नवंबर 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे स्वीकारने से इनकार करने वाले डोनाल्ड ट्रंप के खुली बगावत के उकसावे के बाद, अनियंत्रित भीड़ ने बुधवार 6 जनवरी को बैरिकेड तोड़ डाले और कैपिटल बिल्डिंग पर हमला बोल दिया.
बहुसंख्यक श्वेत मूल के दंगाई, राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडेन की जीत को अमेरिकी संसद की औपचारिक मंजूरी मिलने से रोकने के लिए कैपिटल बिल्डिंग में घुस गए. उन्होंने कमजोर सुरक्षा घेरे को तोड़ डाला, खिड़कियां चकनाचूर कर दीं और अमेरिकी झंडा हटाकर उसकी जगह ट्रंप का झंडा लगाने की कोशिश में दीवारें लांघ दीं.
ये कट्टरपंथी बिल्डिंग में घुसने और मुख्य हॉल के भीतर अलग-अलग तरीके से फोटो खिंचाने में कामयाब रहे. (इस दौरान फर कोट पहने हुए एक ट्राइबल नेता दिखा, जिसका चेहरा पुता हुआ था.)
कुछ लोग एक पोडियम को चुराते दिखे, जब सांसद अपनी जान बचाने के लिए एक गुप्त सुरंग के जरिए दूसरी बिल्डिंग की तरफ भागे थे.
इस बीच प्रेसिडेंट-इलेक्ट बाइडेन ने शांति की अपील की. उन्होंने कहा कि ट्रंप सही कदम उठाएं और अपने समर्थकों से घर जाने को कहें. अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में कर्फ्यू तक लगा दिया गया. मगर ट्रंप ने अपना राग जारी रखा कि चुनाव में धांधली हुई है, यह उनके हिंसक समर्थकों को वाइट हाउस से यूएस कैपिटल तक मार्च करने और उसकी घेराबंदी करने के लिए एक संकेत था.
हंगामे और अराजकता के दृश्य जंगल में आग की तरह सोशल मीडिया में फैल गए. ‘तीसरी दुनिया’ तक के देशों ने इस तख्तापलट की कोशिश पर चिंता जताई. इन देशों के नेताओं ने माना कि बात इतनी बढ़ने से पहले ही बगावत को दबा दिया जाना चाहिए था.
यह पूरी तरह से व्यवस्था की नाकामी है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसे हालात का निर्माण पिछले चार सालों से कर रहे हैं.
कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर किसी चीज को लेकर ट्रंप अपने इरादे पर ईमानदार रहे हैं तो उन्होंने बार-बार साफ किया कि वे उसी चुनाव नतीजे को स्वीकार करेंगे जिसमें उन्हें विजेता घोषित किया जाएगा. फिर भी ट्रंप को लोकतंत्र की बारीकियों के बारे में बताने के लिए कुछ नहीं किया गया.
रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख सदस्य ट्रंप को समझाने के बजाए उन्हें ‘सक्षम’ बनाने पर तुल गए और उन्होंने भी ट्रंप की सनक में शामिल होते हुए असंवैधानिकता की राह पकड़ ली.
उन सुरक्षाबलों और पुलिस को क्या हुआ जो अश्वेत लोगों के साथ निर्मम हैं?
चिंता पैदा करने वाली गतिविधियों के बाद कुछ विदेशी ऑब्जर्वर्स ने अमेरिका को ‘बनाना रिपब्लिक’ घोषित कर दिया क्योंकि मौजूदा शासन ने लगातार सरकारी अधिकारियों पर अपने ‘दुश्मनों’ के खिलाफ बदले की कार्रवाई का दबाव बनाया है. यहां ‘दुश्मन’ वे हैं, जो ट्रंप की आलोचना करते हैं, इनमें उनकी ओर से चुने गए कैबिनेट सदस्य भी शामिल हैं.
विद्रोह सामने आने के बाद कट्टरपंथियों पर नियंत्रण कर पाने में ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाबल असफल दिखाई दिए.
उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग नहीं की जैसा कि वे आम तौर पर अश्वेत लोगों के साथ किया करते हैं. कई बार तो अनहोनी की कल्पना करके ही कठोर रुख अपना लेते हैं.
ऐसा लगता है कि सुरक्षाबल बिल्डिंग को घेरे हजारों लोगों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले पैक करना भी भूल गए थे. हालांकि उन्होंने चेतावनी बहुत अच्छे तरीके से दी. आखिरकार जब पड़ोसी राज्यों से अतिरिक्त बलों को बुलाया गया तो कुछ धुएं वाले ग्रेनेड लाए गए.
दंगाइयों ने ‘कानून के देश’ में अनगिनत कानून तोड़े, लेकिन घंटों तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. विदेशी ऑब्जर्वर्स के लिए यह पहेली बन गई थी क्योंकि ‘तीसरी दुनिया’ के कई देशों तक में पुलिस को जब बड़ी संख्या में गिरफ्तारी की आशंका होती है तो वो बस, पानी की बोतलों और अतिरिक्त हथकड़ियों के साथ आती है.
ऐसा लगता है कि संकट से गुजरते देश की सबसे अहम बिल्डिंग की सुरक्षा कर रहे सुरक्षाबल के प्रभारी बिल्कुल तैयार नहीं थे और संभव है कि वे श्वेत मूल की महिलाओं और पुरुषों द्वारा संभावित हमले से निपटने के लिए उचित रूप से प्रशिक्षित भी न हों.
रिकॉर्ड के लिए, पुलिस ने अश्वेत मूल के लोगों के साथ निर्ममता दिखाई है. एक अश्वेत महिला मरियम कैरी को 2013 में कैपिटल बिल्डिंग के पास पुलिस चेकप्वाइंट पर यू टर्न लेने के लिए मार डाला गया था.
अमेरिका के लिए आईना देखने का वक्त
मुख्यधारा की अमेरिकी मीडिया ने कैपिटल हिल के दंगाइयों को ‘आतंकवादी’ कहने से परहेज दिखाया. यहां तक कि पुलिस को एक पाइप बम भी मिला जिसके बारे में माना जाता है कि कट्टरपंथियों ने इसे परिसर के भीतर प्लांट किया था.
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि पुलिस और मीडिया दूसरे ट्राइब्स के साथ कैसा व्यवहार करे इस बारे में पक्षपात की विरासत अमेरिका में है.
अमेरिका के इतिहास में जातीय हिंसा और अश्वेतों की एक्स्ट्रा-ज्यूडिशियल हत्याएं लगातार जारी हैं. हालांकि कई अमेरिकियों का विश्वास है कि उनका देश विशेष है जिसके बारे में कभी पूर्व अभिनेता और राष्ट्रपति डोनाल्ड रीगन ने कहा था “पहाड़ी पर चमकता हुआ शहर”.
‘ऐसा विश्वास करने वालों’ ने ट्विटर का सहारा लिया. एक ऐसा माध्यम, जो अमीरों और गरीबों की पसंद है. वे दंगा दिखाती और कार्यालयों में कब्जा जमाने वाली तस्वीरों पर अविश्वास जता रहे हैं. उनकी कोशिश दो बातें कहने की हैं: “हम इससे बेहतर हैं” और “ऐसा हो सकता है केवल.... (बोगोटा या काबुल में या साधारण रूप से तीसरी दुनिया में)”
‘इस पर विश्वास न करने वालों’ जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है, को यह जबरन याद दिलाया गया कि वे ऐसा ही पसंद करते हैं- इसे छोड़कर उन्होंने दूसरे देशों में भी बेहतर तरीके से स्थापित चैनलों के जरिए भी ऐसा किया था.
बुधवार को अराजकता के सबूतों के बाद कई यूरोपियन और अरब जगत के लोगों ने अमेरिकियों से कहा है कि वे लोकतंत्र और ऐसे विषयों पर भाषण देने से बचें. उन्होंने आईना देखने की सलाह दी है. अमेरिकी घरों में भरपूर संख्या में आईने मौजूद हैं.
(लेखिका वॉशिंगटन-बेस्ड वरिष्ठ पत्रकार हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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