80 और 90 के दशक में पैदा हुए लोगों के लिए याहू मैसेंजर कितना खास और दिल के करीब था, ये सिर्फ वो लोग ही समझ सकते हैं. भारत में नए-नवेले आए इंटरनेट के सागर में गोता लगाकर मनोरंजन और टाइम पास करने का सबसे कारगर साधन हुआ करता था याहू मैसेंजर. उम्रभर की पक्की दोस्ती से लेकर शादी में तब्दील हुए पवित्र प्यार तक, और फ्लर्टिंग भरी दिल्लगी से लेकर दिल टूटने तक की अनगिनत अनकही दास्तानों का गवाह रहा है याहू मैसेंजर.
इसे इस्तेमाल करने वाले लोगों के पास इससे जुड़ी तमाम खूबसूरत और दिलचस्प यादों का इतना बड़ा पिटारा है कि जब इसके बारे में बात करने बैठो, तो चेहरे पर अपने आप मुस्कान आ जाती है. लेकिन अफसोस, वॉट्सऐप और स्नैपचैट के इस जवां दौर में याहू मैसेंजर बूढ़ा हो चला था. लिहाजा, खुद को खत्म होने से रोक न पाया और 17 जुलाई 2018 को याहू ने इसे हमेशा के लिए बंद कर दिया.
जब याहू ने अपने इस ऐतिहासिक इंस्टेंट मैसेजिंग सर्विस को बंद करने का ऐलान किया, तभी से मन में एक अजीब सी हलचल महसूस होने लगी. ऐसा लगा, मानो अपने किसी पुराने साथी ने दुनिया को अलविदा कह दिया हो. युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते हुए लड़कपन से लबरेज अतीत की उन सुनहरी यादों से मैं भावविभोर होने लगा. आंखों के आगे उस दौर के मंजर तैरने लगे. आखिर उन अनगिनत दास्तानों में कुछ दिलचस्प दास्तान मेरे हिस्से की भी तो हैं.
पहली पहचान
साल 2001 की गर्मियों का मौसम था. 12वीं के रिजल्ट आने का बेसब्री से इंतजार हो रहा था. एक दिन मोहल्ले के एक दोस्त के साथ फिल्म देखने का प्लान बना. उसी के पिता की बाइक लेकर हम दोनों फिल्म देखने पहुंचे. लौटते वक्त दोस्त मुझे साथ लेकर एक साइबर कैफे पहुंचा और याहू मैसेंजर ओपन करके चैटिंग में मसरूफ हो गया. उस दिन मैंने पहली बार इसके बारे में जाना. पहली झलक में ही मुझे याहू मैसेंजर ने अपनी ओर आकर्षित कर लिया.
मुझे याद है कि मैं उससे एक के बाद एक इतने सारे सवालों की बौछार कर रहा था कि वो ठीक से चैट नहीं कर पा रहा था. इस नई और अनोखी चीज के बारे में मन में बहुत से कौतूहल एक के बाद एक जन्म ले रहे थे. दोस्त ने भी धीरज रखते हुए मेरे हर सवाल का जवाब दिया और मैसेंजर से मुझे रूबरू करवाया. फिर मेरी गुजारिश पर दोस्त ने मेरी भी एक याहू आईडी बना दी. सच है, किसी भी तरह की लत लगने के पीछे इन्हीं जिगरी दोस्तों का हाथ होता है.
उस दौर में स्टाइलिश और बनावटी नाम वाले याहू आईडी का फैशन था. ‘coolguy007’, ‘dreamgal2588’, ‘loverboy4u’ और ‘sexykudi’ जैसे आईडी से ही मैसेंजर के ‘चैट रूम’ भरे होते थे. मेरे दोस्त की आईडी थी ‘wanabefriends’. लिहाजा, इसी फैशन के तर्ज पर मेरी भी आईडी बनी- ‘richyrich_143’. जब ये आईडी बन गई, उस वक्त मैं सातवें आसमान पर था, मानो कोई किला फतह कर लिया हो.
