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वैलेंटाइन डे: जो मानते हैं कि प्यार दिल का मामला है, ये शोध उनका दिल तोड़ देगा

वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि प्यार आपके दिमाग का केमिकल लोचा भर है.

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दुनिया भर के युवक-युवतियां अपने प्यार का इजहार करने के लिए जिस ‘वैलेंटाइन डे’ (Valentine Day) की बाट निहार रहे थे, वह आखिरकार आ ही गया! इस दिन को अपने प्रेमी के प्रति अपना प्यार दिखाने के लिए बेस्‍ट दिन माना जाता है. लेकिन ये प्यार है क्या बला जिसमें किसी के लिए एक व्यक्ति ही उसकी पूरी दुनिया हो जाता है? कहते हैं कि प्यार एक ऐसी चीज है जो हो जाए तो चैन नहीं, न हो तो बेचैनी, हो गया तो समझना मुश्किल, न हो तो जीना मुश्किल!

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कहने को तो ‘प्यार’ ढाई अक्षरों का बेहद छोटा-सा शब्द है, लेकिन उतना ही अबूझ और रहस्यमय. बड़े-बड़े कवि, शायर और फलसफ़ी (philosopher) कह गए हैं कि मोहब्बत वो आतिश है जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे. कब हो जाए, किससे हो जाए, कहां हो जाए और क्यों हो जाए, कोई नहीं जानता. मगर, ये सब बाते हुईं शायराना. इस पर विज्ञान क्या कहता है?

विज्ञान की कसौटी पर एहसास-ए-मोहब्बत

वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों (psychologists) का मानना है कि प्यार आपके दिमाग का केमिकल लोचा भर है. प्यार भी अन्य क्रियाओं की तरह की जाने वाली एक क्रिया है. किसी को देखते ही दिमाग में एक साथ कई केमिकल रिएक्शन होते हैं, जिससे कोई व्यक्ति प्यार में पड़ जाता है.

इसका मतलब यह है कि विज्ञान के मुताबिक एहसास-ए-मोहब्बत कुछ केमिकल्स का खेल भर है! आज जैव रसायन विज्ञान (biochemistry) इतना आगे बढ़ गया है कि प्यार और जोड़ियों के पूरे समीकरण को समझा सकता है. आज विज्ञान ने इस बात को भी गलत साबित कर दिया है कि प्यार और जोड़िया स्वर्ग में बनती हैं. प्यार और रिश्तों की अपनी अलग ही बायोकेमेस्ट्री होती है.

वैज्ञानिकों का ‘दिल तोड़ता’ शोध

दुनिया भर में आज तक जितने भी लेखक, कवि, शायर और फलसफ़ी हुए उन सभी ने प्यार को सिर्फ-और-सिर्फ दिल का मामला माना है. मगर विज्ञान के मुताबिक प्यार दिल का मामला उतना नहीं है जितना कि दिमाग का है. दरअसल हमारे दिमाग से ही किसी को लेकर अच्छी और बुरी भावनाएं पैदा होती हैं और प्यार के सारे खेल का नियंत्रण दिमाग से ही होता है. कवि और शायर भले ही दिल की धड़कनों को प्यार के नाम से जोड़ लें, मगर वैज्ञानिकों का ‘दिल तोड़ता’ शोध बताता है कि दिल का प्यार के साथ कोई विशेष संबंध नहीं है.

प्रेम रोग

जब हम प्यार में पागल हो जाते हैं तो अपने बायो केमिकल्स के हाथों में खेल रहे होते हैं. अमेरिका में न्यू जर्सी स्थित रुटगेर यूनिवर्सिटी की एंथ्रोपोलॉजिस्ट और और ‘ व्हाई हिम? व्हाई हर?: हाउ टू फाइंड एंड कीप लास्टिंग लव’ किताब की लेखिका प्रो. हेलन फिशर का कहना है कि प्यार का आकर्षण असल में रसाकर्षण (euphoria) है.

जब दो लोगों की बायोकेमिस्ट्री का मिलान होता है तभी उनका मिलन होता है. प्रकृति के प्यार के इस खेल में हम तो महज कठपुतलियां होते हैं. जब कोई प्यार में पागल हो जाता है या किसी के सिर पर प्यार का भूत सवार हो जाता है

तो सच यह है कि वह केमिकल्स या कहिए यौन हार्मोनों (sex hormones) के इशारों पर नाच रहा होता है. वैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि प्यार में पागल हो जाना एक तरह से मानसिक रोग के ही जैसा है यानि, अगर फिल्मी तर्ज पर प्रेम रोग कहा जाता है तो कुछ गलत नहीं कहा जाता!
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प्यार की तीन अवस्थाएं

प्रो. हेलन फिशर के मुताबिक मोटे तौर पर प्यार की तीन अवस्थाएं (stages) होती हैं: वासना यानी चाहत (desire), आकर्षण (attraction) और लगाव (Attachment). हर अवस्था के प्यार को अलग-अलग तरह के हार्मोन्स नियंत्रित करते हैं. इसका मतलब है कि भले ही ये तीनों अवस्थाएं आपसी तालमेल के साथ काम करती हैं, ऐसा भी हो सकता है कि व्यक्ति इनमें से किसी एक का ही अनुभव करे. इसका अर्थ है कि वासना, आकर्षण और चाहत की हमारी भावनाएं अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती हैं.

