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‘द सरपेंट’ में नहीं, यहां है शोभराज की गिरफ्तारी की असली कहानी

रिटायर्ड भारतीय डिप्लोमैट बता रहे हैं वो किस्सा, जिसके बाद सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज की नेपाल में गिरफ्तारी हुई थी.

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2 अप्रैल 2021 को नेटफ्लिक्स पर आठ भागों वाली ड्रामा सीरीज ‘द सरपेंट’ रिलीज हुई. इसका नाम सुनते ही मेरे जेहन में 2003 का वह दौर आ गया, जब काठमांडू में चार्ल्स शोभराज को गिरफ्तार किया गया था. उस समय मैं वहां पोस्टेड था.

मैं और जानने के लिए उत्सुक हुआ. फिर मैंने इंटरनेट मूवी डेटाबेस वेबसाइट (imdb.com) को चेक किया और उस सीरीज का रिव्यू पढ़ा. मैं जानना चाहता था कि जिन हालात में चार्ल्स शोभराज को पकड़ा गया था, क्या उसका जिक्र इस सीरीज में है. क्या सीरीज में जोसफ नाथन या एस. रमेश जैसे कैरेक्टर हैं? नहीं.

लेकिन इस बदनाम सीरियल किलर की गिरफ्तारी ऐसे हुई थी.

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रिटायर्ड भारतीय डिप्लोमैट बता रहे हैं वो किस्सा, जिसके बाद सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज की नेपाल में गिरफ्तारी हुई थी.
चार्ल्स शोभराज
(फोटो: रॉयटर्स)
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गिरफ्तारी के एक दिन पहले नेपाल में चार्ल्स शोभराज

शोभराज 1 सितंबर, 2003 को काठमांडू पहुंचा था और उसने अपने लिए थामेल होटल बुक किया था. यह विडंबना थी कि उसने डाउनटाउन काठमांडू में रहने का फैसला किया था, क्योंकि थामेल वह जगह है जहां 1975 में हिप्पियों का जमावड़ा होता था. थामेल के ठीक सामने वह मशहूर फ्रीक स्ट्रीट थी जो हशीश कैफे के लिए जानी जाती है.

हालांकि, समय के साथ मेरी याददाश्त धुंधली हो गई है लेकिन मुझे याद है कि शोभराज उस दिन लोगों से मिल रहा था और बातें कर रहा था. वह या तो पश्मीना एक्सपोर्ट बिजनेस की बातें कर रहा था, या फिर हिमालय में मिनरल वॉटर प्लांट में इनवेस्ट करने की.

शोभराज एक पक्का जुआरी था. इसीलिए शाम काठमांडू के कैसीनों में बिताया करता था. वहां वह ज्यादातर बैकारैट खेलता था, और कभी कभी ब्लैकजैक.

द हिमालयन टाइम्स (टीएचटी) के एडवाइजर जोसफ नाथन (जोई) एक अनुभवी पत्रकार थे. उन्हें भी कैसीनो में ब्लैकजैक खेलने का नया-नया शौक लगा था. इसी के चलते सितंबर की एक शाम को वह सेंट्रल काठमांडू के होटल याक एंड येती के कैसीनो रॉयल में जा पहुंचे जोकि बिल्कुल जेम्स बॉन्ड सरीखी फिल्मों के सेटअप जैसा था. यह उसी समय की बात है, जब शोभराज काठमांडू पहुंचा था.

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काठमांडू के कैसीनो में एक गंजा शख्स

जोई की उत्सुकता दोगुनी हो गई, जब उसने एक बुजुर्ग और गंजे शख्स को कैसीनो में देखा जो कुछ कुछ शोभराज जैसा दिखता था. हालांकि, वह चश्मा और बैरेट टोपी लगाए शोभराज की चिरपरिचित छवि से मिलता जुलता नहीं था.

फिर भी जोई पत्रकार था, इसी नाते उसकी प्रवृत्ति उसे बार-बार इस बात का भरोसा दिला रही थी कि वह शख्स शोभराज ही है. उसने गेस्ट रिलेशंस मैनेजर से अनुरोध किया कि वह शोभराज की पूरी आवभगत करे ताकि वह यहां से चेकआउट न करे. इसी के साथ उसने अपने अखबार के कलीग्स से कहा कि वे एक छोटी सी टीम बनाकर शोभराज के आगे-पीछे लगे रहें. सबूत इकट्ठा करने के लिए उन्होंने थामेल में उसकी कई तस्वीरें खींची.

शोभराज अब बैरेट की जगह बेसकैप लगाने लगा था और उसकी उम्र इतनी हो चुकी थी कि पत्रकारों के लिए उसका मिलान उस कुख्यात अपराधी से करना मुश्किल हो रहा था. एक या दो बार पूछने पर उसने शोभराज होने से इनकार किया. वैसे बिना तैयारी वाला यह सर्विलांस कुछ दिनों तक चलता रहा.

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जब मैंने कैसीनो में चार्ल्स शोभराज को पहचाना

चूंकि, मैंने भी दिलचस्पी दिखाई थी, तो जोई ने मुझसे कहा कि वह मुझे ब्लैकजैक खेलना सिखाएगा. हालांकि, 2003 में काठमांडू के कैसीनो में जाना बुरा नहीं माना जाता था. तब यह शाम की एक मजेदार आउटिंग होती थी. तरह-तरह के लोग और अच्छा खाना मिलता था. पर फिर भी डिप्लोमैट होने की वजह से मुझे कैसिनो जाने में हिचकिचाहट होती थी.

