वित्तमंत्री ने वर्ष 2023-24 के बजट के जरिए समृद्ध और समावेशी भारत में “विकास के सुफल अन्य वर्गों सहित अनुसूचित जनजातियों तक” पहुंचने का दावा किया है. इस बजट में विशेष तौर पर असुरक्षित आदिवासी समूह (पार्टीकुलरली वलनेरेबल ट्राइबल ग्रुप यानी पीवीटीजी) के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन शुरू करने की घोषणा की गई है. इस मिशन के तहत वित्तमंत्री ने आगामी तीन सालों में 15 हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराने की घोषणा की है.
इस घोषणा के अनुसार इस राशि से “पीवीटीजी परिवारों और उनके पर्यावास (हैबिटैट) को सुरक्षित आवास, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य और एवं पोषण, सड़क और दूरसंचार संपर्कता, और संधारणीय आजीविका के अवसरों जैसी बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह उपलब्ध कराई जाएंगी.“ वित्तमंत्री की घोषणाओं को करीब से देखा जाना जरूरी है.
आदिवासियों कि सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल 121.08 करोड़ आबादी में 10.45 करोड़ यानी 8.6% व्यक्ति अनुसूचित जनजाति वर्ग से थे. इनमें लगभग 5.25 करोड़ पुरुष और 5.2 करोड़ महिलाएं थीं.
जनगणना के इन्हीं आंकड़ों के अनुसार आदिवासियों में 5.28 करोड़ (50.53%) लोग निरक्षर थे.
एक विश्लेषण के अनुसार देश के लगभग तीन-चौथाई (74.1%) आदिवासी बेहद गरीब हैं. संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की सरकार के दौरान नेशनल अड्वाइजरी काउन्सल ने कुल अनुसूचित 705 आदिवासी समूहों में से 75 आदिवासी समूहों को विशेष तौर पर असुरक्षित आदिवासी समूह (पार्टीकुलरली वलनेरेबल ट्राइबल ग्रुप) मानते हुए उनके संरक्षण और विकास के लिए विशेष प्रयास करने की सिफारिशें की गईं थीं. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार इन समूहों की कुल आबादी लगभग 28 लाख थी.
आदिवासियों की बजट से स्वाभाविक उम्मीदें
देश के अधिकांश आदिवासी वन-आच्छादित क्षेत्रों में रहते हैं. उनकी एक बड़ी आबादी पारंपरिक खेती, वन-आधारित उपज और उत्पादों के संग्रहण पर निर्भर है. आदिवासी बड़े पैमाने पर खेतिहर और खनिज मजदूर का काम भी करते हैं. आदिवासियों का शिक्षित वर्ग सरकारी, निजी क्षेत्र और अनेकों प्रकार के उद्यमों में सम्मानजनक आजीविका की तलाश में हैं.
वित्तमंत्री ने अपनी घोषणा से खुद इंगित किया है कि गहन वन-क्षेत्रों में रहने वाले पीवीटीजी आदिवासी परिवार आवास, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, एवं अन्य सरकारी सेवाओं के अभाव से पीड़ित हैं. अतः बजट से उनकी उम्मीदें इन्हीं आवश्यकताओं से जुड़ी हैं. क्या वर्ष 2023-24 का बजट आदिवासियों की इन जरूरतों को पूरा करता है?
बजट 2023-24 और आदिवासी
बजट 2023-24 का कुल बजट 4503097 करोड़ रुपये का है, जोकि पिछले साल के बजट अनुमानों से 558118 करोड़ रुपये (14.14%) अधिक है. सैद्धांतिक तौर पर सरकार को यदि आदिवासियों हेतु बजट को पिछले साल के आबंटित बजट के स्तर पर रखना है, तो उनके बजट में कम से कम 14% की बढ़ोत्तरी होनी चाहिए.
वर्ष 2023-24 का आदिवासी बजट पिछले साल के बजट अनुमान के मुकाबले 33% से अधिक है, जोकि काफी उत्साहवर्धक है. इस 33% वृद्धि का क्या तात्पर्य है. कहीं यह “विस्तार में शैतान” की कहावत को तो चरितार्थ नहीं करता?
दो हिस्सों में बंटे केन्द्रीय आदिवासी बजट में एक हिस्सा जनजाति मंत्रालय जोकि देश में अनुसूचित जनजातियों सम्बंधित नीतियों, कार्यक्रमों और उनके क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है, की मांग संख्या 100 के तहत होता है.
दूसरा हिस्सा देश के अन्य मंत्रालयों और विभागों से संबंधित बजट मांगों में आदिवासियों की हिस्सेदारी से संबंधित होता है, जो “सारणी 10 ख” में दिया जाता है.
जनजाति मंत्रालय की मांग संख्या 100 के तहत इस बार कुल 12461.88 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. यह देश के कुल बजट का मात्र 0.28% और अनुसूचित जातियों के बजट का मात्र 10.36% है.
