प्रतिबंधों के बावजूद कमजोर नहीं हुआ रूस
टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि ऐसा लग रहा है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को आंशिक सफलता मिल रही है. 2022 में रूस के हाथों गंवाई गई जमीन दोबारा हासिल करने की उम्मीदें हर बीतते महीने के साथ धूमिल पड़ती जा रही हैं. अमेरिका और यूरीपोय संघ से यूक्रेन को लगातार मिल रही मदद में बाधाओं के बाद अब यूक्रेन यही उम्मीद कर सकता है कि सैन्य स्तर पर गतिरोध बना रहे. बुरी से बुरी स्थिति यही होगी कि रूस कुछ और इलाकों पर कब्जा कर ले. यूक्रेन का आर्थिक पुनर्गठन बड़ी चुनौती बनी रहेगी. विदेशी मदद भी शायद आवश्यकतानुसार ना मिले.
रूस की अर्थव्यवस्था ने आर्थिक प्रतिबंधों को धता बता दिया है. यकीनन रूस का नुकसान हुआ है लेकिन उसे थाम लिया गया है.
साल 2022 में रूस की अर्थव्यवस्था में 2.1 फीसदी की गिरावट आयी और उसके बाद अब उम्मीद है कि 2023 में वह 2.8 फीसदी बढ़ेगी.
ताजा तिमाही में 5.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है.
व्यापार प्रतिबंधों के बावजूद चालू खाता भारी सरप्लस (यानी पॉजिटिव) की स्थिति में है.
सैन्य खर्च बढ़ा है और 2024 में यह दुगुना होकर जीडीपी के छह फीसदी होने की उम्मीद है.
बजट 2.8 फीसदी घाटे में है लेकिन सार्वजनिक व्यय बमुश्किल जीडीपी का 20 फीसदी के स्तर पर है.
शेयर बाजार जंग के बावजूद एक साल में 7 फीसदी के ऊपर गया है.
अगर रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का असर नहीं हुआ है तो इसलिए कि रूस को चीन और भारत के रूप में अपने तेल के लिए ग्राहक मिल गए. यूक्रेन कभी भी अपने दम पर रूस से लड़ने में सक्षम नहीं होगा. ऐसे बड़ा सवाल यही है कि क्या युद्ध को टाला जा सकता था और विनाश से बचा जा सकता था?
अंधेरगर्दी की राह
पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट को इस सवाल की जांच करनी चाहिए थी कि क्या राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के लिए अनुच्छेद तीन का सहारा लेना अवैध था? अदालत ने इस प्रश्न को छोड़ दिया. अदालत ने विधानसभा चुनाव कराने की समय सीमा 30 सितंबर निर्धारित की. वहीं राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए की समय सीमा निर्धारित नहीं की. स्पष्टतया राज्य का दर्जा बहाल करने के बाद चुनाव होने चाहिए. इसलिए दोनों को लेकर अनिश्चितता है.
चिदंबरम लिखते हैं कि राज्य विधायिका के विचारों को ‘संसद का विचार’ मान लिया गया. राष्ट्रपति ने संसद से परामर्श किया और संसद ने राज्य विधायिका के विचारों को व्यक्त किया. यह संसद का अजीब कृत्य था. इसके बाद संसद ने जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया.
लेखक सवाल करते हैं कि क्या कभी संविधान सभा ने इस तरह के निराशाजनक भविष्य की कल्पना की थी? अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को एक तरफ रख दीजिए. देश के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय वे शैतानी तरीके हैं जिनसे सरकार संविधान के प्रावधानों को तोड़-मरोड़कर राज्यों के अधिकारों और संघवाद को कमजोर कर सकती है.
आर्थिक सुधार के बीच चुनौती बड़ी
शंकर आचार्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि लगातार तीसरे साल वैश्विक आर्थिक वृद्धि पिछले साल के मुकाबले कमजोर रहेगी. ठीक होने की संभावना यूरोप में कुछ सुधारों और अमेरिका में मंदी की आशंका दूर होने के बाद ही होगी. विकसित देशों में 1.4 फीसदी वृद्धि दर रहने का अनुमान है जबकि उभरते और विकासशील देशों में यह चार फीसदी रह सकती है. इन बाजारों में यह दर चीन में बहुचर्चित मंदी के बावजूद है.
यह बात ध्यान देने योग्य है कि 18 लाख करोड़ डॉलर की चीन की अर्थव्यवस्था में पांच फीसदी वृद्धि विश्व अर्थव्यवस्था में 900 अरब डॉलर का योगदान करती है. इसी तरह जब 27 लाख करोड़ डॉलर के आकार वाला अमेरिका 1.5 फीसदी आर्थिक विकास दर हासिल करता है तो इससे करीब 400 अरब डॉलर का योगदान होता है. 3.7 लाख डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था 6.5 फीसदी वृद्धि के साथ करीब 240 अरब डॉलर का योगदान करने वाली होती है.
शंकर आचार्य बताते हैं कि एशिया में उभरते और विकासशील देशों में 5 फीसदी विकास दर की उम्मीद है. लैटिन अमेरिका में 2.3 फीसदी और सब सहारा अफ्रीका देशों में 4 फीसदी विकास दर रहने की उम्मीद है. सकारात्मक बात यह है कि वस्तु और सेवा क्षेत्र की वृद्धि में 2023 के एक प्रतिशत के मुकाबले सुधार की उम्मीद है. 2024 में यह चार फीसदी हो सकती है. भू राजनीतिक परिदृश्य काला नजर आ रहा है. यूक्रेन में जंग जारी है. म्यांमार, सीरिया, कांगो, सूडान, सोमालिया, नाइजीरिया और कई अन्य अफ्रीकी देशों में गृहयुद्ध की स्थिति बन हुई है.
