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पठानकोट हमला: पाकिस्तान के JIT दौरे से फिर शर्मसार हुआ भारत

सरकार केवल इस बात पर अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने बड़ी ही शालीनता से JIT को पठानकोट हमले की जांच की इजाजत दे दी.

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हफ्तों की अटकलबाजियों के बाद आखिरकार पाकिस्तानी की संयुक्त जांच टीम (JIT) पठानकोट की उस जगह पर पहुंच ही गई, जहां से जनवरी की शुरुआत में जैश-ए-मोहम्मद के संदिग्ध आतंकी घेरा डालने के बाद एयरफोर्स बेस में घुसकर कुछ गरुड़ कमांडो समेत सात लोगों को मार डालने में कामयाब हो गए थे.

उस दौरान नरेंद्र मोदी सरकार के अलग-अलग महकमों ने शर्मसार करने वाले बयान दिए. कुछ ने बताया कि आतंकी कैसे भारतीय धरती पर घुसे. कुछ ने हाई सिक्योरिटी वाले एयरबेस में घुसे हथियारबंद लोगों की संख्या बताई, तो कुुछ ने सत्ता के गलियारों और वारदात स्थल पर आतंकियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशनों के तरीकों का खाका पेश किया.

लेकिन मई, 2014 में सत्ता में आने के बाद पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर गंभीर चुनौती झेल रही मोदी सरकार की खासी किरकिरी हुई. सरकार के पास इस अहम सवाल का कोई जवाब नहीं था कि आखिरकार आतंकी अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पठानकोट में कैसे घुस आए.

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एसपी को यूं ही छोड़ दिया

मीडिया की पड़ताल से पता चलता है कि पठानकोट से सटे गुरदासपुर के एसपी और उसके दो साथियों ने इस तरह काम किया, जो देश की सुरक्षा के लिए नुकसानदेह था. उनके इस तौर-तरीकों की वजह से ही आतंकियों को 31 दिसंबर और 1 जनवरी के बीच रात को ही एयरबेस में घुसने में कामयाबी मिल गई.

उस दौर की मीडिया रिपोर्टें इस बात की ओर बेहद मजबूती से इशारा करती हैं कि गुरदासपुर के एसपी सलविंदर सिंह की सीमापार के ड्रग माफिया से संदिग्ध मिलीभगत ने ही पठानकोट के सीमाई गांव में आतंकियों को घुसने में मदद दी होगी. यहीं से वे मददगार एसपी की आड़ लेकर पठानकोट एयरबेस पहुंचने में कामयाब हुए होंगे.

लेकिन जिस एनआईए को जांच का जिम्मा सौंपा गया था, उसने ईमानदारी से अपना काम करने के बजाय इस पूरे मामले को उलझा दिया. उसने मामले और खास कर एसपी के ही अपराध पर चादर डाल दी.

इससे शर्मनाक और क्या हो सकता था कि पूछताछ के लिए तलब किए गए गुरदासपुर के एसपी ने बड़े ही शान से लाई डिटेक्टर का सामना किया और बेदाग साबित हो गए, जबकि पूरी दुनिया जानती थी कि खुद को बेकसूर साबित करने के लिए वह कैमरे के सामने झूठ बोल रहे हैं. एनआईए एसपी को साफ छोड़ दिया गया, जबकि उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लेना चाहिए थे.

स्नैपशॉट

बलि का बकरा बनी राष्ट्रीय सुरक्षा

  • अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर पठानकोट में आतंकियों के घुसने से मोदी सरकार की खासी किरकिरी हुई. एनआईए ने इस पूरे मामले और खास कर एसपी के अपराध पर चादर डाल दी.
  • एसपी को तुरंत गिरफ्तार कर लेना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय एनआईए ने उन्हें छोड़ दिया.
  • इस घटना के लिए मोदी सरकार के प्रमुख कर्ताधर्ताओं और गठजोड़ को बरकरार रखने के लिए बेकरार बीजेपी-अकाली नेता को जिम्मेदार ठहराना चाहिए.
  • पाकिस्तान की जेआईटी को जांच के लिए बुलाकर एनआईए की अहमियत कम कर दी गई. एनआईए को स्वतंत्र और उसके तरीके से काम ही हीं करने दिया गया.

देश की सुरक्षा पर राजनीति भारी

इस मामले ने साफ कर दिया कि देश की सुरक्षा पर राजनीति और खास कर गठबंधन की राजनीति को तरजीह मिली. इस घटना को लिए केंद्र सरकार के कुछ प्रमुख कर्ताधर्ताओं और कुछ अकाली और बीजेपी नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए. दरअसल राज्य में इन दोनों की राजनीति की जमीन खिसकती जा रही है और इसी वजह से ये दोनों एक-दूसरे के साथ बने रहने को बेकरार हैं.

इस मामले के दोषियों के अपराध पर चादर डालना इसी का नतीजा है. पूरा मामला राजनीतिक स्वार्थ की बलिवेदी पर देश की सुरक्षा की बलि का है. दो टूक कहें, तो यह सीधे-सीधेे सुरक्षा एजेंसी के कामकाज में दखलदांजी का मामला है.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इस इलाके में आतंकवादियों से लोहा लेने के अनुभवी सेना की स्पेशल फोर्स की बजाय एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) पर भरोसा किया, जबकि एनएसजी को शहरी और किसी खास बंद इलाके में कार्रवाई के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. ऐसे में अफरातफरी मचनी ही थी और वही हुआ भी. एयरबेस में बेवजह कीमती जानें गईं.

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क्या NIA की अहमियत कम की गई?

पाकिस्तानी JIT के दौरे से ऐसा लग रहा है कि भारतीय जांच एजेंसियां दोयम दर्जे की हैं. उनके पास पेशेवर यो ग्यता नहीं है. इधर की रिपोर्टों से ऐसा लगता है कि सरकार JIT को गुरदासपुर के एसपी से पूछताछ की इजाजत देगी.

यह भी जाहिर है कि वह एसपी अपने पिछले बयानों पर ही टिके रहेंगे. असल मुद्दा एसपी के जौहरी दोस्त राजेश वर्मा और रसोइए मदन गोपाल से पूछताछ का है. क्या सरकार JIT को इसकी इजाजत देगी.

बहरहाल, सरकार अपनी पीठ इस बात पर थपथपा रही है कि उसने बड़े ही शालीनता से JIT को पठानकोट हमले की जांच की इजाजत दे दी, लेकिन इसके इस कदम से NIA की अहमियत कम हुई है. NIA को आजाद होकर अपने तरीके से काम करने की इजाजत ही नहीं दी गई.

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