ADVERTISEMENTREMOVE AD

तनिष्क ऐड न हटाता, अगर 2018 की एक ब्रांड स्टडी को गंभीरता से लेता

इस ब्रांड स्टडी में क्या कहा गया था?

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

टाटा ग्रुप ने अगर एडलमैन की 2018 की ब्रांड स्टडी को गंभीरता से लिया होता तो शायद ट्रोल्स से घबराकर अपनी नई ऐड फिल्म को वापस नहीं लेता. क्या आपको पता है कि इस ब्रांड स्टडी में क्या कहा गया था? स्टडी में साफ किया गया था कि विश्व स्तर पर करीब 64 फीसदी उपभोक्ता खरीदारी करते समय यह जरूर देखते हैं कि किसी ब्रांड की सामाजिक या राजनीतिक सोच क्या है. पर टाटा ग्रुप ने सोशल मीडिया पर गाली-गलौज से डरकर उस विज्ञापन को हटा दिया है जो धार्मिक सौहार्द की अच्छी मिसाल साबित हो सकता था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

एक चीज होती है, कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी

कॉरपोरेट जगत में कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी यानी सीएसआर का बहुत महत्व है. सीएसआर मतलब सामाजिक क्षेत्र में काम करने की जिम्मेदारी. टाटा ग्रुप खुद इसका बड़ा पैरोकार है. भारत में सीएसआर जर्नल इस क्षेत्र की पूरी खबर रखता है. उसके 2020 के चार्ट की टॉप दस कंपनियों में टाटा कैमिकल्स तीसरे स्थान पर है. 2019-20 में उसने सीएसआर पर 37 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए हैं और वंचित समुदायों को लाभ पहुंचाया है. इसके अलावा 1980 में बनी उसकी टीसीएसआरडी सोसायटी वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के लिए भी काम करती है.

यूं तो हमारे देश में सभी कॉरपोरेट फर्म्स को सीएसआर फंड बनाना होता है. 2013 के कंपनीज एक्ट के तहत एक निर्दिष्ट राशि के टर्नओवर वाली या मुनाफा कमाने वाली कंपनियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पिछले तीन वित्तीय वर्षों में अपने औसत शुद्ध लाभ का 2% अपनी सीएसआर नीति पर खर्च करें. क्या सामाजिक सौहार्द कायम करना इस जिम्मेदारी से बाहर की बात है?

दुनियाभर के कॉरपोरेट्स इस जिम्मेदारी को निभाते हैं

कारोबारी दुनिया को एक अंतर्मुखी समाज माना जाता है जो दुनिया के मामलों से सरोकार नहीं रखती. लेकिन क्या यह सच है? दुनियाभर के कई ब्रांड्स ने अपनी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है. अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर कैंपेन के दौरान कितने ही ब्रांड्स रंगभेद के खिलाफ खड़े हुए. फुटवियर के बड़े ब्रांड नाइकी ने साठ सेकेंड के अपने वीडियो में लोगों से अपील की कि उन्हें नस्लीय नफरत के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. इससे पहले 2018 में उसने सिविल राइट्स एक्टिविस्ट और फुटबॉलर कोलिन कैपरनिक को अपने कैंपेन का हिस्सा बनाया था.

इसी तरह आइसक्रीम और योगर्ट बनाने वाली कंपनी बेन एंड जेरी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से यहां तक कहा कि उन्हें ट्विटर पर ऐसे लोगों को अनफॉलो करना चाहिए जो श्वेतों के खिलाफ आग उगलते हैं.

डैनिश टॉय कंपनी ने ब्लैक्स पर पुलिसिया हमलों का विरोध जताते हुए अपने पुलिस प्लेसेट्स की डिजिटल मार्केटिंग बंद कर दी. मास मीडिया कंपनी वायकॉम ने अपने सभी चैनल्स को 8 मिनट, 46 सेकेंड के लिए ब्लैक कर दिया. ब्रिटिश ब्रांड यॉर्कशायर टी ने जब ब्लैक लाइव्स मैटर पर कोई कमेंट नहीं किया और एक दक्षिणपंथी ब्लॉगर ने इस बात के लिए उसकी तारीफ की तो कंपनी ने पलटकर विनम्रता से जवाब दिया- आपको आगे से हमारी चाय खरीदने की जरूरत नहीं है.

