कांग्रेस के घोषणापत्र का मोदी के हाथों पुनर्लेखन
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वेच्छा से कांग्रेस के घोषणापत्र के पुनर्लेखन का दायित्व अपने ऊपर ले लिया है. कांग्रेस के घोषणापत्र पर पीएम मोदी ने राजनीतिक विमर्श खड़ा किया ह. वहीं बीजेपी का घोषणापत्र ‘मोदी की गारंटी’ बनकर भी सियासी फिजां से गायब हो चुका है. ‘मोदी की गारंटी’ की आत्मा को अब शांति मिल चुकी है.
चिदंबरम लिखते हैं कि मोदी साहब ने कांग्रेस के घोषणापत्र की साज-सज्जा में निम्नलिखित रत्न जड़े हैं :
कांग्रेस लोगों की जमीन, सोना और अन्य कीमती संपत्ति मुसलमानों में बांट देगी.
कांग्रेस व्यक्तियों की संपत्ति, महिलाओं का सोना और आदिवासी परिवारों के पास मौजूद चांदी का मूल्य निर्धारण करने और उन्हें छीनने के लिए सर्वेक्षण कराएगी.
कांग्रेस, सरकारी कर्मचारियों की जमीन और नकदी जब्त कर बांट देगी.
डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला दावा मुसलमानों का है, और जब डॉ सिंह ने यह बात कही तो मैं मौजूद था.
कांग्रेस आपका मंगलसूत्र और स्त्रीधन छीन कर उन लोगों को दे देगी जिनके अधिक बच्चे हैं
अगर आपके पास गांव में घर है और आपने शहर में भी एक छोटा सा फ्लैट खरीद रखा है तो कांग्रेस उनमें से एक घर छीन लेगी और किसी और को दे देगी.
चिदंबरम इंडिन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि राजनाथ सिंह ने एक और नगीना पेश किया. कांग्रेस ने सशस्त्र बलों में धर्म-आधारित कोटा शुरू करने की योजना बनाई है. निर्मला सीतारमन भी कूद पड़ीं. लेखक का मानना है कि 19 अप्रैल को पहले दौर के मतदान के बाद पीएमओ और बीजेपी में घबराहट फैल गयी. पीएम ने राजस्थान के जालोर और बांसवाड़ा में हमला शुरू किया और फिर रुके नहीं. उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने भी अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी. मीडिया ने भी इस पागलपन को रोकने की कोशिश दिखाने के बजाए ‘व्याख्या’ शुरू कर दी. बहरहाल, कांग्रेस का घोषणापत्र पूरे देश में चर्चा का विषय है. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने कांग्रेस के घोषणापत्र को ‘लोकसभा चुनाव का नायक’ बताया है. हालांकि, ऐसा कहकर वे निशाने पर आ गए हैं.
EVM को हरी झंडी
टाइम्स ऑफ इंडिया में जय विनायक ओझा ने ईवीएम पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा की है. कोर्ट ने 100 प्रतिशत वीवीपैट की गिनती को सुरक्षा मानदंडों को सुनिश्चित करने की सलाह के साथ खारिज किया है. साथ ही, ईवीएम से मतदान कराने की वैधता को बनाए रखा है. जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता ने कहा है कि याचिकाकर्ता एडीआर ने जो आशंकाएं जाहिर की हैं, उन्हें मानने का कोई आधार नहीं है. अदालत ने सुझावों को भी अस्वीकार्य माना.
अदालत ने जोर दिया कि वर्तमान चुनावी प्रक्रिया को और अधिक मजबूत और विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए. वीवीपैट के सिम्बल लोडिंग यूनिट को इस्तेमाल के बाद सीलबंद किया जाना चाहिए. नतीजे के बाद 45 दिनों तक इसे सुरक्षित भी रखा जाना चाहिए. दूसरे या तीसरे नंबर पर आने वाले उम्मीदवारों को 5 फीसद कंट्रोल यूनिट, बैलेट यूनिट और वीवीपैट की समीक्षा का अधिकार लिखित आग्रह पर होगा. चुनाव नतीजे की घोषणा के बाद इंजीनियर समेत तकनीकी टीम इसकी जांच करेगी, जिसका खर्च भी ऐसी इच्छा रखने वाले उम्मीदवार को वहन करना होगा.
