चांद पर कदम, कामयाबी पर सियासत
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि 23 अगस्त को वह लगातार टीवी से चिपकी रहीं. जब विक्रम लैंडर चांद पर पूरी सफलता और शान से तरा तो इतना गर्व हुआ कि खुशी के आंसू निकल पड़े. पिछली बार जब हम चांद पर नहीं पहुंच पाए थे तो कई विदेशी पत्रकारों ने भारत का मजाक उड़ाया था. इस बार विदेशी समाचर चैनलों पर देखा कि अपने देश की कूब तारीफ हो रही है.
हमारे वैज्ञानिकों ने वास्तव में कमाल किया है सो जितनी तारीफ उनकी की जाए, कम होगी. मगर, श्रेय प्रधानमंत्री को भी जाता है. उन्होंने मंत्र दिया है- वन अर्थ, वन फैमिली, वन प्लानेट. अच्छा मंत्र है लेकिन यह भी याद रखने की जरूरत है कि भारत की गरीबी और अशिक्षा को सिर्फ हम मिटा सकते हैं. कोई और सामने आने वाला नहीं है.
तवलीन सिंह ने ध्यान दिलाया कि अंतरिक्ष में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के अगले दिन हिमाचल से बड़ी-बड़ी इमारतों के गिरने की तस्वीरें आईं. हमारे वैज्ञानिक पहाड़ी शहरों को भी बचा सकते हैं. समस्या यह है कि राजनेताओं ने कभी उनकी सलाह ही नहीं ली. गंगा एक्शन प्लान और यमुना एक्शन प्लान तैयार करने में सलाह ली गयी तो इन योजनाओं पर अमल के वक्त विशेषज्ञों को भुला दिया गया. जिस श्रेष्ठता को हमने देखा है अंतरिक्ष के क्षेत्र में, वह शायद न दिखता अगर इसमें राजनेताओँ का हस्तक्षेप होता.
चांद पर पहुंचने के अगले दिन से राजनीति का शर्मनाक खेल शुरू हो गया था. कांग्रेस और बीजेपी दोनों चांद पर पहुंचने का श्रेय नेहरू-इंदिरा और नरेंद्र मोदी को देने के नाम पर भिड़ गये.
अंतरिक्ष में मिली सफलता से यही सीख मिलती है कि हम राजनेताओं और राजनीति को इन क्षेत्रों से जितना बाहर रखेंगे उतनी ही जल्दी विकसित होगा भारत.
I.N.D.I.A को मोदी सरकार की आलोचना से ऊपर उठना होगा
टीएन नाइनन ने लिखा है कि जिन विपक्षी दलों ने इंडिया (इंडियन नेशनल डेलवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) का गठन किया है उनकी तीसरी बैठक निकट है. अगर वे सावधान न रहें तो 1971 की कहानी दोहराई जाएगी. उस वक्त भी एक विपक्षी गठबंधन एकजुट हुआ ता और उसने एक मजबूत प्रधानमंत्री को हराने की कोशिश की थी. उस वक्त नारा था- इंदिरा हटाओ. इंदिरा गांधी ने उसके मुकाबले में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था. वर्तमान विपक्षी दल मोदी हटाओ कहते हुए एकजुट हुए हैं जबकि नरेंद्र मोदी अमृत काल की बात कर रहे हैं जिसे बीते वर्षों के गरीबी हटाओ के नारे का आकांक्षी समकक्ष माना जा सकता है.
नाइनन ने लिखा है कि प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत लोकप्रियता बहुत ऊंचे स्तर की है. अगर विपक्ष जीत की उम्मीद कर रहा है तो नए गठजोड़ को केवल सरकार की आलोचना से आगे बढ़ना होगा और एक बेहतर विकल्प पेश करना होगा.
