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उत्तराखंड पर ये कैसी आफत, बेतुके बयान में नए को पूर्व CM का चैलेंज

उत्तराखंड के सबसे बड़े पदों पर बैठने वाले तीरथ सिंह रावत और त्रिवेंद्र सिंह रावत के बेतुके बयान

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छोटे मियां तो छोटे मियां बड़े मियां सुभान अल्लाह... अमिताभ बच्चन और गोविंदा की सुपरहिट फिल्म "बड़े मियां छोटे मियां" का ये गाना उत्तराखंड के दो बड़े नेताओं पर इस वक्त सटीक बैठ रहा है. क्योंकि यहां सूबे के मौजूदा मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच पिछले कुछ दिनों से इस बात की होड़ लगी है कि कौन कुतर्क में कितना आगे जा सकता है. नए सीएम तीरथ सिंह रावत ने तो कुर्सी संभालने के एक महीने के भीतर ही कुतर्कों का रिकॉर्ड बना दिया. लेकिन अब 2017 से लेकर 2021 मार्च तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कोरोना को लेकर एक ऐसा बयान दे डाला कि तमाम वैज्ञानिक और दार्शनिक भी शरमा जाएं.

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कोरोना वायरस को भी जीने का हक?

सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि 4 साल तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने बयान में कोरोना को लेकर क्या कहा. उन्होंने कहा,

“जब मैं दिल्ली से अपना इलाज करवाकर लौट रहा था. तो मैंने उस दिन एक दार्शनिक बात कही थी. मैंने मीडिया से कहा था कि, वो वायरस भी एक प्राणी है. हम भी एक प्राणी हैं. हम अपने आप को ज्यादा बुद्धिमान समझते हैं. लेकिन वो प्राणी भी जीना चाहता है और उसको भी जीने का अधिकार है. हम उसके पीछे लगे हुए हैं, वो बचने के लिए अपना रूप बदल रहा है. वो बहरूपिया हो गया है.”
त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड

मूर्खता वाले बयानों में अपने ही सीएम को चुनौती?

अब त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस बयान से ये भी अंदाजा लगाया जा सकता है कि, उन्होंने नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को देखकर ऐसे मूर्खता वाले बयान देना शुरू कर दिया हो. शायद उन्हें अब ये समझ आ रहा हो कि मुख्यमंत्री पद के लिए एक आदर्श उम्मीदवार बनने के लिए ऐसे बेतुके बयान देना जरूरी है. इसीलिए अगले चुनावों में अपना मौका तलाशने के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत अब अपनी ही पार्टी के नए सीएम तीरथ सिंह रावत को मूर्खता वाले बयानों में चुनौती दे रहे हैं.

सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने इसी बात की तरफ इशारा किया. एक यूजर ने लिखा कि, अगर दो महीने पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ये बयान दिया होता तो मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि उनकी कुर्सी नहीं जाती. क्योंकि बीजेपी में मुख्यमंत्री बनने के लिए जो गुण जरूरी है, इसका उन्होंने प्रदर्शन नहीं किया था.

मैं भी उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले से आता हूं, लेकिन इस आर्टिकल को लिखते हुए मुझे भी शर्म आ रही है. एक ऐसा राज्य जिसे देवभूमि का दर्जा प्राप्त हो और जहां देश नहीं बल्कि दुनियाभर के तमाम लोग एक बार जरूर आना चाहते हों, वहां के सबसे बड़े पद पर बैठे लोगों के ऐसे बयान राज्य के लिए और वहां रहने वाले लाखों लोगों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण हैं.

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अपना नहीं तो समर्थकों का तो खयाल कीजिए

माना कि आपको अपने पद की गरिमा या फिर किसी भी चीज की चिंता नहीं है, लेकिन उन हजारों लाखों लोगों का क्या जो आपको फॉलो करते हैं? आपके लिए लगातार झंडा और डंडा उठाकर चलने वाले कार्यकर्ता जनता के बीच जाकर क्या मुंह दिखाएंगे? कैसे आपके इन कुतर्कों का वो जवाब देंगे? एक मियां कहते हैं कि कोरोना को भी जीने का अधिकार है, वहीं दूसरे छोटे मियां ने पिछले दिनों कुंभ को लेकर कहा कि कोरोना है, लेकिन गंगा मैया की कृपा से ये नहीं फैलेगा. जाहिर है कि उनकी बात उनके समर्थकों ने भी मानी और बेखौफ मां गंगा मैया का नाम लेते हुए गंगा जी में डुबकी लगाई. जिसका नतीजा आज उत्तराखंड में रोजाना सामने आ रहे 7-8 हजार कोरोना मामले हैं.