दोनों न्यायाधीशों ने याचिकाकर्ताओं के लिए कठोर शब्दों का भी इस्तेमाल किया. आरोपों की गहनता से जांच करने के बाद आरोपों को निराधार बताया. उन्होंने तमाम शक-शुबहों को व्यवस्था पर घोर अश्वास के तौर पर उल्लेख किया. याचिकाकर्ताओं की मंशा पर भी टिप्पणी की गयी. अंतत: EVM की इंटीग्रिटी को अदालत ने स्वीकार किया और सभी आशंकाओं को खारिज कर दिया.
हमले की कहानी सलमान रुश्दी की जुबानी
हिन्दुस्तान टाइम्स में करन थापर ने सलमान रुश्दी की नयी कृति के बारे में लिखा है. ‘मेडिटेशन आफ्टर एन अटेम्प्टेड मर्डर’ में सलमान रूश्दी सीधे पाठक से बात करते हैं, उस हमले के बारे में, जिसने उन्हें तकरीबन मार डाला था. अपने ऊपर चाकू से बेरहम हमले की प्रतिक्रिया को सलमान ने पुस्तक का रूप दिया है. शीर्षक सावधानी से चुना गया है. चाकू से हमला एक प्रकार की अंतरंगता है. चाकू नजदीक से देखने वाला हथियार है और इससे हुआ अपराध अंतरंग मुठभेड़. रुश्दी बताते हैं कि “भाषा मेरी चाकू थी”.
करन थापर लिखते हैं कि रुश्दी का वर्णन दिलचस्प लेकिन रोंगटे खड़ा कर देने वाला है-
“मैं अभी भी उस क्षण को धीमी गति में देख सकता हूं. मेरी आंखें दौड़ते हुए आदमी का अनुसरण करती हैं, जब वह दर्शकों के बीच से छलांग लगाता है और मेरे पास आता है. मैं उसके सिर के बल दौड़ने के हर कदम को देखता हूं. मैं खुद को अपने पैरों पर खड़े होते और उसकी ओर मुड़ते हुए देखता हूं...मैं आत्मरक्षा में अपना बायां हाथ उठाता हूं. वह उसमें चाकू घोंप देता है.” सलमान रुश्दी पर 15 बार चाकू से वार किया गया. गर्दन, दाहिनी आंख, बायां हाथ, जिगर, पेट, माथा, गाल, मुंह और उसके धड़ के पार. बीबीसी के एनल येनटोब से उन्होंने कहा कि उनकी दाहिनी आंख उनके ऊपरी गाल पर टिकी हुए एक नरम उबले अंडे की तरह महसूस होती है.
करन विशेष तौर पर उल्लेख करते हैं कि जब हमला हुआ तो राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन और जो बाइडेन और यहां तक कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन जो रुश्दी को नापसंद करते थे, ने भय और चिंता व्यक्त की. लेकिन, जिस देश में रुश्दी का जन्म हुआ और जिससे उनकी पहचान है, वहां केवल आधिकारिक चुप्पी थी. रुश्दी लिखते हैं, “भारत, मेरे जन्म का देश और मेरी गहरी प्रेरणा, को उस दिन कोई शब्द नहीं मिले.”
आंध्र-ओडिशा में वोटरों के अलग-अलग अंदाज
आदिति फडणीस ने बिजनेस स्टैंडर्ड में ओडिशा और आंध्रप्रदेश में एक साथ विधानसभा और लोकसभा चुनावों और इन चुनावों की प्रकृति की चर्चा की है. ओडिशा में बीजेडी और बीजेपी के बीच गठबंधन होते-होते रह गया. चुनाव के दौरान नवीन पटनायक और नरेंद्र मोदी ने एक-दूसरे पर बिल्कुल हमला नहीं बोला है. चुनाव बाद गठबंधन की संभावना को जिन्दा रखा है. वहीं, बीजेडी के संभावित प्रमुख माने जा रहे पूर्व अधिकारी वीके पांडियन को ‘भ्रष्टाचार का चेहरा’ के तौर पर बीजेपी ने पेश किया है.