विपक्ष के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जो मोदी के मुकाबले खड़ा दिख सके. यही कारण है कि बीजेपी ने विधानसभा चुनावों के मुकाबले लोकसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन किया है. विपक्षी गठबंधन इस बारे में विस्तृत योजना पेश कर सकता है कि वह जीत कर क्या कुछ करेगा. वह कई नि:शुल्क चीजों की घोषणा कर सकता है जैसा कांग्रेस ने हाल में कर्नाटक में किया. आम आदमी पार्टी भी ऐसा करती रही है.
नेहरू-एल्विन को बदनाम करने की कोशिश
रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में लिखा है कि मणिपुर में हिंसा भड़कने के बाद सोशल मीडिया पर एक खबर फैली जिस बारे में लगातार जानने की कोशिशें होती रहीं. वह खबर थी, “नेहरू ने क्रिश्चियन मिशनरी वेरियर एल्विन के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे. इसके मुताबिक हिन्दू साधुओं को नगालैंड में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था.” दावा यह भी किया गया कि नेहरू के शासनकाल में ही नगालैंड ईसाई बहुल हुआ. लेखक ने ‘सैवेजिंग द सिविलाइज्ड’ नामक पुस्तक लिखी है जो वेरियर एल्विन की जीवनी है. लेखक ने सोशल मीडिया पर फैलाये जा रहे इस झूठ पर आश्चर्य जताया है और इस पर प्रतिक्रिया देने की तीन वजह बतायी है. एक वजह है कि वे स्वयं उस व्यक्ति की जीवनी के लेखक हैं जिनके बारे में यह झूठा प्रचार किया गया कि उन्होंने ईसाइयत का प्रचार किया. दूसरी वजह यह है कि इस झूठ को फैलाने में दक्षिणपंथी ही आगे नहीं रहे बल्कि मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा भी शामिल थे. तीसरा कारण यह है कि बीजेपी हर उस झूठे दावे पर चुप रह जाती है जो हिन्दुत्ववादी फैलाते हैं.
रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि 1902 में जन्मे वेरियर एल्विन ने ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई की और 1927 में भारत आ. महात्मा गांधी से वे प्रभावित थे. उन्होंने चर्च छोड़ दिया. मध्य भारत के आदिवासियों के बीच वे सक्रिय हुए. 1930 और 40 के दशक में उन्होंने आदिवासियों के जीवन, लोकनृत्य आदि पर किताबों की सीरीज लिखी.
आजादी के बाद वे भारत के नागरिक बन गये. 1954 में एल्विन को नॉर्थ इस्ट फ्रंटियर एजेंसी में एंथ्रोपोलॉजिकल एडवाइजर नियुक्त किया गया. उम्मीद की गयी कि सीमावर्ती इस राज्य के प्रशासन में वे मददगार होंगे. वेरियर एल्विन और उनके साथियों ने आदिवासी की जमीन और जंगल से जुड़े अधिकारों को मजबूती दी. हिन्दी को संपर्क भाषा के तौर पर बढ़ावा दिया और हिन्दू एवं ईसाई मिशनरियों को दूर रखा. एल्विन की भूमिका अरुणाचल प्रदेश तक सीमित रही. उत्तर पूर्व में किसी और जगह वे सक्रिय नहीं रहे. ‘नेहरू-एल्विन ट्रीटी’ जैसी कोई सच्चाई नहीं है. पंडित नेहरू की मृत्यु से कुछ महीने पहले ही एल्विन का भी निधन हो गया.
महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा
हिन्दुस्तान टाइम्स में चाणक्य ने लिखा है कि इस साल की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना ‘इंडिया’ नहीं है. न ही बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन का विस्तार ही ही महत्वपूर्ण घटना है. जी 20 शिखर सम्मेलन भी सबसे अहम घटना नहीं है जिसे बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्व पटल पर भारत की सफलता के रूप में पेश करती है. सबसे महत्वपूर्ण है- महंगाई.