जनजाति मंत्रालय में आदिवासियों के बजट आवंटन को 21 मदों में आवंटित किया गया है. इनमें से ग्यारह मदों में बजट राशि में पिछले साल के मुकाबले वृद्धि की गई है. आदिवासी बजट की 8 मदों में बजट आवंटन को पिछले साल के मुकाबले कम कर दिया गया है. दो मदों का आबंटन पिछले साल के बजट के बराबर ही रखा गया है. इस वर्ष के बजट में इस मद में 256.14 करोड़ रुपये का प्रावधान दिखाया गया है.
अनुसूचित जनजातियों के बजट में पिछले साल के मुकाबले प्रमुख बजट वृद्धियों में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के बजट में 9.63 करोड़, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त विकास निगम में 15 करोड़, अनुसूचित जनजाति कल्याण में कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं हेतु 30 करोड़ रुपये, पोस्ट-मेट्रिक छात्रवृति में 5.77 करोड़, विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पी वी टी जी एस) के विकास के लिए 4.14 करोड़, जनजातीय महोत्सव, अनुसन्धान, सूचना और जनशिक्षा की मद में 10 करोड़, निगरानी और मूल्यांकन में 8 करोड़, प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना में 1485 करोड़, राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को प्रशासनिक व्यय की मद में 53.22 करोड़ और संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत अनुदान 122.10 करोड़ रुपये का आबंटन शामिल है.
अनुसूचित जनजातियों के बजट में पिछले साल के मुकाबले बजट कटौतियों में उत्तर-पूर्व क्षेत्र के जनजातीय उत्पादों के प्रोत्साहन, मार्केटिंग व लोजीस्टिक विकास की मद में 87.53 करोड़, अनुसूचित जनजातियों हेतु वैंचर कैपिटल फ़ंड में 20 करोड़, प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन में 110.51 करोड़, अनुसूचित जनजाति हेतु प्री-मेट्रिक छात्रवृति में 7.37 करोड़, अनुसूचित जनजाति उपघटकों को विशेष केन्द्रीय सहायता में 1354.38 करोड़, और जनजाति अनुसंधान संस्थान में 2.36 करोड़ रुपये की कटौती शामिल है.
इसके अलावा केन्द्रीय बजट में इस बार लघु वन उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और जनजातीय उत्पादों के विकास और विपणन के लिए ट्राइफेड को दिए जाने वाले संस्थागत समर्थन के तहत कोई आबंटन नहीं किया गया है.
वित्तमंत्री द्वारा घोषित प्रधानमंत्री पीवीटीजी विकास मिशन की घोषणा की है जिसका स्वागत होना चाहिए. लेकिन यह कोई नया प्रयास नहीं है. वर्ष 2009-10 में केंद्र सरकार ने इस में 155 करोड़ खर्च किया जो वर्ष 2015-16 में 213.54 करोड़ रुपये हो गया. वर्ष 2021-22 सरकार ने 160 करोड़ रुपये का वास्तविक व्यय बजट दस्तावेजों में दिखाया है.
जैसा कि पहले इंगित किया गया है कि अमृतकाल के इस पहले बजट में अनुसूचित जनजातियों के लिए वर्ष 2023-24 में आबंटित कुल बजट का 104467.83 करोड़ रुपये (87.41%) केवल 10 विभागों या मंत्रालयों द्वारा जनजातियों के डेवलपमेंट हेतु एक्शन प्लान में किया गया है.
सड़क परिवहन और हाइवे मंत्रालय में 23375 करोड़
ग्रामीण विकास विभाग में 20400 करोड़
कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग में 9811.05 करोड़
खाद्य और जन वितरण विभाग 9359.15 करोड़
उर्वरक विभाग में 7699.72 करोड़
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में 7615.90 करोड़
विद्यालयी शिक्षा और साक्षरता विभाग में 6824.04 करोड़
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग में 4830.41 करोड़
महिला और बाल विकास मंत्रालय में 2166 करोड़ रुपये का आबंटन शामिल है.
देश के गैर-जनजाति मंत्रालयों द्वारा अनुसूचित जनजाति के विकास के लिए लगभग 90% बजट का आवंटन से चिंता होना स्वाभाविक है. आदिवासी समाज एक स्टेकहोल्डर की तरह बदलाव और विकास के प्रणेता बनाना चाहता है, केवल उपभोगी या लाभार्थीमात्र नहीं. बड़े पैमाने पर इन मंत्रालयों को गैर-जनजाति केंद्रित बजट आवंटन से आदिवासियों के विकास की प्रमुख समस्याओं का हल होने कि गुंजाइश कम है. इसलिए अमृतकाल के पहले बजट में भी आदिवासी न्याय की तलाश कर रहे हैं.
(लेखक नेशनल कोन्फ़ेडेरेशन ऑफ दलित एंड आदिवासी ओर्गानाईजेशन्स (नैकडोर) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
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