विपक्ष के लिए दिल्ली दूर
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि अमेरिका दौरे के बाद नरेंद्र मोदी सीधे भोपाल पहुंचे. विपक्ष पर हमला बोला जो पटना में बैठक कर चुका है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि तीसरी बाद पीएम बनने के बाद देश की विकास यात्रा और आगे बढ़ने वाली है. वहीं, अब तक विपक्ष मोदी को हटाने की असली वजह और वास्तविक मुद्दा सामने नहीं रख पाया है. लेखिका ने बताया है कि 2019 में मोदी की जीत सिर्फ इसलिए नहीं हुई थी कि वे हिन्दू हृदय सम्राट बन चुके थे बल्कि आम लोगों ने महसूस किया था कि गांवों में बदलाव आया है.
तवलीन सिंह लिखती हैं कि जब मोदी परिवारवाद का मुद्दा उठाते हैं तो तकरीबन हर विपक्षी राजनेता को चोट पहुंचती है. विपक्ष की तरफ से असली चुनौती तब आएगी जब इकट्ठा होने के अलावा उनकी तरफ से कोई ऐसी रणनीति दिखने लगेगी जो मतदाता देख जान जाएं कि वास्तव में देश ज्यादा विकसित होने वाला है मोदी को हराने के बाद. अफसोस कि विपक्ष की तरफ से न आर्थिक सपना देखने को मिलता है और न कोई नयी राजनीतिक सोच.
भारत के मतदाताओं को बहुत अच्छा लगता है जब देश के प्रधानमंत्री का सम्मान होते दिखता है दुनिया के बड़े राजनेताओं के द्वारा. राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा से असली राजनेता की छवि जरूर बनायी है लेकिन उसके बाद उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा लगता है.
कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत के पीछे रेवड़ियों की लंबी फेहरिस्त वजह है. बीजेपी के शासन में भ्रष्टाचार भी इसकी वजह है. अगर कांग्रेस मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी जीत हासिल करती है तो वह अवश्य बीजेपी के लिए मुश्किल बनती दिखेगी, लेकिन अभी दिल्ली दूर है.
स्टार्टअप की दुनिया में खराब नाम बना बैजूस
टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि भारत में स्टार्ट अप की दुनिया में तेजी से विकिसित होने वाला बैजूस खराब विज्ञापन बनकर पेश हुआ है. 80 हजार स्टार्ट अप में से 70 हजार के करीब असफल साबित होने वाली हैं जबकि 100 स्टार्ट अप ने यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल किया है. उनका मूल्यांकन 100 करोड़ डॉलर से ऊपर जा पहुंचा है. उतार-चढ़ाव और विवादों के बीच बैजूस का पतन भी हो सकता है, वह बच भी सकता है.
22 अरब डॉलर के मूल्यांकन के अलावा बिक्री के आक्रामक तौर-तरीके, खराब कार्य संस्कृति, अंकेक्षण के मामलों में बुरा बर्ताव जैसी बातों के लिए बैजूस चर्चा में रहा है.
मार्च 2021 बैजूस ने 4,588 करोड़ रुपये का घाटा दर्शाया जो उसके राजस्व से दोगुना था. मार्च 2022 के नतीजे अब तक सामने नहीं आए हैं क्योंकि अंकेक्षक छोड़कर जा चुका है और गैर प्रवर्तक निदेशक कंपनी भी छोड़ गये हैं. इस बीच कंपनी ने हजारों कर्मचारियों को निकाल दिया है. एक निवेशक ने तो अपना 40 फीसदी निवेश कम कर दिया है, जबकि एक अन्य ने अपने बहीखातों में कंपनी का मूल्यांकन 75 फीसदी कम कर दिया है. कर्जदाताओं के खिलाफ कंपनी अदालत में गयी है. कई ऐसी स्टार्टअप जिनका नाम घर-घर में सुनाई देता है.
अब घाटे में चल रही हैं. नायिका घाटे में है जबकि पेटीएम मुहाने पर है. ओयो को उम्मीद है कि वह एक या दो साल में घाटे से उबर जाएगी. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि अधिकांश स्टार्ट अप बदले हुए संदर्भ में पनपना सीख जाती हैं. उनके बिना अर्थव्यवस्था इतनी जीवंत नहीं रह जाएगी.
फ्रॉस्ट, नेहरू, मोदी और कविता संग्रह
करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि हाल में संपन्न अमेरिका दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविताओं का संग्रह भेंट किया. फ्रॉस्ट नेहरू के पसंदीदा कवि थे. फ्रॉस्ट चार बार पुलित्जर पाने वाले अपने समय के इकलौते कवि थे. लिहाजा उनकी कविताओं का पहला संस्करण भेंट किया जाना बिल्कुल सटीक है. लेकिन, एक उलझन भी है. पंडित जवाहर लाल नेहरू के पसंदीदा कवि जरूर थे रॉबर्ट फ्रॉस्ट, लेकिन नरेंद्र मोदी के पसंदीदा पूर्व प्रधानमंत्री नहीं रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू. क्या इस बात से अनजान रहे होंगे जो बाइडन या फिर उपहार के लिए इस पुस्तक को चुनने वाली उनकी टीम के सहयोगी?
लेखक करन थापर को अपने 21वें जन्म दिन की याद आती है जब वे कैम्ब्रिज में पढ़ते थे. डाफने और उसके ब्वॉय फ्रेंड हम्फ्री ने हरे और लाल स्ट्रिप वाली टाई भेंट की. बिना इस्तेमाल किए उसे मोड़कर रख दिया. 8 महीने बाद हम्फ्री का जन्म दिन आता है. लेखक बताते हैं कि भूल से उन्होंने वही टाई उन्हें वापस गिफ्ट कर दिया. लेखक बताते हैं कि गिफ्ट को अनपैक करते हुए हम्फ्री का चेहरा वे कभी नहीं भूल सकते.