बीजेपी अच्छे से महंगाई के राजनीतिक असर को जानती है. 1998 के विधानसभा चुनावों में प्याज ने दिल्ली की सरकार से बीजेपी को बेदखल कर दिया था तो 2013-14 में मोदी की जीत के पीछे भी महंगाई ही वजह थी. लालकिले से प्रधानमंत्री ने महंगाई का जिक्र किया और इस पर अंकुश लगाने के उपायों पर अमल करने क बात कही. इस भाषण के अगले ही दिन कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स जुलाई महीने में 4.9% से बढ़कर 7.4% पहुंच गया.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के हवाले से चाणक्य लिखते हैं कि कृषि मजदूर, गैर कृषि मजदूर और निर्माण मजदूरों के वेतन में 0.2% से 1% की बढ़ोतरी 2014-15 से 2021-22 के दौरान हुई है. क्या भारत के गरीब भ्रम में हैं? क्या वे गुस्से में हैं? या फिर वे अब भी उम्मीद में हैं? क्या वे महंगाई के लिए किसी और को जिम्मेदार मानते हैं?
इन्हीं सवालों की रोशनी में चुनाव होने जा रहे हैं. बीजेपी मुद्दे को नकारती नहीं है, समझती है और उस हिसाब से सक्रिय रहती है. लिहाजा माना जा रहा है कि वह महंगाई मुद्दे पर भी किसी ठोस रणनीति के साथ सामने आए.
शतरंज में भारत का दबदबा
बिजनेस स्टैंडर्ड में देवांशु दत्त ने लिखा है कि शतरंज विश्व कप मे कई युवा भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि उनमें दुनिया के श्रेष्ठ खिलाड़ियों को पराजित करने की क्षमता है. लॉन टेनिस के प्रतिष्ठित ग्रैंडस्लैम टूर्नामेंट विंबलडन की शैली में आयोजित इस विश्व कप में चार भारतीय, अंतिम आठ खिलाड़ियों में स्थान बनाने में कामयाब रहे. आर प्रज्ञानंदा ने विश्व के नंबर दो और नंबर तीन खिलाड़ियों को पराजित करके फाइनमें स्थाना बनाया जहां उन्हें विश्व के शीर्ष खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन के हाथों हार का सामना करना पड़ा.
प्रज्ञानंद ने अंतिम आठ के दौर में एक जबरदस्त मुकाबले में एक अन्य भारतीय अर्जुन एरिगैसी को पराजित किया था. एक अन्य भारतीय डोम्मराजू गुकेश कार्लसन से हारे और विदित गुजराती ने बाहर होने से पहले विश्व के पांचवीं वरीयता वाले खिलाड़ी को परास्त किया.
देवांशु ने लिखा है कि यह प्रदर्शन संयोगवश नहीं हुआ. भारत ने शतरंज के खेल के लिए एक पूरी व्यवस्था बनायी है जिसके अंतर्गत चैंपियन खिलाड़ियों की पहचान की जाती है और उन्हें तैयार किया जाता है. शतरंज की डिजिटल छाप बहुत तगड़ी है जिसमे महामारी के बाद बहुत तेजी से इजाफा हुआ है. अब ऑनलाइन तरीके से किसी भी समय कड़े प्रतिस्पर्धियों के विरुद्ध शतरंज खेलना संभव है. भारत में बहुत अच्छे शतरंज प्रशिक्षक हैं और उनकी तादाद लगातार बढ़ रही है. शीर्ष पर आर बी रमेश और विश्वनाथन आनंद जैसे खिलाड़ी मौजूद हैं जो प्रज्ञानंद और गुकेश जैसे खिलाड़ियों को जरूरी सलाह देते हैं. गत वर्ष 10 हजार खिलाड़ियों ने आधिकारिक प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और संभव है कि आने वाले दिनों में इतकी संख्या बढ़े. अखिल भारतीय शतरंज महासंघ को भी इस सफलता का श्रेय मिलना चाहिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)