ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में ऋषि सुनक (Rishi Sunka) की पहली भारत यात्रा ने काफी रोमांच पैदा किया. लेकिन G20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) के दौरान असल सुर्खियां बटोरीं, उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति ने जो भारतीय अरबपति कारोबारी और इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति की बेटी हैं.
पूरे वीकेंड के दौरान अक्षता पर सबका ध्यान कुछ ज्यादा ही गया. चूंकि अमेरिका और कनाडा के राष्ट्राध्यक्षों की हाई प्रोफाइल बीवियां नदारद थीं. और, डाउनिंग स्ट्रीट के पास अक्षता की तस्वीरों की भरमार थी. जैसे उन्होंने ब्रिटिश काउंसिल का दौरा किया, बच्चों के साथ फुटबॉल खेलने के लिए अपने जूते उतार फेंके. नई दिल्ली में हवाईजहाज से उतरने से ऐन पहले अपने पति की टाई को दुरुस्त किया.
सुनक ने अपने साथ आए पत्रकारों से कहा कि उनकी भारतीय विरासत और पारिवारिक संबंधों को देखते हुए यह यात्रा "बहुत ही खास" थी. इसके साथ ही उन्होंने कहा, "मैंने देखा कि कहीं मुझे 'भारत का दामाद' कहा गया, जो कि मेरे ख्याल से प्यार दर्शाने का तरीका है. मैं दोबारा आने के लिए उत्साहित हूं और अक्षता मेरे साथ है, यह बहुत अच्छी बात है.”
भारत-यूके FTA में अभी वक्त है
सुनक की “भारत के दामाद” वाली टिप्पणी पर एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में ग्लोबल पब्लिक हेल्थ की भारतीय मूल की प्रोफेसर देवी श्रीधर ने कहा, “वह भारत के साथ व्यापार समझौता करना चाहते हैं और इसके लिए यह खास तौर से जरूरी है, इस सच्चाई के मद्देनजर कि हम यूरोप के साथ उस तरह से जुड़े हुए नहीं हैं.” इसीलिए यह दूसरों के साथ घनिष्ठता दिखाने की कोशिश है.
असल में, किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की पूर्व पत्नी भी भारतीय मूल की थीं. तो, भारत तकनीकी रूप से दो दामादों का दावा कर सकता है.
ब्रिटेन में इस बात को लेकर काफी अटकलें थीं कि क्या भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर कोई महत्वपूर्ण घोषणा होगी. बदकिस्मती से फिलहाल इस समझौते पर दस्तखत के आसार नहीं दिख रहे.
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने से पहले सुनक ने कहा था कि यूके-भारत व्यापार समझौते की "गारंटी नहीं है". सौदे के महत्व को स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा था, "यही कारण है कि हम एक महत्वाकांक्षी और व्यापक मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में काम कर रहे हैं." लेकिन यह निश्चित नहीं है: इन चीजों में बहुत काम और बहुत समय लगता है.''
उन्होंने कहा कि वह एक ऐसा व्यापार समझौता सुनिश्चित करना चाहते हैं जो "ब्रिटिश लोगों के लिए काम करे." वह इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि वह किसी सौदे में जल्दबाजी नहीं करेंगे.
सुनक की भारत यात्रा में क्या खास रहा?
भारत और ब्रिटेन दुनिया की पांचवीं और छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं. ऐसी उम्मीदें थीं कि भारत-ब्रिटेन की बैठक मोदी के भव्य आवास पर होगी और यह एक तरह का फोटो-ऑप होगा. द गार्डियन ने लिखा, “लेकिन एक शानदार फोटो सेशन की बजाय, दोनों नेताओं ने कंक्रीट कॉम्प्लेक्स में एक उदासीन से कमरे में मुलाकात की, जहां भारत जी20 सम्मेलन की मेजबानी कर रहा था. हां, भारतीय प्रधानमंत्री के घर की यात्रा का लाभ, अपनी तमाम शानो-शौकत के साथ, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को मिलने वाला था.
इसमें कोई शक नहीं है कि व्यापार समझौता देर-सबेर होगा और ब्रिटेन अगले दशक में “भारत की तरफ झुकेगा भी, और उसके असर में भी होगा.”
जैसा कि न्यू स्टेट्समैन के पॉलिटिकल एडिटर एंड्रयू मार्र ने स्काई न्यूज को बताया: "1.4 बिलियन आबादी के साथ, अगर हम एक बड़ा (व्यापार) सौदा करते हैं, जोकि मुझे लगता है कि हम करेंगे, तो इसका मतलब होगा कि भारतीय पहले से ज्यादा संख्या में यहां आएंगे और ज्यादा बड़ी संख्या में अपने साथ पेंशन राशि लेकर वापस लौटेंगे. लेकिन..”, उन्होंने चेताया, “हर किसी को यह याद रखना होगा कि यह कांग्रेस वाला इंडिया नहीं है, यह बीजेपी वाला इंडिया है. वैसे इसे ज्यादा समय तक इंडिया भी नहीं कहा जा सकेगा. यह भारत हो सकता है, इंडिया नहीं.”
