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MP की पूर्व सीएम और अब शराब की बोतलों पर पत्थर फेंकने वाली उमा भारती को समझिए

उमा भारती की इस नाटकीयता के पीछे का क्या कारण है वो कैसे मजबूत होती बीजेपी से साइडलाइन होती चली गईं?

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एक समय में उग्र नेता और शक्तिशाली रहीं उमा भारती (Uma Bharti) ने ध्यान आकर्षित करने के लिए एक शराब की दुकान में जाकर बोतलों पर पत्थर दे मारा.

इस हफ्ते की शुरुआत में बीजेपी की उमा भारती ने भोपाल में एक शराब की दुकान में तोड़फोड़ की. उनके द्वारा पोस्ट किए गए एक वीडियो में भारती को शराब की बोतलों पर पत्थर फेंकते हुए दिखाया गया है. एक दिन बाद, उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर बताया कि उन्होंने क्षेत्र में महिलाओं के "सम्मान" की रक्षा के लिए इस काम को अंजाम दिया. उमा भरती राज्य में शराबबंदी की मांग कर रही हैं.

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मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री रही उमा भारती ने 2003 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को हटाने का काम किया था. उमा भारती का एक लंबा सफर रहा है, जब वो एक मुख्यमंत्री थी, लेकिन आज उन्हें अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. उमा भारती की इस नाटकीयता के पीछे क्या कारण है और इसका अंत क्या है?

पहले जानिए उमा भारती का अस्तित्व कैसे खतरे में आया?

अपने स्वतंत्र स्वभाव और 'मनमर्जी' व्यक्तित्व के लिए जानी जाने वाली, 2003 के चुनावों के दौरान उमा भारती का शानदार उदय हुआ. उन्होंने मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ एक दशक लंबे शासन को समाप्त करने के लिए एक जोरदार अभियान का नेतृत्व किया. कांग्रेस तब से मध्य प्रदेश में सत्ता से बाहर है. हालांकि 2018 में कम समय के लिए फिर से सत्ता में लौटी थी.

'राम जन्मभूमि आंदोलन' में सक्रिय रूप से शामिल रहीं उमा भारती ने 2003 में मुख्यमंत्री का पद संभाला, लेकिन केवल एक साल के लिए क्योंकि हुबली दंगों के मामले में उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ, जिसके कारण उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा यह दंगा 1994 में हुआ था.

कुछ महीने बाद, वह सार्वजनिक रूप से अपने 'गुरु' लालकृष्ण आडवाणी के साथ विवादों में दिखाई दीं, जिसके कारण उन्हें 'अनुशासनहीनता' को लेकर पार्टी से निलंबित कर दिया गया था. बाद में उन्होंने अपनी खुद की पार्टी, भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई, जिसे बहुत कम सफलता मिली.

जून 2011 में उमा की बीजेपी में वापसी हुई और उन्हें 2012 के चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने का काम सौंपा गया.

“उमा भारती ने सोचा था कि वह 2003 में चुनाव जीती थीं, लेकिन उनकी जीत का कारण दरअसल दिग्विजय सिंह के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर थी. फिर भी, पोस्टरों पर उमा का चेहरा था और जब उन्हें पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया, तो वह इस विश्वासघात को निगल नहीं पाई. उन्होंने इसके लिए काफी लड़ाई की लेकिन बीजेपी जब मजबूत होती चली गई तो उनकी आवाज और चुनौतियां केंद्रीय नेतृत्व तक नहीं पहुंच पाई”
वरिष्ठ पत्रकार, जिन्होंने नाम न बताने की शर्त पर बात की

इसके बाद उमा की छवि फीकी पड़ने लगी. पार्टी को बदनाम करने, पार्टी लाइन से बाहर निकलने और अन्य बातों के अलावा आलोचना की कई घटनाएं हुईं. दिल्ली में नरेंद्र मोदी और उनके विश्वासपात्रों के उदय और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार के सफल पुनरावर्तन के साथ, उमा नाम मात्र रह गई.

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उमा भारती द्वारा शराब दुकान में पथराव करना खुद की तरफ ध्यान आकर्षित करवाने के सामन है 

"उमा ने कहा कि वह 2019 में चुनाव नहीं लड़ेंगी और बीजेपी ने इस बात पर ऐतराज नहीं जताया. बीजेपी की ओर से कोई बातचीत का प्रयास नहीं किया गया. ये ऐसा हो रहा थी की पार्टी में किसी को परवाह ही नहीं है और वास्तव में तो उमा का यह कृत्य पार्टी को नुकसान पहुंचा रहा हैं."
वरिष्ठ पत्रकार, जिन्होंने नाम न बताने की शर्त पर बात की

उन्होंने आगे बताया, "लेकिन वह कभी भी राजनीति से दूर नहीं हो सकती थीं. वह हमेशा पहले काम को अंजाम देने वालों में से, बाद में सोचने वालों में से हैं लेकिन इससे उन्हें बहुत नुकसान पहुंचा है."

