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बेरोजगारी का मुद्दा क्या पीएम मोदी को नुकसान पहुंचा सकता है? 

चुनावों में अब महज कुछ ही महीने रह गए हैं, ऐसे में देश में नौकरियों की स्थिति में शायद ही कोई सुधार हो पाए.

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लोकसभा चुनावों की तरफ बढ़ रहे नरेंद्र मोदी सरकार के लिए नौकरियों की कमी एक बड़ा सिरदर्द बन रहा है. दिसंबर 2018 में हुए सी-वोटर के एक सर्वे के मुताबिक, वोटर ये मान रहे हैं कि भारत जिन समस्याओं से जूझ रहा है, उनमें बेरोजगारी सबसे बड़ी है.

जिन लोगों के बीच सर्वे हुआ है, उनमें से 23 प्रतिशत लोगों ने 'बेरोजगारी' को सबसे बड़ी समस्या के रूप में चुना है. इसके बाद 11 प्रतिशत लोगों ने 'गरीबी/पारिवारिक आय' और 10 प्रतिशत लोगों ने 'भ्रष्टाचार' को देश के लिए समस्या माना.

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चुनावों में अब महज कुछ ही महीने रह गए हैं, ऐसे में देश में नौकरियों की स्थिति में शायद ही कोई सुधार हो पाए. लेकिन सवाल ये है कि नौकरियों की कमी का मुद्दा क्या वोटरों को प्रभावित करेगा?

जिस तरह 2014 में यूपीए की सरकार महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनाव हार गई थी, क्या उसी तरह नौकरी का मुद्दा इन दोनों मुद्दों के साथ जुड़कर एनडीए सरकार की हार का कारण बनेगा?

ऐसे तीन कारक हैं जो चुनावों को प्रभावित करेंगे :

  • बेरोजगारी का मुद्दा वोटरों पर कितना हावी होगा?
  • क्या वोटर नौकरियों में कमी के लिए पीएम को गुनहगार ठहराएंगे?
  • क्या कांग्रेस इस स्थिति में है कि वो बेरोजगारी से उपजे गुस्से का फायदा उठा पाएगी?

चलिए देखते हैं इन सवालों के जवाब तलाशने में सर्वे के निष्कर्ष कितने मददगार साबित होते हैं

बेरोजगारी सबसे ज्यादा कहां असर करेगा?

मई 2018 में हुए लोकनीति-सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के सर्वे के मूड के मुताबिक, उत्तर भारत के वोटर नौकरियों में कमी से खासे चिंतित हैं. उत्तर भारत में 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि बेरोजगारी उनके लिए एक बड़ी समस्या है जबकि इसके उलट दक्षिण भारत के महज 16 प्रतिशत लोगों ने इसे बड़ी समस्या माना.

एनडीए के लिए ये एक बुरी खबर हो सकती है कि उत्तर भारत में इस बार वो ज्यादा सीट गंवा सकती है. याद दिला दें कि 2014 के लोकसभा चुनावों में उसने इस क्षेत्र के 151 में से 131 सीटों पर जीत हासिल की थी.

क्या वोटर पीएम मोदी को गुनहगार मानते हैं?

किसानों में फैले गुस्से के कारण मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे देश के अलग-अलग हिस्सों में किसानों के आंदोलन हुए. देखने वाली बात है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर इन इलाकों और राज्यों में इतना बड़ा आंदोलन कभी नहीं हुआ.

नौकरियों से जुड़ी असंतोष की लहर अगर कभी आंदोलन के रूप में दिखी, तो वो ज्यादातर अलग-अलग समुदायों के लिए आरक्षण की मांग को लेकर थी. जैसे-गुजरात में पाटीदारों, महाराष्ट्र में मराठों, हरियाणा और राजस्थान में जाटों और आंध्र प्रदेश में कापुसों का आंदोलन. चूंकि ये सभी समुदाय खेती-बारी से भी जुड़े हैं, इसलिए इनके आंदोलन में बेरोजगारी और कृषि से जुड़ी समस्या दोनों शामिल हो गईं.

इसलिए कुछ लोग ये कह सकते हैं कि चूंकि यहां मोदी सरकार के खिलाफ लामबंदी नहीं थी, यहां इस बात की संभावना ज्यादा है कि बेरोजगारी चुनाव में कोई मुद्दा नहीं बनेगा.

हालांकि लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, 57 प्रतिशत लोगों का ये मानना है कि पिछले 3-4 सालों में नौकरी तलाशना कठिन हो गया है. बता दें कि ये मोदी सरकार का ही कार्यकाल है. इनमें से 27 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वो बीजेपी को वोट देंगे.

अगस्त में हुए इंडिया टुडे-कार्वी के सर्वे के मुताबिक 60 प्रतिशत लोगों ने कहा कि मोदी सरकार के राज में कोई नौकरी नहीं आई या फिर बेरोजगारी को खत्म करने की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया.

ऐसे में जो लोग ये कहते हैं कि पिछले 3-4 सालों में नौकरी तलाशने में परेशानी हुई, उनमें से कम ही लोग अब बीजेपी को वोट देंगे.
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एक चीज जो पिछले 18 महीनों में बदली है, वो ये कि लोग मानने लगे हैं कि देश की बड़ी समस्याओं को सुलझाने में बीजेपी सक्षम नहीं है. पहले बीजेपी पर बहुत भरोसा था. जुलाई 2017 के सी-वोटर के सर्वे के मुताबिक, जब लोगों ये पूछा गया, "देश की बड़ी समस्याओं को सुलझाने की कूबत किस पार्टी में है?", 48 प्रतिशत लोगों ने बीजेपी को चुना. कांग्रेस को चुनने वाले 8 प्रतिशत थे तो अन्य के पक्ष में 7 प्रतिशत.