एक फोटो-ऑप भारत में और वायरल हुआ. सुनक और अक्षता दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर गए, यह उस विजिट की तस्वीर थी. उन्होंने कहा, "मुझे अपनी हिंदू जड़ों और भारत से अपने संबंधों पर बेहद गर्व है... एक गौरवान्वित हिंदू होने का मतलब है कि मेरा भारत और भारत के लोगों के साथ हमेशा जुड़ाव रहेगा."
पिछले महीने, सुनक ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मोरारी बापू की राम कथा में भाग लिया था, जहां उन्होंने कहा था, “मैं आज यहां एक प्रधानमंत्री के रूप में नहीं बल्कि एक हिंदू के रूप में हूं. मेरे लिए आस्था बहुत व्यक्तिगत है. यह मेरे जीवन के हर पहलू में मेरा मार्गदर्शन करती है.”
हालांकि, भारत के लिए एक महान क्षण माना गया, लेकिन सच्चाई यह है कि ब्रिटेन के पिछले कई प्रधानमंत्री भी मंदिर और गुरुद्वारे जा चुके हैं. यह बात और है कि सुनक अपने धार्मिक विश्वास को जब-तब जगजाहिर करते रहते हैं, जैसा कि कइयों का कहना है. जब वह सांसद बने थे, तब उन्होंने संसद में भगवत गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी.
लेकिन यह भी ध्यान देने की बात है कि मई में किंग चार्ल्स तृतीय के राज्याभिषेक के समय प्रधानमंत्री के रूप में सुनक ने एपिस्टल टू द कोलोसियंस भी पढ़ा था.
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का विश्वास, बहुसंस्कृतिवाद के लिए चुनौती नहीं
दरअसल, यह यूके का बहुसांस्कृतिक सिद्धांत है, जो हरेक व्यक्ति को अपने विश्वास/धर्म का पालन करने की आजादी देता है. ऐसे देश में जहां आधिकारिक धर्म ईसाई धर्म है, अन्य सभी धर्मों को समान दर्जा प्राप्त है. यह सभी धार्मिक वर्चस्ववादियों के लिए सीखने लायक सबक है.
जैसा कि श्रीधर खुद के बारे में कहती हैं, "मुझे लगता है कि बड़ी बात यह है कि, अमेरिकी लहजे वाले किसी भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक, जोकि मैं हूं, को कुछ इस तरह देखा जाता है कि हमारे पास अधिक से अधिक ग्लोबल नागरिक हैं, और उन्हें एक बक्से में नहीं रखना है- आप कहां हैं? हम दुनिया के हर हिस्से में थोड़ा थोड़ा हैं.”
इस देश में प्रधानमंत्री का धर्म महत्वहीन है और इसे ऐसे ही रहना चाहिए. पिछले 30 वर्षों में धर्म के प्रति ब्रिटिश समाज की समझ में बदलाव आया है, यही कारण है कि सुनक का हिंदू होना यहां प्रासंगिक नहीं है.
लोग खुद की पहचान को धार्मिक से ज्यादा आध्यात्मिक मानते हैं. इस बदलाव का नतीजा यह है कि राजनीति भी उसी खुलेपन को प्रतिबिंबित कर रही है, जहां यही आदर्श स्थिति मानी जाती है कि लोगों को अपनी मान्यताओं, आस्था का पालन करने दिया जाए.
यह ऐतिहासिक संयोग है कि सुनक, पहले पर्सन ऑफ कलर, किंग चार्ल्स तृतीय के शासनकाल के दौरान प्रधानमंत्री हैं जो बहुसंस्कृतिवाद के हिमायती रहे हैं, और ब्रिटेन में सार्वजनिक जीवन में निजी जीवन की विविधता और आध्यात्मिकता में अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं.
सुनक अक्षता का मंदिर दर्शन
हालांकि, सुनक-अक्षता के अक्षरधाम मंदिर दौरे को यहां कोई मीडिया कवरेज नहीं मिला, लेकिन यह देखा गया कि बिजनेस एग्जीक्यूटिव्स के एक डेलिगेशन के लिए प्लान्ड डिनर को रद्द करना पड़ा क्योंकि "शिखर सम्मेलन के दौरान शहर भर की सड़कों को जहां तहां से बंद किया गया था.” जैसी कि खबरें मिलीं.
एक दूसरी रिपोर्ट में दावा किया गया कि यह कपल "शहरव्यापी बंद की वजह से अपने पसंदीदा भारतीय रेस्तरां - हल्दीराम या सरवना भवन- में से एक में भी नहीं जा सके."
यूके के प्रधानमंत्री के लिए, दिल्ली शिखर सम्मेलन की सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने चीन के प्रधानमंत्री से मुलाकात की. इसमें उन्होंने "यूके के संसदीय लोकतंत्र में चीनी दखल के बारे में अपनी चिंताओं को साझा किया." फिलहाल यूके को सबसे ज्यादा चिंता चीन की जासूसी को लेकर है.
(नबनीता सरकार लंदन में एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह @sircarnabanita पर ट्वीट करती हैं. यह एक ओपनियन पीस है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)