रोमांच से लेकर लत तक
वैसे तो उन दिनों मेरी शामें फुटबॉल खेलते हुए बीतती थी, लेकिन मैसेंजर से रूबरू होने के बाद मैं गेम में गोल मारने की बजाए फुटबॉल ग्राउंड से अक्सर 'गोल मारकर' साइबर कैफे जाने लगा. मेरे घर से सबसे नजदीकी साइबर कैफे करीब आठ किलोमीटर दूर था. हाथ में साइकिल थी और जेब में पॉकेट मनी के पैसे. लिहाजा, चैटिंग के नए रोमांच की शुरुआत हो चुकी थी. उस कैफे का रेट था 30 रुपए प्रति घंटा. लेकिन जल्द ही उसके नजदीक एक और साइबर कैफे खुल गया और प्रतिस्पर्धा में दोनों कैफे ने अपने रेट घटाकर 25 रुपए प्रति घंटा कर दिया.
कहावत है कि नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है. ये आदत कब लत में बदल गई, पता ही नहीं चला.
दोस्तों में भी फैला दिया 'वाइरस'
जी श्रीनिवास राव की अंग्रेजी कहानी 'पेन पाल' को सिलेबस में पढ़ने के बाद से ही अजनबियों से दोस्ती को लेकर एक उत्सुकता मन के किसी कोने में दबी थी. याहू मैसेंजर ने उस उत्सुकता को मानो पंख दे दिए हों. धीरे-धीरे अपने शहर और दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े शहरों के अजनबी लड़के-लड़कियों से दोस्ती होने लगी.
इस नए तरह के रोमांच से भरे अपने अनुभवों को मैंने अपने स्कूल के दो पक्के दोस्तों से साझा किया. मैं अक्सर उनसे अपने चैटिंग के किस्सों की शेखी बघारता और मेरी अहंकार से भरी बातों तो सुनकर वे बड़े प्रभावित होते. मेरी तरह जल्द ही वे भी इस आदत के 'लती' हो गए. अब हम तीनों एकसाथ अक्सर शाम को साइकिल चलाकर साइबर कैफे जाया करते.
असफल ऑनलाइन प्रेम कहानी
दुनियाभर के तमाम लोगों की तरह याहू मैसेंजर की बदौलत मुझे भी 'टीनेज वाले ऑनलाइन प्यार' का अनुभव हुआ. लेकिन वो रिश्ता ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया. लड़की दिल्ली के एक संपन्न परिवार से थी, जबकि मैं कानपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से. उसके घर में ही इंटरनेट था. लेकिन प्यार तो समय मांगता है, जो मैं उसे दे नहीं पाता था. वो जब भी फुर्सत में होती, मैसेंजर पर लॉगिन करके मेरे ऑनलाइन आने का इंतजार करती. लेकिन मैं तो कभी-कभार ही साइबर कैफे जा पाता.
उस दौर में मोबाइल नहीं थे, घर में कंप्यूटर और इंटरनेट भी नहीं था. घर का लैंडलाइन नंबर साझा करने की हिम्मत मुझमें थी नहीं. भेद खुलने का डर था. इसी ‘कम्युनिकेशन गैप’ की वजह से परवान चढ़ते प्यार का सूरज जल्द ही अस्त हो गया. मैसेंजर से शुरू हुई प्रेम कहानी मैसेंजर पर ही खत्म हो गई.
कई महीनों बाद अब ये भी समझ आने लगा था कि इस लत की वजह से मैं जरूरत से ज्यादा पैसे फूंक चुका हूं. सो धीरे-धीरे मैंने इससे दूरी बनानी शुरू कर दी और एक बार फिर अपने 'पहले प्यार' फुटबॉल की ओर लौट आया.
याहू मैसेंजर ने मुझे कुछ अच्छे दोस्त दिए, जिनमें से आज भी संपर्क बना हुआ है. आज भले ही याहू मैसेंजर ने दुनिया को अलविदा कह दिया हो, लेकिन उस दौर का क्रेज और उससे जुड़ी तमाम यादें जेहन में हमेशा जिंदा रहेंगी.
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