त्रिवेंद्र जी सोशल मीडिया पर एक बार अपना नाम टाइप करके देखिए, लोग आपके लिए क्या-क्या कह रहे हैं, कोई तो यकीन भी नहीं कर पा रहा है कि आप चार साल तक मुख्यमंत्री के पद पर भी रहे थे. लेकिन सोशल मीडिया पर ये मजाक आपका नहीं, बल्कि राज्य का उड़ाया जा रहा है. क्योंकि आप सिर्फ त्रिवेंद्र सिंह रावत या तीरथ सिंह रावत नहीं हैं, बल्कि लोग उत्तराखंड के मौजूदा सीएम और पूर्व सीएम के नाम से आप लोगों को जानते हैं.
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त्रिवेंद्र सिंह रावत का दर्द

त्रिवेंद्र सिंह रावत को उनके कई आत्मघाती फैसलों के चलते मार्च 2021 में, चुनाव से ठीक एक साल पहले कुर्सी से उतार दिया गया. इसके बाद पिछले दिनों उन्हें हटाए जाने के पीछे की सबसे बड़ी वजह कुंभ पर लगाई गई उनकी पाबंदियों को बताया गया. लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तुरंत सामने आकर बचाव किया और कहा कि कुंभ के चलते उन्हें नहीं हटाया गया था. नेता जी एक बार फिर ये नहीं बता पाए कि आखिर उन्हें किसलिए हटाया गया था, पिछली बार जब मीडिया ने ये सवाल किया तो उन्होंने कहा था कि केंद्रीय नेतृत्व से पूछिए.

इससे पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत की जुबान से सीएम की कुर्सी जाने का दर्द छलका था, तब उन्होंने कहा था कि, जब कौरवों के द्वारा अभिमन्यु को छल और कपट से मारा जाता है तो मां द्रौपदी शोक नहीं मनाती है. जबकि उसे कोख से जन्म दिया था. द्रौपदी हाथ खड़े करके बोलती है कि अभिमन्यु का जो छल से वध हुआ है, उसका प्रतिकार लें. इससे पहले मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने एक महिला टीजर से बदसलूकी की थी और भरी जनसभा में जेल में डालने की धमकी दे डाली थी.

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मौजूदा सीएम कुतर्क में टॉप पर

अब हमारी पहली लाइन छोटे मियां तो छोटे मियां बड़े मियां सुभान अल्लाह... इसलिए थी, क्योंकि मौजूदा मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत जब भी मुंह खोलते हैं तो कुछ न कुछ ऐसा निकल जाता है, जो उनकी सोच और विद्वता को दर्शाता है. क्योंकि तीरथ सिंह रावत श्रीनगर में अपने कॉलेज के दिनों में पढ़ाई की जगह चंडीगढ़ से आई लड़की का बदन देखने में बिजी थी. बाकी राजनीति का तो पता नहीं. ये गंभीर आरोप हम नहीं लगा रहे, खुद तीरथ सिंह रावत ने एक जनसभा के दौरान बताया था कि,

“जब मैं श्रीनगर में पढ़ता था, एक लड़की चंडीगढ़ से आई. थी वो पहाड़ की, लेकिन वहां से आई थी. लड़के उसे ऐसे देख रहे थे कि आ गई कोई बंबई से... उसका ऐसा मजाक बना, ऐसा मजाक बना, क्योंकि सारे लड़के उसके पीछे पड़ गए. यूनिवर्सिटी में पढ़ने आई हो और बदन दिखा रही हो.”
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत
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बेतुके बयानों की लंबी फेहरिस्त

इसके अलावा रिप्ड जींस वाला कांड तो आपको याद ही होगा. मुख्यमंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत ने फिर से एक किस्सा सुनाया था. जिसमें वो फटी हुई यानी रिप्ड जींस को लेकर महिलाओं से नाराज दिखे. उन्होंने कहा कि उन्हें फ्लाइट में एक महिला मिली, जिसने फटी हुई जींस पहनी थी. जिसे देखकर उन्होंने सोचा कि ये कैसे समाज में जाती होगी और क्या संस्कार देगी.

नए सीएम के कुतर्कों की फेहरिस्त काफी लंबी है. जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी को इस युग में भगवान श्री राम का दर्जा देने वाला बयान, ज्यादा राशन पाने के लिए 20 बच्चे पैदा करने वाला बयान, इसके अलावा तीरथ सिंह रावत जोश में आकर ये भी भूल गए थे कि भारत को किसने गुलाम बनाया था. उनके मुताबिक भारत को अमेरिका ने 200 साल तक गुलाम बनाया था. साथ ही कुंभ को लेकर गंगा मैया की कृपा से कोरोना नहीं होगा वाला कुतर्क हम आपको बता ही चुके हैं.
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तो कुल मिलाकर फिलहाल पूरा देश जान चुका है कि उत्तराखंड फिलहाल किन हाथों में है. अलग राज्य बनने के बाद विकास होने की बजाय उत्तराखंड लगातार पिछड़ता गया. गांवों में मूलभूत सुविधाओं के अभाव में तेजी से पलायन हुआ, सैकड़ों गांव खाली हो गए. कांग्रेस और बीजेपी ने राज्य में लगभग बराबर शासन किया, लेकिन हर बार नेता खुद में ही उलझे रहे, देहरादून की चिकनी सड़कों से पहाड़ की ऊबड़ खाबड़ सड़कों तक नेताओं को पहुंचने में पांच साल लगते हैं. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि उत्तराखंड के लोगों को अब गंगा मैया ही बचा सकती है.

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