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ड्रग्स में रिया की गिरफ्तारी से सुशांत की मौत का केस नहीं सुलझेगा

क्या NCB की गिरफ्तारियों का CBI जांच पर कोई असर होगा?

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सुशांत सिंह राजपूत की दुखद मौत के ढाई महीने बीत जाने के बाद भी उनकी मौत का कारण अब तक साफ नहीं हो सका है. सीबीआई, ईडी और एनसीबी तीन अलग-अलग एंगल से मामले की जांच कर रही है. लेकिन कुछ ड्रग पेडलर, अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती, उनके भाई शौविक चक्रवर्ती और सुशांत सिंह राजपूत के हाउस मैनेजर सैमुएल मिरांडा की गिरफ्तारी के बाद मामले की जांच में नया मोड़ आ गया है.

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ऑपरेशन को लेकर सीधे निर्देश देने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) प्रमुख की मुंबई में उपस्थिति महत्वपूर्ण है और अगर ये बॉलीवुड को ड्रग्स की समस्या से छुटकारा दिलाने का संकेत है तो ये सच में स्वागत योग्य कदम है. उम्मीद करें कि ये अभियान खेल के क्षेत्र और स्कूल-कॉलेजों में भी चलाया जाएगा जहां ड्रग्स का धंधा करने वाले गिरोह किशोरों को अपने जाल में फंसा कर बड़े पैमाने पर लोगों तक ड्रग्स पहुंचा रहे हैं.

अगर व्हाट्सऐप चैट आरोपी को नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टांसेस (NDPD) एक्ट के तहत गिरफ्तार करने के लिए जांच का आधार बनते हैं, जिसमें ड्रग्स की बरामदगी दिखाना जरूरी है, तो बॉलीवुड के कई बड़े स्टार भी एनसीबी के जाल में फंस सकते हैं.  

ये देखना होगा कि एक संतोषजनक नतीजे तक पहुंचने के लिए ये अभियान कब तक चलाया जाता है.

क्या NCB की गिरफ्तारियों का CBI जांच पर कोई असर होगा?

इस बीच मौत के रहस्य को उजागर करने के लिए मूल मुद्दा ये है कि क्या एनसीबी की ओर से की गई गिरफ्तारियों का सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन यानी सीबीआई की जांच पर कोई असर होगा. सीबीआई के सामने दो चुनौतियां हैं- पहला ये पता लगाना कि ये आत्महत्या का मामला है या हत्या का. इसके लिए सीबीआई ने पोस्टमॉर्टम और विसरा रिपोर्ट की जांच की, कथित क्राइम सीन को रिक्रिएट किया और डमी के साथ ट्रायल किया.

दूसरी, वो बिहार पुलिस के द्वारा दर्ज आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जांच कर रही है. ये स्पष्ट है कि एनसीबी की जांच एक व्यापक जांच का हिस्सा है और सीबीआई जांच की तरह मौत के कारणों की जांच पर केंद्रित नहीं है. प्रवर्तन निदेशालय (ED) बेशक अभी भी रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार द्वारा कथित रुपयों और संपत्ति के ट्रांसफर के मामले की जांच कर रहा है. सीबीआई और ईडी दोनों का अभी नतीजे पर पहुंचना बाकी है.

सीबीआई एक बहुत ही पेशेवर एजेंसी है और ये बड़े स्तर पर जांच कर रही है. मौत से पहले हुई घटनाओं की जांच के लिए, सुशांत के करीबी दूसरे लोगों को छोड़ दें तो सिर्फ रिया चक्रवर्ती से ही 30 घंटे से ज्यादा समय तक सवाल-जवाब किए गए हैं.  

ये ठीक है, चूंकि आत्महत्या के लिए उकसाने का केस साबित करना मुश्किल होता है और अब तक की जांच में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है. सुशांत के अकाउंट से पैसे निकालकर रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के संपत्ति खरीदने का मामला अब ठंडा पड़ता जा रहा है और इसी तरह आपराधिक विश्वासघात, साजिश और गैरकानूनी तरीके से कैद रखने के आरोपों का भी यही हाल है.

रिया चक्रवर्ती ने 8 जून को सुशांत का घर छोड़ दिया था और डॉक्टर से शिकायत की थी कि सुशांत ने दवाएं लेना बंद कर दिया है और उससे बात करने की जरूरत है. सुशांत की बहन ने दिल्ली के एक डॉक्टर की सलाह पर दवाएं दी और 12 जून को उसे शायद सामान्य स्थिति में छोड़कर अपने घर चली गईं.

इस परिस्थितियों में रिया और उनके भाई की गिरफ्तारी से सीबीआई की जांच पर कोई असर नहीं पड़ता, केवल लोगों के सामने कुछ और जानकारियां सामने आई हैं. इस मामले में पहले से ही काफी जानकारियां लोगों के पास हैं जिसपर लोगों के बीच चर्चा चल रही है. यहां रिया और उसके भाई ने ड्रग्स लिया या नहीं शायद प्रासंगिक नहीं होगा.

दरअसल, ड्रग पेडलर और व्हाट्सऐप चैट पर आधारित केस वास्तविक बरामदगी की अनुपस्थिति में टिक नहीं पाएगा क्योंकि लेनदेन पूरे होने के सबूत मौजूद नहीं हैं.  
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व्हाट्सऐप चैट, मेडिकल रिपोर्ट लीक: लगातार होते खुलासे

व्हाट्सऐप चैट और मेडिकल रिकॉर्ड को व्यवस्थित तरीके से लीक किया जाना इस मामले का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है. हालांकि ये भारत में मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक को भी बताता है. प्रभावित परिवार इसकी अनदेखी करते हैं या बिना इसका सामना किए और मनोरोग विशेषज्ञ की मदद लिए मरीज के ठीक होने की कामना करते हैं. जांच के नतीजों चाहे जो भी हों, मानसिक स्वास्थ्य और इस समस्या के समाधान के तरीकों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया जाना चाहिए. देश के कई बड़े काउंसलर ने इस मुद्दे को मीडिया के सामने उठाया है और इस संबंध में उठाए जाने के लिए जरूरी कदमों के सुझाव दिए हैं.

सुशांत राजपूत का मामला इस बात को सामने लाता है कि हमारे लोकतंत्र में मुद्दों को सुलझाने में हमारी हालत कितनी खराब है. मामले की जांच कौन सी एजेंसी करेगी इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा.

बिहार और महाराष्ट्र के बड़े स्तर के पुलिस अधिकारी खुलेआम मीडिया के सामने अधिकार क्षेत्र की लड़ाई लड़ते रहे जिसमें उनके राजनीतिक आका भी शामिल हो गए जैसे राज्य का गौरव दांव पर लगा हो.

अगर मुंबई पुलिस सुशांत के परिवारवालों के प्रति थोड़ी सहानुभूति दिखाई होती और जांच में बिहार पुलिस के साथ सहयोग करती और इसके बदले में बिहार पुलिस ने तर्कों को सुना होता और एफआईआर को मुंबई ट्रांसफर कर दिया होता तो मामला शायद सुलझने के करीब होता.

आज ये मामला सम्मानित तरीके से खत्म होने का इंतजार कर रहा है. एक शानदार, युवा अभिनेता की दुर्भाग्यपूर्ण मौत, उनकी विलक्षण प्रतिभा के सम्मान में और उनके परिवार पर टूटे दुखों के पहाड़ और भी ज्यादा शांत और परिपक्व प्रतिक्रिया की मांग करते थे.

(यशोवर्धन आजाद पूर्व आईपीएस अधिकारी और सेंट्रल इंफॉर्मेशन कमिश्नर हैं. आर्टिकल में दिए गए विचार उनके निजी विचार हैं और इनसे द क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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