लव एट फर्स्ट साइट

वासना किसी को पा लेने की तीव्र इच्छा है, इसे ही कहते हैं लव एट फ़र्स्ट साइट यानी पहली नजर का प्यार. इस लालसा के जगने में सेक्स हार्मोनों यानी टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन का हाथ होता है. अक्सर इन दोनों हार्मोनों को आमतौर पर क्रमश: ‘पुरुष’ और ‘स्त्री’ हार्मोन कहा जाता है, लेकिन ये दोनों स्त्री और पुरुष दोनों को उत्तेजित करने के लिए बेहद जरूरी हैं.


सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी के मुताबिक ‘एस्ट्रोजन महिला के नारीपरक गुणों को बढ़ाने में मददगार है, तो वहीं टेस्टोस्टेरॉन की उसके यौन अंगों को उत्तेजित (excited) करने में अहम भूमिका होती है.’ बहरहाल, वासना ही वह चीज़ है, जो प्यार की शुरुआत के लिए आमतौर पर जिम्मेदार होती है. मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की एक स्टडी के मुताबिक दिमाग में फार्म फेस ऐरिया (एफ़एफ़ए) नामक हिस्सा होता है जो सुंदर और आकर्षक चेहरा देख एक्टिव हो जाता है.

जब मन हो जाता है बावरा

वासना की तीव्र उत्कंठा के बाद प्यार में पगला जाने की अवस्था यानी आकर्षण का दौर शुरू होता है. इस दौर में व्यक्ति को प्यार के अलावा और कुछ नहीं सूझता. नींद, चैन, सुकून उड़ जाना, भूख-प्यास न लगना, प्रेमी को निहारते रहना, यादों में खोये रहना, किसी काम में मन लगना वगैरह इसी अवस्था के लक्षण हैं. इस अवस्था में शरीर के तीन न्यूरो-कम्युनिकेटर केमिकल्स सक्रिय हो जाते हैं और मुस्तैदी से अपना काम करते हैं.


ये तीनों केमिकल्स हैं: डोपामिन, नोरएपिनेफ्रीन और फिनाइल-इथाइल-एमाइन. प्यार होने के समय या कहें अपने प्रेमी को निहारते वक्त ये केमिकल्स खून में शामिल हो जाते हैं और इसका असर पूरे शरीर में दिखाई देने लगता है. डोपामिन का दिमाग पर वही असर होता है जो कोकीन या निकोटीन का होता है. यह केमिकल दिमाग में प्यार का नशा भर देता है. डोपामिन को हैप्पी केमिकल भी कहा जाता है क्योंकि यह चरम सुख की भावना पैदा करता है.


इसके अलावा डोपामिन एक बेहद महत्वपूर्ण हार्मोन ऑक्सीटोसिन के रिसाव को भी प्रेरित करता है. महिलाओं में बच्चा पैदा करने और बच्चों को दूध पिलाते समय इस केमिकल का बहुत महत्व होता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि प्रेमियों के आपस में एक-दूसरे को बांहों में भर लेने और चूमते समय हमारे दिमाग से यही केमिकल रिलीज होता है.


नोरेपिनाफ्रिन नामक केमिकल उत्तेजना उत्पन्न करता है जो प्यार में पड़ने पर आपके दिल के धड़कन को तेज कर देता है. इसी केमिकल की वजह से अचानक प्रेमी से भेंट हो जाने पर आप पसीना-पसीना हो उठते हैं, दिल तेजी से धक-धक धड़कने लगता है और मुंह सूखने लगता है! दरअसल नोरेपिनाफ्रिन ऐड्रिनलीन नामक केमिकल को रिलीज करता है जो प्रेमी के आकर्षण में ब्लड-प्रेशर और दिल की धड़कन को तेज कर देता है.

फिनाइल-इथाइल-एमाइन केमिकल आपको प्रेमी से मिलने के लिए बेचैन करता है. यही वह केमिकल है जो रोमांस के समय उत्तेजना पैदा करता है और प्यार में पड़ने पर आपको सातवें आसमान पर पहुंचा देता है. जब आपकी आंखें किसी से मिलती हैं तो आपका दिमाग फिनाइल-इथाइल-एमाइन को रिलीज करता है. आपकी पुतलियां बड़ी होने लगती हैं और कम रोशनी में भी सब कुछ साफ-साफ दिखाई देने लगता है.
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प्यार का अटूट रासायनिक बंधन

प्यार की आखिरी अवस्था है- लगाव. लंबे वक्त तक चलने वाले रिश्ते में लगाव सबसे बड़ी भूमिका अदा करता है. इसमें माता-पिता, भाई-बहनों और बच्चों से जुड़ाव और दोस्ती भी शामिल है. यही वह चीज है, जो पार्टनर की कमियों के बावजूद उनके साथ जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करती है. प्यार के इस बंधन में मुख्य रूप से ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन नामक दो केमिकल्स का हाथ होता है. वैज्ञानिकों ने अमेरिका के प्रेयरी के मैदानों में पाए जाने वाले चूहों पर किए गए प्रयोगों में देखा है कि वैसोप्रेसिन और ऑक्सीटोसिन हार्मोन प्यार के अटूट बंधन (unbreakable bond) के लिए जिम्मेदार हैं.


सार यह है कि इश्क एक केमिकल लोचा है और प्यार में भाग्य-वाग्य कुछ नहीं होता. इसका अपना एक अलग मनोविज्ञान और केमेस्ट्री होती है. प्यार का एहसास न सिर्फ हमारी भावनाओं और हमारे मूड को बदल देता है बल्कि दिमाग के कुछ खास हिस्सों को भी एक्टिव कर देता है, जिससे हमारे भीतर स्फूर्ति (Energy) पैदा होती है.

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(प्रदीप विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिख रहे हैं। उनकी दो किताबें और तकरीबन 260 लेख प्रकाशित हो चुके हैं)

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