उमा भारती के करीबी सूत्रों का दावा है कि वह शराबबंदी जैसे सार्वजनिक मुद्दे को "शुद्ध इरादे" से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं. हालांकि, चीजें हमेशा की तरह उनके अनुसार आगे नहीं बढ़ी और अपनी हताशा में उन्होंने जो कदम उठाया वो पिछले हफ्ते हुई पथराव वाली घटना है.

इन्हीं सूत्रों ने आगे बताया, “उमा राजनीतिक सुर्खियों की भूखी हैं और वह लंबे समय से इससे दूर रही हैं. उनके पास एक बार वह सब कुछ था जिसकी वह उम्मीद कर सकती थी. लेकिन अब उन्हें अलग थलग कर दिया गया है और उन्हें हटा दिया गया है. उनके भाषणों और कार्यों में दर्द और लालसा को कई बार देखा गया है."

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क्या उमा की असुरक्षा बढ़ रही है क्योंकि नए और मजबूत कैंडिडेट के साथ BJP फल-फूल रही है?

बीजेपी के कई नेता मानते हैं कि उमा भारती की असुरक्षा पिछले सालों के दौरान बढ़ी है. क्योंकि कई नए मजबूत नेता सामने आ रहे हैं, जैसे नरोत्तम मिश्रा या भुपेंद्र सिंह. इस बीच उमा को ज्यादा तवज्जो नहीं मिल रही.

“पहले वह एक चिड़चिड़ी, मूडी व्यक्ति की तरह थी जो फर्राटेदार थीं. लेकिन लगभग सभी बड़ों से प्यार करती थी. अब जबकि सत्ता में बैठे बुजुर्ग बदल गए हैं, नेताओं की नई लाइन खड़ी हो गई है और मजबूती से खड़ी हो गई है. उमा के नखरों से निपटने के लिए शायद ही कोई बचा हो.”
एक अन्य मध्य प्रदेश के पत्रकार ने कहा

उन्होंने आगे कहा, "वे दिन गए जब वह आडवाणी के साथ विवाद कर सकती थीं, दंडित (निलंबित) हो सकती थीं, यहां तक ​​कि एक नई पार्टी भी बना सकती थीं, और फिर से पार्टी में शामिल हो सकती थीं. आज शीर्ष नेतृत्व बदल गया हैं, उस नेतृत्व को हां में हां मिलाने वाला चाहिए. अगर आज की बीजेपी में उमा कोई भविष्य बनाना चाहती हैं, तो उमा को अपना रुख बदलना होगा."

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 लेकिन उमा भारती पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

एक एक्सपर्ट बताते हैं कि उमा भारती एक दशक से अधिक समय से कुछ न कुछ कर रही हैं और उनके अभिभावकों यानी आरएसएस और बीजेपी ने उनकी उपेक्षा की है. ज्यादातर इसलिए कि कहीं न कहीं वे जानते हैं कि उनके कार्य हमेशा ऐसे हैें जो उनका नुकसान कर सकते हैं.

"वह शिवराज सिंह चौहान को 'बच्चा चोर' कहती हैं, जिसका अर्थ था कि एमपी का सीएम पद उनकी संतान है और शिवराज ने उससे चुरा लिया है. वह अब भी कहती हैं, 'सरकार मैंने बनायी चला कोई और रहा है' और बयानबाजी जारी है. वह 2004 की हार से अब तक उबर नहीं पाई हैं. इतना स्पष्ट है."
आरएसएस से जुड़ा सूत्र

उन्होंने आगे बताया कि "पार्टी या आरएसएस उन पर क्यों नहीं ध्यान दे रही है, इसके दो पहलू हैं. पहला- महत्वपूर्ण बात यह है कि वे उन्हें जगह नहीं देना चाहते हैं और जवाब देकर जनता की नजरों में उन्हें विक्टिम नहीं बनाना चाहते. दूसरा, उनका अभी भी मध्य भारत में लोधी-किरार समुदाय के साथ बोलबाला है, विशेष रूप से मध्य प्रदेश में, जिसे पार्टी कुछ लोगों को संतुष्ट करने के लिए परेशान नहीं करना चाहेगी."

उमा भारती एक लोधी जाति ओबीसी से हैं और बीजेपी ने 2003 में सत्ता में आने के बाद से ओबीसी राजनीति को बढ़ावा दिया है.

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