गाजा में 18 हजार से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं. इनमें 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे हैं. हजारों घायल हुए हैं. ग्रीन हाउस गैसों का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर है. समुद्रीय सतह का तापमान और समुद्री जल स्तर बढ़ रहा है. अंटार्कटिक में बर्फ रिकॉर्ड निचले स्तर पर है. अगर नेट जीरो के सारे वचन सही हों तो तापवृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक रोका जा सकता है.
शंकर आचार्य लिखते हैं कि अगर डॉनाल्ड ट्रंप सत्ता में लौटते हैं तो भविष्य और धुंधला होगा क्यों इस बार उनका पर्यावरण विरोधी, प्रवासी विरोधी, अंतरराष्ट्रीयकरण विरोधी और नस्लवादी रुख और मजबूत होगा. ट्रंप जलवायु परिवर्तन पर यकीन नहीं करते.
नेतृत्व बदलने के संकेत
हिन्दुस्तान टाइम्स में चाणक्य लिखते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल के लिए नेतृत्व में पीढ़ीगत बदलाव और सामाजिक गठबंधन का विस्तार मुश्किल होता है. दो स्थितियों में ऐसा करना आसान होता है. जब पार्टी का नेतृत्व मजबूत हो और जब वोट जीतने की क्षमता जबरदस्त हो. एक और अहम बात यह है कि ऐसा करना तब आसान है जब पार्टी ऐसे अस्त्तित्वगत संकट के बीच में हो कि ऐसे प्रयोग करने पर उसके पास खोने के लिए कुछ भी न हो. विफलता की संभावना स्वायत्त और पहले से अकल्पनीय कार्यों के लिए जगह देती है.
बीजेपी ने बगैर सीएम पद का उम्मीदवार घोषित किए तीन राज्यों में जबरदस्त राजनीतिक सफलता हासिल की:
वोटरों के साथ नरेंद्र मोदी का जुड़ाव, सूक्ष्म स्तर पर स्मार्ट सोशल इंजीनियरिंग, अमित शाह की संगठनात्मक मशीन, विपक्ष की कमी का लाभ उठाने की क्षमता, राष्ट्रवाद, लोक कल्याण और हिंदुत्व की कहानी इस सफलता के पीछे वजह हैं.
वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह के प्रति बीजेपी में बेचैनी स्पष्ट थी. ऐसे में ओबीसी, आदिवासी, ऊंची जातियां और महिलाओं ने बीजेपी को पहली राजनीतिक पसंद बना दिया है. मध्य प्रदेश में यादव मुख्यमंत्री का चयन अत्यंत प्रतिभापूर्ण है.
बीजेपी बिहार और यूपी में किसी यादव नेता को नहीं चुन सकती है क्योंकि पार्टी की राजनीतिक सफलता गैर यादव गठबंधन पर बनी है जो हर चुनाव में यादव ज्यादतियों की याद दिलाती है. लेकिन यादव पूरे हृदय प्रदेश में प्रभावशाली समूह बने हुए हैं. बीजेपी चार राज्यों में एमपी, यूपी, बिहार और हरियाणा में यादवों को संकेत भेज रही है कि पार्टी में उनके लिए जगह है.
एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति के रूप मे चुनने के बाद छत्तीसगढ में एक आदिवासी मुख्यमंत्री का चयन उस राज्य में राजनीतिक रचनात्मकता का एक और संकेत है जहां 30 फीसद आबादी आदिवासी है और आदिवासी एकीकरण ने बीजेपी को जीतने में मदद की है.
राजस्थान मे बीजेपी राजपूत-जाट-गुर्जर-मीणा धुरी में व्याप्त जटिल और बहुस्तरीय प्रतिद्वंद्विता से बच गयी और इसके बजाए एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री का विकल्प चुना.
अनुच्छेद 370 पर फैसले से जटिल हुए संघीय सवाल
करन थापर ने हिंदुस्तान टाइम्स में लिखा है कि पांच न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से माना कि जिस संवैधानिक आदेश के द्वारा अनुच्छेद 367 में संशोधन हुआ और अनुच्छेद 370 को बदला गया वह अधिकार से परे फैसला था. एक तरह से अनुच्छेद 367 का नाजायज इस्तेमाल था. इसका मतलब यह हुआ कि सरकार ने जो किया वह गलत था. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यही काम अन्य तरीके से भी किया जा सकता था और वह सही होता. इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार ने जो किया उसे बरकरार भी रखा.
करन थापर लिखते हैं कि अनुच्छेद 3 की तहत राज्य विधानमंडल की सिफारिश बाध्यकारी नहीं है. लेकिन, यह भी संविधान द्वारा आवश्यक प्रक्रिया है. क्या इसे केवल इसलिए टाला जा सकता है क्योंकि यह बाध्यकारी नहीं है? किसी राज्य का पुनर्गठन संवैधानिक है या नहीं- यह बड़ा सवाल है.
केंद्र सरकार बंगाल, केरल और तमिलनाडु में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकती है, विधानसभा की शक्तियां, संसद को हस्तांतरित कर सकती है और उसके बाद, संसद राज्य को खत्म करने या इसे केंद्र शासित प्रदेश में बदलने का निर्णय ले सकती है.
इसकी मिसाल कायम हो चुकी है. लेखक जानकार के हवाले से बताते हैं कि संघवाद संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. इसमें संसद द्वारा संशोधन नहीं किया जा सकता. क्या अबह हमारे सामने संसद की शक्ति और बुनियादी ढांचे की पवित्रता के बीच टकराव है?
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