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती
टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि चीन की अर्थव्यवस्था ऊर्जा हीनता की अजीब तस्वीर पेश कर रही है. दुनिया जहां मुद्रास्फीति से जूझ रही है वहीं चीन अपस्फीति का शिकार है. उत्पादक मूल्य में अपस्फीति है और उपभोक्ता कीमतों पर आधारित महंगाई कम है.
भारत जैसे देशों में शेयर बाजार में तेजी आ रही है. वहीं, शंघाई कंपोजिट इंडेक्स 2009 की तुलना में भी नीचे आ चुका है. ऋण वृद्धि में गिरावट आ रही है और डॉलर के मुकाबले युआन कमजोर हो रहा है.
नाइनन लिखते हैं कि...
अनुमान था कि गत कैलेंडर वर्ष में वृद्धि दर 5.5 फीसदी रहेगी, लेकिन वह केवल 3 फीसदी रह गयी. कोविड महामारी की शुरुआत वाली तिमाही को छोड़ दें तो एक दशक में पहली बार निजी निवेश में कमी आयी है.
16 से 24 वर्ष की आयु के युवाओं की बेरोजगारी बढ़कर 20 फीसदी हो गयी है.
चीन की कामकाजी आयु वाली आबादी में भी कमी आ रही है.
हालांकि, यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि चीन की विकास गाथा के पतन की कहानी बीते दो दशकों में कई बार कही गयी है. इस बार भी उसकी वापसी की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है.
2023 के लिए 5 फीसदी का आधिकारिक वृद्धि लक्ष्य अगर हासिल हुआ तो यह वर्ष की वैश्विक वृद्धि का दो गुना होगा.
UCC की नहीं सुधार की जरूरत
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि भारत के संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांतों पर पूरा अध्याय है. अध्याय चार में 18 अनुच्छेदों में अनुच्छेद 44 भी एक है.
समानता और भेदभाव दूर करने की दृष्टि से अनुच्छेद 38 (2) में आय की असमानता को कम करने जैसे अहम विषय शुमार किए गये हैं.
सामाजिक और आर्थिक न्याय की दृष्टि से अनुच्छेद 39 है. अनुच्छेद 43 राज्य को जीविका के साधन सुनिश्चित करने का निर्देश देता है. लेकिन, अफसोस इन विषयों पर चर्चा नहीं होती.
RSS-BJP के एजेंडे और सर्वोच्च न्यायालय की कुछ टिप्पणियों की बदौलत अकेले अनुच्छेद 44 ने ही पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर कब्जा कर लिया है.
चिदंबरम अनुच्छेद 44 की भाषा का जिक्र करते हैं, “राज्य के संपूर्ण भारतीय क्षेत्र के नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा”. चिदंबरम लिखते हैं कि
‘एकसमान’ को ‘आम’ नहीं समझा जा सकता, न ही ‘सुनिश्चित करने का प्रयास’ को ‘सुनिश्चित करना’ समझा जा सकता है.
लेखक लिखते हैं कि समान नागरिक संहिता (UCC) पर्सनल लॉ का संक्षिप्त रूप है. इसमें चार विषयों से संबंधित कानून हैं: विवाह और तलाक, उत्तराधिकार और विरासत, अल्पसंख्यक और संरक्षकत्व तथा दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण.
लगातार सुधारों की चर्चा करते हुए लेखक ने बताया है कि जनजातीय लोगों के पर्सनल लॉ से जब हम रू-ब-रू हुए तो हमें अलग तरह से सोचना पड़ा. असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्र के लिए संविधान की छठी अनुसूची जोड़ी गयी.
21वें विधि आयोग ने सलाह दी थी कि “विभेदकारी कानूनों को सुधारने की जरूरत है न कि यूसीसी लाने की. इस स्तर पर न इसकी जरूरत है और न ही यह वांछनीय है...”
लेखक का मानना है कि माननीय प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे को दो हिस्सों में बांट दिया है- यूसीसी पर आप सहमत हैं या असहमत.
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