ADVERTISEMENTREMOVE AD

सबके अधिकारों की रक्षा के लिए कई सिविल कोड की जरूरत

अधिकारों की रक्षा के लिए कई सिविल कोड की जरूरत है. कानून व्‍यक्‍त‍िगत आजादी और सामाजिक न्‍याय के मुताबिक होने चाहिए.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

करीब 128 साल पहले का एक अदालती मामला मील का पत्‍थर साबित हुआ. 25 साल की रुखमाबाई ने ब्रिटिश भारत की अदालत से कहा कि वह अपने पति के साथ रहने की बजाए जेल में रहना पसंद करेगी.

रुखमाबाई की शादी महज 11 साल की उमर में ही हो गई थी. समझा जाता है कि वह पहली हिंदू महिला थी, जिसने इस विचार को चुनौती दी कि विवाह एक पवित्र संस्‍था है.

यह आज के दौर के इस विचार जैसा था, जिसमें दो लोग आपसी सहमति से साथ-साथ रहने का निर्णय करते हैं. उसकी मांग इस मूल विचार पर आधारित थी कि सहमति की दरकार दोनों पक्षों की ओर से एकदम बराबर होती है.

हमारे समाज को यह स्‍वीकार करने में 68 साल लग गए कि रुखमाबाई ने विरोध का रास्‍ता अख्‍तियार करके एक वाजिब मांग की थी. हिंदू मैरिज एक्‍ट 1955 में पास किया गया, जिसमें दांपत्‍य संबंध में दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति की जरूरत की एक तरह से ‘पहचान’ की गई.

सात दशक बाद और कई छोटी-छोटी कोशिशों के बाद अब हम इस बात पर बहस कर रहे हैं कि बरसों पहले क्‍या तय किया जाना था. दरअसल, संविधान सभा की बहस में अंबेडकर चाहते थे कि ये मामला हमेशा-हमेशा के लिए सुलझ जाए.

जब संविधान सभा में समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर बहस शुरू हुई, तब सदस्‍य चाहते थे कि इसे संविधान के निर्देशक सिद्धांतों में शामिल किया जाए.

स्नैपशॉट

साथ-साथ रह सकते हैं कई कानून

  • जब हम आज के कानून के दायरे में कई समुदायों के लिए अलग-अलग कानून लाने को लेकर गंभीर हैं, तो जबरन थोपा जाने वाला कोई बदलाव जरूरी नहीं रह जाता है.
  • साथ ही हम पर्सनल लॉ के नाम पर जेंडर पर आधारित न्‍याय के सिद्धांत की इजाजत नहीं दे सकते.
  • हम गोवा जैसे समान नागरिक संहिता का मॉडल देश के दूसरे भागों में नहीं ला सकते.
  • धर्म से जुड़े कई कानूनों को किसी एक कानून में पिरोने की जरूरत नहीं है. आज की सोच के मुताबिक कई कानून साथ-साथ रह सकते हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अंबेडकर चाहते थे सेक्‍युलर कानून

लेकिन पर्सनल लॉ के प्रति अंबेडकर की अनिच्‍छा जगजाहिर है.

उन्‍होंने पाया, ‘इस देश में धार्मिक मान्‍यताएं इतनी जटिल हैं कि वे जन्‍म से लेकर मृत्‍यु तक, जीवन के हर पहलू पर असर डालती हैं. ऐसा कुछ भी नहीं, जो धर्म नहीं हो. अगर पर्सनल लॉ को बचाया जाता है, मैं इस बात को लेकर आश्‍वस्‍त हूं कि व्‍यक्‍त‍िगत मामलों में हम ठहराव की स्‍थ‍िति में आ जाएंगे’

अंबेडकर सामाजिक न्‍याय के सिद्धांत के पक्षधर थे. वे सभी तरह के कानून चाहते थे- सिविल हो या क्रिमिनल.