लेकिन जब यही सवाल दिसंबर 2018 में पूछा गया, 25 प्रतिशत लोगों ने ही बीजेपी के पक्ष में हामी भरी, जुलाई 2017 में जितने लोग बीजेपी के पक्ष में थे, उसका आधा. बीजेपी और कांग्रेस में जो अंतर था, वो 40 प्रतिशत से घटकर 10 प्रतिशत पर आ गया. इस बार 15 प्रतिशत लोगों ने कहा कि देश की बड़ी समस्याओं को कांग्रेस ही सुलझा सकती है. 16 प्रतिशत लोगों ने दूसरों को चुना.

हालांकि बीजेपी अब भी आगे है, ये गौर करने वाली है. 2014 के चुनावों से पहले, इस सवाल पर बीजेपी को कांग्रेस पर 14 प्रतिशत की बढ़त थी. उस समय बीजेपी साफ-साफ दो मुद्दों पर अपना प्रचार कर रही थी. वो महंगाई और भ्रष्टाचार को देश की सबसे बड़ी समस्या बता रही थी और कहती थी इसका हल सिर्फ नरेंद्र मोदी के पास है. अभी अगर कांग्रेस रोजगार की समस्या को लेकर ताना-बाना बुनने की कोशिश करे, तो अब भी यही अंतर दिखता है.

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क्या कांग्रेस को बेरोजगारी से उपजे गुस्से से फायदा होगा?

अभी तक जो दिख रहा है, उसके हिसाब से किसानों की समस्या, महिलाओं की सुरक्षा, जीएसटी और नोटबदली का मुद्दा कांग्रेस के लिए बेरोजगारी से ज्यादा काम का रहा है.

लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, जिन लोगों ने बेरोजगारी को देश की सबसे बड़ी समस्या बताया, उनमें से 41 प्रतिशत ने बीजेपी को वोट देने की बात कही, जबकि 29 प्रतिशत ने कांग्रेस को चुना.

दूसरी तरफ, जिन्होंने “किसानों की चिंता” को देश की सबसे बड़ी समस्या के रूप में देखा, उनमें से 38 प्रतिशत ने कांग्रेस को वोट देने की बात कही, जबकि 23 प्रतिशत लोगों ने बीजेपी के पक्ष में वोट डालने की बात कही.

ठीक इसी तरह, जिन लोगों ने जीएसटी, नोटबदली को देश की सबसे बड़ी समस्या माना, उनमें से 38 प्रतिशत ने कांग्रेस को, 23 प्रतिशत ने बीजेपी को वोट देने की बात कही.

इससे ये पता चलता है कि बेरोजगारी की जगह किसानों, जीएसटी और नोटबदली का मुद्दा उठाकर कांग्रेस ज्यादा असरदार ढंग से फायदा उठा सकती है.

हालांकि अलग-अलग राज्यों के लिए इसमें अंतर हो सकता है. कांग्रेस ने जिन राज्यों, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब और मध्य प्रदेश, में हाल के चुनावों में जीत हासिल की है, वहां के ज्यादातर लोगों ने बेरोजगारी को ही देश की बड़ी समस्या माना था.
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इन राज्यों में जो एक चीज महत्वपूर्ण है, वो ये, कि कांग्रेस ने बेरोजगारी को लेकर खूब वादे किए हैं. उदाहरण के लिए पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हर परिवार से 18 से 35 के बीच के एक युवा को नौकरी देने का वादा किया था. उनका नारा था, "हर घर टों इक्क कैप्टन" यानी "हर घर में एक कैप्टन". उन्होंने हर महीने 2,500 रुपये का बेरोजगारी भत्ता देने की भी बात कही थी. कांग्रेस ने हर महीने 2,500 रुपये का बेरोजगारी भत्ता देने का वादा, हाल ही में छत्तीसगढ़ में हुए चुनावों में भी किया था.

इसी तरह से मध्य प्रदेश में, कांग्रेस ने युवाओं को नौकरियां देने वाली कंपनियों को "वेतन-अनुदान" देने का वादा किया था. इसलिए जब कांग्रेस के पास बेरोजगारी के मुद्दे को सुलझाने का कोई सटीक तरीका होता है, तभी वो नौकरियों में कमी का मुद्दा उठाकर फायदा उठा पाई है.

पीएम मोदी के लिए बुरी खबर ये है कि जिन भी राज्यों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है, वहां 15 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने बेरोजगारी को देश की सबसे बड़ी समस्या के रूप में चुना.

आप जिस भी सर्वे को देखें, पहले के मुकाबले अब ज्यादा लोग बेरोजगारी को देश की बड़ी समस्या के रूप में देख रहे हैं. दिसंबर 2018 के सी-वोटर के सर्वे के मुताबिक यह 23 प्रतिशत है, अगस्त 2018 के इंडिया टुडे-कार्वी के सर्वे के मुताबिक 34 प्रतिशत और मई 2018 के लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे के मुताबिक 26 प्रतिशत.

हालांकि जो भी परिणाम आएंगे, उस पर इसका असर नहीं भी पड़ सकता है. कांग्रेस को किसानों के मुद्दे को उछालने के साथ-साथ नौकरियों में कमी खत्म करने के लिए एक खास हल लेकर भी आना पड़ेगा.

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