ओडिशा के वोटर विधानसभा में नवीन पटनायक और लोकसभा में बीजेपी को पसंद करते दिखे हैं. ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें हैं. 2014 के चुनाव में बीजेडी ने 20 सीटें जीती थी और बीजेपी की झोली में केवल एक सीट आयी थी. 2009 में बीजेडी को 12 और बीजेपी को 9 सीटें मिलीं. लेकिन 2019 में बीजेपी को लोकसभा में जो समर्थन मिला उसे विधानसभा चुनाव में सीटों में नहीं बदल सकी. बीजेडी को 147 सीटों में से 112 पर सफलता मिली. केवल 23 सीटों से बीजेपी को संतोष करना पड़ा.
आंध्र प्रदेश का जिक्र करती हुईं आदिति फडणीस लिखती हैं कि 2019 में जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व में वाईएसआर कांग्रेस ने 175 सीटों में से 151 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की. लोकसभा चुनाव में पार्टी को 25 में 22 सीटें मिलीं थीं. यहां के वोटरों ने जगनमोहन रेड्डी पर विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में भरोसा किया. कल्याणकारी योजनाओं के मोर्चे पर जगनमोहन रेड्डी और वाईएसआर कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा है.
भारतीय खाद्य निगम द्वारा सेला चावल नहीं खरीदने के फैसले ने राज्य में भारी उथल-पुथल मचाई है. वाईएसआर कांग्रेस के सांसदों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है. आंध्र प्रदेश में जिस टीम ने जगत को जीत दिलाई, वह बिखर चुकी है. बहन शर्मिला कडप्पा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं. एनडीए में टीडीपी 17 लोकसभा सीटों पर, बीजेपी और जेएसपी दोनों ही 2-2 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं. विधानसभा में टीडीपी 144, बीजेपी 10 और जनसेना 21 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं
गाजा में मुहाल महिलाएं
ललिता पणिक्कर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में संघर्षरत गाजा में महिलाओं की दुर्दशा का जिक्र किया है. अक्टूबर 2023 में इजराइल के जवाबी हमले के बाद से गाजा में 35 हजार से अधिक फिलीस्तीनी मारे गए हैं. इनमें से 70 फीसदी महिलाएं या बच्चे थे. लगभग 10 लाख महिलाएं और लड़कियां गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही हैं. राजनीतिक समाधान निकल नहीं रहा है. शांति शिखर सम्मेलन बेमतलब साबित हुए हैं. इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि गाजा संकट ने लैंगिक संबंधों को प्रभावित किया है.
पणिक्कर लिखती हैं कि युद्धरत इलाके में परिवार घरेलू हिंसा बढ़ जाने की समस्या से भी जूझ रहे हैं. युद्ध के कारण घंटों लाइनों में खड़े रहना, भूख, पानी की कमी जैसी समस्याएं भी महिलाएं झेल रही हैं. राहत शिवोरं में भी लिंगभेद का शिकार हो रही हैं महिलाएं. गाजा में महिलाओँ को मासिक धर्म के दौरान पानी की कमी और बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल की कमी के कारण गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. मासिक धर्म चक्र को स्थगित करने क लिए गर्भनिरोक गोलियों का सहारा ले रही हैं महिलाएं. लेकिन, इससे उनकी पीड़ा बढ़ गयी है. पूर्वी येरुशलम में सक्रिय लुसी नुसेबीह को उद्ऋत करती हुई लेखिका ने बताया है कि महिलाएं किसी भी समाज का भविष्य हैं. गाजा पट्टी की भयावह परिस्थितियों में उन्हें पुरुषों के अतिरिक्त समर्थन की आवश्यकता है.
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