ब्रांड्स ने कई बार पॉलिटिकल स्टैंड भी लिया

सिर्फ सोशल ही नहीं, कई बार कॉरपोरेट ब्रांड्स ने पॉलिटिकल स्टैंड भी लिया है. 2018 में लग्जरी ब्रांड गुची ने गन कंट्रोल रैली मार्च फॉर आवर लाइव्स के लिए पांच लाख डॉलर दिए थे. क्लोथिंग कंपनी पेटागोनिया ने तो डोनाल्ड ट्रंप पर मुकदमा ठोंका था क्योंकि वह उटा और नेवाडा में दो मिलियन एकड़ सार्वजनिक भूमि का निजीकरण कर रहे थे. इसी तरह फूड कंपनी चोबानी और टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ट्रंप की शरणार्थी नीति के सख्त खिलाफ रही हैं. इन्होंने समय-समय पर अपना विरोध भी दर्ज कराया है. पर्सनल केयर ब्रांड डव ने डोनाल्ड ट्रंप और उनकी टीम के झूठे और भ्रामक बयानों का मजाक उड़ाते हुए एक स्पूफ कैंपेन भी चलाया था.

मार्केटिंग गुरु इसे ब्रांड एक्टिविज्म का नाम देते हैं. मशहूर जर्मन डिजिटल कम्युनिकेशन्स एक्सपर्ट फाइक रेफॉक कहते हैं कि ब्रांड जब एक्टिविज्म पर उतर आते हैं तो यह नैतिकता का सवाल बन जाता है. कई बार इसका फायदा होता है, और कई बार नुकसान भी.

पॉलिटिकल स्टैंड का खामियाजा भी भुगतना पड़ता है. फिर भी, कई कॉरपोरेट कंपनियां इसके लिए तैयार हैं. यूनिलीवर की प्रेजिडेंट हेनाके फैबर ने एक आर्टिकल में कहा था कि उनके पिता एक एक्टिविस्ट थे और वह भी उन्हीं के नक्शेकदम पर चल रही हैं. अगर कॉरपोरेट ब्रांड्स इस दुनिया में कुछ बदलाव ला सकते हैं तो उन्हें इसकी कोशिश जरूर करनी चाहिए.

यह दिलचस्प ही है कि पिछले साल भारत में यूनिलीवर के ब्रांड सर्फ एक्सेल के एक ऐड ने घमासान मचाया था. उसमें होली पर दो बच्चों, एक बच्ची और एक मुस्लिम बच्चे के परस्पर रिश्तों को दिखाया गया था. कइयों को इसमें भी लव जिहाद का एंगल दिखा था.

किसी ने सोशल मीडिया पर कहा था कि हिंदू लड़का मुस्लिम लड़की को रंग लगाएगा तो क्या आप बर्दाश्त करेंगे. मजेदार बात यह थी कि ऐड में बच्ची हिंदू है, यह लोगों की धारणा थी. ऐड कहीं से उसे हिंदू नहीं बताता था.

तनिष्क वाले मामले का सबसे दुखद पहलू टाटा का घुटने टेक देना है. अगर वह भी अपनी कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी को याद रखता तो अच्छा होता. ग्राहकों का दिल उसकी तरफ साफ हो जाता. जब धर्म के प्रति आस्था के कारण समाज ज्यादा से ज्यादा अधार्मिक हो रहा हो तो हम सभी की कुछ न कुछ जिम्मेदारी है. दरअसल राष्ट्रीय एकता का झूठा प्रदर्शन अब दिल को तसल्ली नहीं देता.

(माशा लगभग 22 साल तक प्रिंट मीडिया से जुड़ी रही हैं. सात साल से वह स्वतंत्र लेखन कर रही हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं, क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

0
Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें