हाथरस तहसील कचहरी में कुछ जाटव वकील दिन भर के काम के बाद शाम को चाय पर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की संभावनाओं पर चर्चा करते नजर आए. उनकी आस थी कि बीएसपी 60 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करे और त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति पैदा हो जाए. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन बीएसपी सुप्रीमो मायावती को मुख्यमंत्री पद के साथ अपने विधायकों के समर्थन का प्रस्ताव दे सकते हैं.
यहां ये भी जानिए कि वो 34 साल के दलित आइकन चंद्रशेखर आजाद रावण के नए राजनीतिक दल Azad Samaj Party-Kanshiram (ASP-K) के बारे में क्या सोचते हैं, जो पहली बार चुनाव लड़ रही है?
सुंदर सिंह इस पर कहते हैं, हम सभी चंद्रशेखर आजाद का बहुत सम्मान करते हैं. हमारा मानना है कि वह दलित राजनीति में बड़ी भूमिका अदा करेंगे, लेकिन ये भविष्य की बात है. हम उनकी मदद करना चाहते हैं, लेकिन... जगदीश प्रसाद बीच में सुंदर को टोकते हुए कहते हैं, बेहतर होता कि वह भीम आर्मी को और ज्यादा मजबूत करते और इसे बीएसपी के लिए एक तरह से आरएसएस की तरह का संगठन बनाते, ये बेहतर होता. बीएसपी के संगठन को सैद्धांतिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है, लेकिन अगर इसकी प्रतिद्वंद्विता में कोई पार्टी आती है, तो वो दलित हितों के लिए मददगार नहीं होगी.
बाबासाहेब अंबेडकर के विचार ASP-K की प्रेरणा हैं. इसकी स्थापना करने वाले ये मानते हैं कि वो बीएसपी के संस्थापक कांशीराम के पदचिन्हों पर चल रहे हैं, जिनके विचारों को मायावती ने करप्ट कर दिया.
जाटव अभी भी मायवती के साथ हैं
ASP-K के नेशनल सेक्रेटरी और पार्टी की कोर कमेटी के सदस्य डॉ. मोहम्मद अक़िब कहते हैं, हमारा लक्ष्य, कांशीराम जी की तरह ही व्यवस्था को बदलना, आर्थिक परिवर्तन और सामाजिक परिवर्तन है.
ASP-K विधानसभा चुनावों में 50 सीटों पर लड़ रही है. यहां तक कि पार्टी ने ऐसे 35 छोटे राजनीतिक दलों को भी अपने साथ मिलाया है, जिनके नेता एसपी नेतृत्व वाले गठजोड़ में शामिल होने के लिए अखिलेश यादव से दो से ज्यादा सीटें देने की बात मनवाने में नाकाम रहे. खुद चंद्रशेखर आजाद गोरखपुर से सीएम योगी के खिलाफ हाई प्रोफाइल चुनावी लड़ाई लड़ रहे हैं.
जाटव जिन पर मुख्य रूप से बीएसपी निर्भर है, उत्तर प्रदेश की आबादी का 18 प्रतिशत हैं. इसके अलावा दूसरे दलित समुदायों का हिस्सा इसमें 3.1 प्रतिशत है, जिनमें से ज्यादातर बीजेपी कैम्प में हैं.
इस चुनाव में जब मैंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की यात्रा की, तो ये साफ था कि जाटव अभी भी पूरी तरह से मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ हैं. यहां लोगों ने साफ तौर पर कहा— इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मायवती जीत हासिल करती हैं या नहीं, ये हमारा फर्ज है कि हम उनके लिए वोट करें. हमारा वोट सिर्फ बीएसपी को जाएगा. अगर हम किसी दूसरी पार्टी को भी वोट करते हैं तो भी यही माना जाएगा कि ये बीएसपी को गया.
यहां ये भी जानना जरूरी है कि जहां जाटवों की शिक्षित और अशिक्षित आबादी पूरी तरह से बीएसपी के साथ है, यहां शिक्षित युवाओं की रुचि चंद्रशेखर आजाद की पार्टी और इसके भविष्य में भी नजर आई.
संशय भी और उम्मीद भी
चंद्रशेखर आजाद की नई पार्टी ASP-K को लेकर उत्तर प्रदेश में एक तरह का संशय भी है और उम्मीद भी.
बीएसपी के कट्टर समर्थक और सदस्य मानते हैं कि ASP-K सिर्फ जाटव समुदाय के 18 प्रतिशत कोर वोट में सेंध लगाएगी और इससे बीएसपी को नुकसान होगा वहीं, ASP-K को कोई खास फायदा नहीं होगा.
दूसरी तरफ ASP-K के युवा समर्थक मानते हैं कि चंद्रशेखर आजाद दलितों के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं, खास करके शिक्षित तबके का. हालांकि कुछ लोगों ने यह भी कहा कि ASP-K को इस बार चुनाव नहीं लड़ना चाहिए और वो विधानसभा चुनाव में बहुत करीब से बीएसपी की चुनावी परफॉर्मेंस पर नजर रख रहे हैं.
मुसलमान उम्मीद में क्यों हैं?
SP-K की प्रगति पर सिर्फ दलित युवाओं की ही नजर नहीं है, मुस्लिम युवा, जिनमें शिक्षित और अशिक्षित दोनों तरह के लोग शामिल हैं, वे भी पार्टी की गतिविधियों पर करीब से नजर रखे हुए हैं.
अगर दलितों को बीएसपी के धीरे धीरे कमजोर होने से कोई दूसरा विकल्प देखने की जरूरत महसूस हो रही है, तो वहीं मुस्लिम भी एक वैकल्पिक प्लेटफॉर्म तलाश रहे हैं, जहां उनके संख्या को समझा जाए और उनकी आवाज सुनी जाए.
भैंसी गांव जो मुजफ्फरनगर जिले में खतौली के पास है, यहां दो मुस्लिम युवाओं शोएब अंसारी और बुरहा मंसूरी ने सबसे पहले ASP-K का जिक्र मेरे सामने किया. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में उन्होंने पार्टी के लिए काम भी किया है, लेकिन कुछ व्यक्तिगत अंतर की वजह से फिर इसे छोड़ दिया. हालांकि इसके बावजूद वो कहते हैं कि इस क्षेत्र में पार्टी के काम और उसकी प्रगति को वो बहुत उम्मीद से देख रहे हैं.
मंसूरी ने कहा, दलित समुदाय की नई पीढ़ी चंद्रशेखर आजाद को सपोर्ट करती है. बाकी लोग मायावती के साथ हैं.
यहां दोनों ही लोगों ने कहा कि वो इस बात को लेकर सुनिश्चित हैं कि ASP-K आगे बढ़ेगी और धीरे धीरे मुसलमान भी इसकी तरफ जाएंगे. इस बार चुनाव में भी पार्टी ने अपने 40 प्रतिशत टिकट मुसलमानों को दिए हैं.
हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि पार्टी इस बार चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी, ये बात वो जानते हैं लेकिन ये एक ऐसा मॉडल है जिसमें क्षमता है.
जब मैंने मंसूरी और अंसारी से पूछा कि वो AIMIM के असदउद्दीन ओवैसी के बारे में क्या सोचते हैं तो उन्होंने कहा कि वो उनका आदर करते हैं क्योंकि, ऐसे समय में जब उनके समुदाय के प्रति सहानुभूति रखने वाले राजनेता भी सार्वजनिक रूप से मुस्लिम शब्द बोलने से बचते हैं, असदुद्दीन ओवैसी खुलकर मुस्लिम समुदाय के लिए बोलते हैं.
मैंने उनसे कहा कल्पना कीजिए कि AIMIM और ASP-K जब ये दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश में अच्छा करने लगीं तो ऐसी स्थिति में आप किसे चुनेंगे. इस पर उन्होंने एक साथ कहा— जाहिर है ASP-K क्योंकि, ये उत्तर प्रदेश की पार्टी है.
बीएसपी की कीमत पर मिलेगी सफलता
जाटव समुदाय से आने वाले युवा संदीप कुमार भी भैंसी में ही रहते हैं. मेरठ कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने रेलवे के एंट्रेस एग्जाम का पहला राउंड क्लियर किया, लेकिन दूसरा राउंड स्थगित हो गया.
संदीप पहले ये स्वीकार नहीं करना चाह रहे थे कि वो ASP-K पार्टी के लिए काम करते हैं, बल्कि उन्होंने ये कहा कि ASP-K हमारे लिए काम करती है. पार्टी ने दलित युवाओं के लिए रोजगार और शिक्षा की जरूरत के मुद्दे को उठाया है. साथ ही उनके साथ गांवों में हो रहे अत्याचार को भी सामने लेकर आए हैं.
वह आगे कहते हैं, मुझे लगता है कि राजनीतिक दल बनाने और चुनाव लड़ने से बेहतर होता कि भीम आर्मी को बड़ा बनाने और इसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए काम किया जाता.
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर अभी तक ASP-K पार्टी को किसी तरह की सफलता मिल रही है तो वो बीएसपी की कीमत पर होगी.
डॉ. सतीश प्रकाश एक दलित स्कॉलर हैं और मेरठ कॉलेज में फिजिक्स पढ़ाते हैं. वह भी इस बात का समर्थन करते हैं और इससे भी ज्यादा मजबूती से अपनी बात रखते हैं.
उन्होंने कहा, चंद्रशेखर को कुछ सीटों के लिए अखिलेश यादव के पास नहीं जाना चाहिए. दलित युवा इस बात को लेकर अपने हीरो से बहुत नाराज हैं. अगर राजनीति में किसी राजनीतिक नेता को आप हीरो के रूप में देखते हैं और किसी भी वजह से वो छवि खराब होती है, तो उस चमकती हुई छवि को वापस पाना मुश्किल होता है.
वह आगे कहते हैं, आजाद ने दो गलतियां की हैं. एक बीएसपी के परिदृश्य से गायब होने से पहले अपना राजनीतिक दल बनाकर और दूसरा जमीनी स्तर पर अपनी कोई संस्था बनाए बिना अपने राजनीतिक दल की घोषणा करके. ऐसे में अगर पार्टी फ्लॉप होती है तो ये दोबारा काम नहीं कर पाएगी.
दूसरी तरफ ASP-K के नेशनल सेक्रेटरी डॉ. आक़िब ने इस आलोचना पर कहा, हमने महसूस किया है कि अगर हमें सामाजिक बदलाव लेकर आना है, तो हम एक गैर राजनीतिक संस्था के तौर पर ऐसा नहीं कर सकते. अगर आप थानों, तहसील और जिलों में प्रभाव पैदा करने वाली शक्तियों पर नियंत्रण नहीं कर सकते, तो लोगों की मदद नहीं कर पाएंगे. और फिर अगर आप उनकी आवाज विधानसभा और संसद तक नहीं पहुंचा पाते तो बदलाव नहीं कर सकते.
उन्होंने कहा, बीएसपी के पास अब कोई विचार नहीं है. हालांकि जाटव अभी भी बीएसपी को वोट कर रहे हैं क्योंकि, उनके पास विकल्प नहीं है. उन्होंने जोर देकर कहा कि साल 2027 तक हम उत्तर प्रदेश में सत्ता होंगे.
वो पार्टी जिस पर नजर है
अगर शिक्षित जाटव चाहे वो हाथरस के वकील हों, भैंसी के संदीप कुमार हों, जो सरकारी नौकरी की उम्मीद में हैं या मेरठ के डॉ. प्रकाश, ये सब मानते हैं कि चंद्रशेखर रावण की पार्टी का चुनावी परिदृश्य में आना प्रीमेच्योर फैसला है और ये दलित हितों को नुकसान पहुंचाएगा तो दूसरी तरफ मुस्लिम युवा इस नई पार्टी को उम्मीद से देख रहे हैं.
और ये उम्मीद सिर्फ भैंसी गांव के युवाओं शोएब अंसारी या बुरहा मंसूरी को ही नहीं है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जो कि देश का एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान है, यहां भी छात्र ASP-K के आने को लेकर बहुत उत्साहित हैं. इनमें पीएचडी ग्रेजुएट भी शामिल हैं जो छात्र राजनीति में सक्रिय हैं.
यहां के एक स्टूडेंट ने कहा, "अभी हम समाजवादी पार्टी को वोट करते हैं क्योंकि, हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. लेकिन ये वो पार्टी नहीं है जिसकी हमें जरूरत हैं, असल में इस पार्टी को हमारी जरूरत है. हो सकता है कि ओवैसी यहां उभर कर आएं, वो अकेले ऐसे नेता हैं जो मुसलमानों के लिए सड़कों पर भी बात करते हैं और संसद में भी, लेकिन यूपी में जिस पार्टी को हम अभी देख रहे हैं, वो है चंद्रशेखर आजाद की पार्टी, जो दलित-मुस्लिम गठबंधन का नेतृत्व कर सकती है."
अगर ऐसा सचमुच होता है तो ASP-K उत्तर प्रदेश में 38 प्रतिशत महत्वपूर्ण वोटों के साथ शुरुआत करेगी. इसमें जाटवों का 18 प्रतिशत और मुसलमानों का 20 वोट शामिल है, जो अभी किसी पार्टी के पास नहीं है. ऐसी स्थिति में आप मुसलमानों को फॉर ग्रांटेड नहीं ले सकते. जैसा कि अभी तक उन लोगों ने किया है जो बस मुस्लिम समुदाय से वोट लेते रहे हैं और चुनावों में जीत हासिल करने के लिए उन पर निर्भर रहते हैं. एएमयू के स्टूडेंट्स ने ये बातें काफी जोर देते हुए कहीं.
आज मुसलमानों का वोट तो है लेकिन उत्तर प्रदेश में वो अदृश्य नजर आते हैं क्योंकि बीजेपी ने उन्हें ऐसा बना दिया है जिनके पास कोई शक्ति नहीं है. वहीं जाटव समुदाय के 18 प्रतिशत वोट भी बेकार जाएंगे, अगर मायवती या कोई दूसरा नेता इसका इस्तेमाल नहीं करता.
(स्मिता गुप्ता एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो द हिंदू की एसोसिएट एडिटर रही हैं, और आउटलुक इंडिया, द इंडियन एक्सप्रेस, टीओआई और एचटी जैसे संगठनों के साथ भी काम किया है. वो ऑक्सफोर्ड रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की पूर्व फेलो हैं. उनसे ट्विटर पर @g_smita पर संपर्क किया जा सकता है. ये एक ओपिनियन पीस है. इसमें क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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