जब संविधान सभा ने इस मुद्दे पर चर्चा की थी, तब से स्‍थ‍िति बदल चुकी है. जबरन थोपे जाने वाले बदलाव की कोई कोई जरूरत नहीं है, अगर हम कई समुदायों के लिए आज के कानून के मुताबिक पर्सलन लॉ लाए जाने के प्रति गंभीर हैं.

लेकिन हम पर्सनल लॉ के नाम पर जेंडर जस्‍ट‍िस के सिद्धांत की इजाजत नहीं दे सकते. हमें समान नागरिक संहिता पर किस तरह आगे बढ़ना चाहिए?

गोवा मॉडल

एक विकल्‍प गोवा मॉडल को फॉलो करने का है. गोवा में सभी समुदायों के लिए समान नागरिक कानून है और यह सभी के बीच स्‍वीकार्य है.

‘सेंटर फॉर द स्‍टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज’ के पीटर रोनाल्‍ड डिसूजा ने ‘इकोनॉमिक एंड पोलि‍टिकल वीकली’ के 28 नवंबर के अंक में लिखा है, ‘गोवा सिविल कोड ने नागरिक कानून के सभी क्षेत्रों- नागरिकता, करार, उत्तराधिकार, विवाह, संपत्त‍ि- सभी को एक साथ जोड़ दिया है’

इसके तहत विवाह का रजिस्‍ट्रेशन अनिवार्य है. संपत्ति पर उत्तराधिकार के मामले में बेटों और बेटियों को समान अधिकार दिए गए हैं.

वे कहते हैं, ‘गोवा के सिविल कानून में, विवाह के रजिस्‍ट्रेशन के बाद से ही वसीयत जैसे सभी तरह के ट्रांजेक्‍शन का दायित्‍व राज्‍य ले लेता है.’

क्‍या गोवा मॉडल का विस्‍तार देश के अन्‍य भागों में किया जा सकता है? यह संभव नहीं है. जरूरत ऐसे मॉडल है, जो हमारी विविधता में रंग भरने वाला हो.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

दोहरे कानून को प्राथमिकता देने की जरूरत है

हम यह सब कैसे कर सकते है? यह बहस की शर्तों को बदलते हुए किया जा सकता है. याद रहे कि समान नागरिक संहिता की तलाश कोई हिंदू बनाम मुस्‍ल‍िम मुद्दा नहीं है.

यह कानूनी समरूपता बनाम अलग-अलग कानून का मसला है. हमें समान नागरिक कानून की जरूरत है, जो लोगों को खाप पंचायतों की तानाशाही से बचाए. इस बात की गारंटी होनी चाहिए कि तलाकशुदा महिलाओं को वाजिब गुजरा भत्ता मिले.

एक पत्‍नी के रहते दूसरी पत्‍नी लाए जाने के चलन से महिलाओं को मुक्‍त‍ि मिलनी चाहिए. समाज घरेलू हिंसा से मुक्‍त हो.

अगर एक साथ कई तरह के कानून इस तरह के लक्ष्‍य हासिल करने के लिए जरूरी हों, तो वे रहें. तब मुस्‍लिम पर्सनल लॉ और हिंदू पर्सनल लॉ होने चाहिए.

अनुसूचित जनजातियों के लिए भी उनके मुताबिक सिविल कोड होना चाहिए. साथ ही इन कानूनों को व्‍यक्‍त‍िगत आजादी और सामाजिक न्‍याय के सिद्धांत मुताबिक बनाया जाना चाहिए.

यह लक्ष्‍य हासिल करने के लिए हमें अलग-अलग समुदायों के पर्सनल लॉ में सुधार करके शुरुआत करनी चाहिए. तमाम कानूनों को एक कानून के अंदर समाहित करने की कोई जरूरत नहीं है. कई कानून हों, जो पर्सनल लॉ के दायरे विवाह, परिवार या अन्‍य मुद्दों पर आज की सोच के हिसाब से ढाले गए हों.

इस तरह की कोशिश किसी को भयभीत नहीं करेगी और इसे लागू करना आसान होगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×