उसने मुझे वही टाई दी! हम्फ्री हंसा. मैं शर्मा गया. लेखक पूछते हैं कि बाइडन की किताब और मेरी टाई के बीच वही बेचैन करने वाला भाव नज़र नहीं आता?
दोनों की तुलना को आप असंगत मान सकते हैं. बाइडन का उपहार उतना परेशान करने वाला नहीं हो सकता है जितना स्वयं लेखक का उपहार था. लेखक यह जानना चाहते हैं कि बाइडन के उस गिफ्ट के बारे में मोदी क्या सोचते हैं.
लोकतंत्र के आकांक्षी की चाहत
रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लोकतंत्र के आकांक्षी के तौर पर 2009 में लिखे अपने एक लेख का जिक्र किया है. इसमें उन्होंने चार इच्छाओं को रखा था- वंशवाद से मुक्त कांग्रेस, आरएसएस और हिन्दू राष्ट्र के विचारों से मुक्त बीजेपी, एकीकृत और सुधारवादी वामपंथ और बढ़ते मध्यवर्ग की आकांक्षाओं के अनुरूप एक नयी पार्टी का उदय. डेढ़ दशक बाद अब लेखक उस लोकतंत्र के आकांक्षी इच्छाओं की समीक्षा करते हैं. कांग्रेस वंशवाद से मुक्त होती दिखी है जब मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. लेकिन, वे कांग्रेस अध्यक्ष तभी बन पाते हैं जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी को देश का अगला पीएम बनाने की इच्छा रखते हैं.
रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि बीजेपी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिन्दुत्व हावी है. बीजेपी के पास एक भी मुस्लिम सांसद तक नहीं हैं. 1998 से 2004 के दौरान एनडीए के शासनकाल में सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों पर हिन्दुत्व का असर कम था. तब व्यक्ति पूजा नहीं थी.
आज स्थिति उलट है. नये संसद भवन के उद्घाटन के अवसर पर भी कहीं कैबिनेट नज़र नहीं आया. वामपंथ में कोई बदलाव नहीं हुआ है. नक्सली अब भी हिंसा कर रहे हैं. चुनावी लोकतंत्र में शामिल होने वाले कम्युनिस्टों के नजरिए में भी कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं दिखता. मध्यमवर्ग की आकांक्षा के रूप में आम आदमी पार्टी जरूर सामने आयी है लेकिन उन्होंने भी अपने व्यक्तित्व के गिर्द पार्टी को खड़ा किया है.
गुहा कहते हैं कि नरसिंहाराव, अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ मनमोहन सिंह की तिकड़ी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरेंद्र मोदी की तिकड़ी से अधिक सफलत पीएम के रूप में याद किए जाते रहेंगे. इसकी वजह यह है कि पहली तिकड़ी गठबंधन सरकारों के मुखिया थे जबकि बाद की तिकड़ी एक दलीय शासन के प्रतीक हैं. लेखक को आज भी गठबंधन की सरकार बेहतर नज़र आती है.
मोदी-मस्क में परवान चढ़ेगी मोहब्बत!
शोभा डे ने एशियन एज में लिखा है कि बकरीद और आषाढ़ी एकादशी के बीच देश मॉनसून का मजा ले रहा है. बिरयानी ऑर्डर किए जा रहे हैं. टाइटन ट्रैजेडी भी सामने है. ढाई-ढाई लाख डॉलर खर्च कर जान गंवाने की फितरत! बराक ओबामा से भी पूछने का समय है कि भारत के मामले में टांग क्यों अड़ा रहे हैं? वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्टर सबरीना सिद्दीकी ने प्रेस कान्फ्रेन्स के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री से उकसावे वाला सवाल पूछ डाला.
अपने देश में मोदीजी पत्रकारों से बात नहीं करते. विदेशी धरती पर मौन व्रत तोड़ देते हैं. सिद्दीकी ने जब ट्रिकी सवाल पूछे तो वह ट्रोल हो गयीं. हमारे पीएम ने भी जवाब दिया- “लोकतंत्र का डीएनए हमारे खून में हैं. जाति, नस्ल, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता.”
अमेरिका का विदेशी विभाग सिद्दीकी के बचाव में आया. उन्हें ट्रोल किए जाने को लेकर चिंता जताई. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी बयान जारी किया और सिद्दीकी की निष्पक्ष रिपोर्टिंग की तारीफ की. खैर, हमारे प्रधानमंत्री की बड़ी प्राथमिकता क्या रही. सात समंदर पार जाकर उन्होंने बाइडन से हाथ मिलाए. बाइडन ने नरेंद्र मोदी को ‘बॉस’ वाला ट्रीटमेंट दिया या नहीं. मोदी-बाइडन का जादू शेयर बाजारों पर भी दिखा.
भारत-अमेरिका में नये तरीके से अफेयर शुरू हुआ लगता है. मस्क और मोदी को हाथ मिलाते देखना सुखद लगा. रूस में बगावत की बात तो रह ही गयी. जनरल आर्मागेडॉन गिरफ्तार कर लिए गये हैं. येवगेनी प्रिगदोझेन को लोग भूल जाएंगे. बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको को याद किया जाता रहेगा. बेशकीमती हस्तक्षेप.
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