वह 16 सितंबर, 2003 का दिन था. मैं अपने एक बिजनेसमैन दोस्त के साथ पहली बार कैसीनो रॉयल पहुंचा. हम दोनों को ही ब्लैकजैक की बारीकियां सीखनी थीं. जोई ने हमें कई बार सिखाया कि 21 और उससे आगे कैसे पहुंचा जाता है. इस बीच वह इधर-उधर घूमता रहा, पर कुछ ही समय बाद वापस आ गया. वह मुझसे बार-बार कह रहा था कि उसके साथ चलूं. फिर उसने दूसरी मेज पर बैठे एक शख्स की तरफ इशारा किया और मुझसे पूछा कि क्या मैं उसे पहचानता हूं.

करीब से देखने के बाद मेरा जवाब था, “मच्चन (तमिल में दोस्त के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द), यह 100 परसेंट चार्ल्स शोभराज है, हूबहू.”
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यह इत्तेफाक ही था कि शोभराज कैसीनो में था और उसी शाम जोई को उसके वहां होने का सबूत मिल गया था. लेकिन काठमांडू में हम सबके एक अच्छे दोस्त की बीवी के इंतेकाल की दुखद खबर आई और हमारी पार्टी बीच में ही खत्म हो गई. मैं अपने बिजनेसमैन दोस्त के साथ उस दोस्त को ढांढस बंधाने पहुंच गए.

लेकिन जोई उस स्कूप के लिए दौड़ा जिसे वह इतने दिनों से पका रहा था.

रिटायर्ड भारतीय डिप्लोमैट बता रहे हैं वो किस्सा, जिसके बाद सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज की नेपाल में गिरफ्तारी हुई थी.
द हिमालयन टाइम्स ने 17 सितंबर, 2003 को काठमांडू में चार्ल्स शोभराज के मौजूद होने का खुलासा किया
(फोटो: Author)
रिटायर्ड भारतीय डिप्लोमैट बता रहे हैं वो किस्सा, जिसके बाद सीरियल किलर चार्ल्स शोभराज की नेपाल में गिरफ्तारी हुई थी.
17 सितंबर को द हिमालयन टाइम्स में चार्ल्स शोभराज पर जोसफ नाथन का स्कूप
(फोटो: Author)
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दो टूरिस्ट्स की हत्या के 28 साल बाद शोभराज नेपाल में गिरफ्तार किया गया

द हिमालयन टाइम्स के 17 सितंबर के संस्करण की हेडलाइन्स ऐलान कर रही थीं कि ‘द सरपेंट’ काठमांडू में अज्ञात रूप से मौजूद है. इसके बाद नेपाल पुलिस हरकत में आ गई. पर शोभराज को जैसे यह पता ही नहीं था कि पुलिस उसे ढूंढ रही है, और थामेल में होटलों पर छापा मार रही है. 18 सितंबर की शाम को पुलिस ने उसे कैसीनो रॉयल में देखा और 1975 में नेपाल में दो टूरिस्ट- कनाडा के लॉरेंट कैरिरे और अमेरिका के कोनी जो ब्रॉन्जिच की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया.

शोभराज ने पेरिस के सुरक्षित और शांत माहौल को छोड़कर 2003 में काठमांडू जाने का फैसला क्यों किया. तिहाड़ से निकलने के बाद वह 1997 में फ्रांस चला गया था. फिर वह नेपाल क्यों गया जबकि वह जानता था कि वहां गिरफ्तारी का वॉरेन्ट उसका इंतजार कर रहा है. अब भी इस बारे में अटकलें लगाई जाती हैं. उसने खुद ही इस गुत्थी को सुलझाया.

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शोभराज नेपाल क्यों आया, इसकी अटकलें लगाई जाती हैं

गिरफ्तारी के समय शोभराज ने नेपाल पुलिस को बताया कि पेरिस में उसकी एक फिल्म प्रोडक्शन कंपनी है और वह स्थानीय हैंडीक्राफ्ट्स पर टीवी डॉक्यूमेंटरी बनाने के लिए काठमांडू आया था.

2014 में एक इंटरव्यू में उसने कहा, वह सीआईए की तरफ से एक स्टिंग ऑपरेशन करने के लिए नेपाल आया था ताकि अफगानी तालिबान और चीनी ट्रायड्स यानी चीन की सीक्रेट सोसायटी के बीच हेरोइन की तस्करी की मिलीभगत का पर्दाफाश किया जा सके. हालांकि इस दावे पर संदेह है.

दरअसल, तिहाड़ में जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी नेता मसूद अजहर भी बंद था और शायद इसी के चलते शोभराज तालिबान को जानता था. और, ट्रायड्स को वह तब से जानता था, तब हांगकांग में रहा करता था.

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शोभराज उर्फ बिकिनी किलर उर्फ द सरपेंट की उम्र अब 76 साल है. 20 अगस्त 2004 को उम्र कैद मिलने के बाद से वह काठमांडू की जेल में बंद है. बताया जाता है कि उसकी याददाश्त चली गई है, यानी उसे डिमनेशिया हो गया है. वह न तो लोगों को अच्छी तरह से पहचानता है, और न ही उसे बीती बातें याद हैं.

शोभराज को लगता होगा कि काठमांडू में शायद ही उसे कोई पहचान पाएगा. आखिर उसने हत्याएं तो 28 साल की उम्र में की थीं और उसके बाद फरार हो गया था. यह उसकी बदकिस्मती थी कि एक बाज सी नजर वाला पत्रकार और एक उभरता हुआ कार्डशेपर-कम-डिप्लोमैट सही वक्त पर सही जगह पर मौजूद थे, लेकिन उसके लिए समय भी गलत था, जगह भी.

(एस रमेश कैबिनेट सेक्रेटेरियट में एडीशनल सेक्रेटरी रहे हैं. वह @shanramesh1459 पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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