ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोरोनावायरस से लड़ने में सैनिकों को अभी लगाना गलत रणनीति है

सुरक्षा बलों में वायरस आसानी से फैल सकता है जो अक्सर तंग बैरकों में रहा करते हैं.

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

कोविड-19 महामारी से लड़ने के प्रयास में जुटी सरकार ने सैन्य और अर्धसैनिक बलों पर क्वॉरन्टीन सुविधाएं उपलब्ध कराने का बोझ डाल दिया है. उदाहरण के लिए सेना के दक्षिण पश्चिम कमांड ने जैसलमेर में एक विशाल क्वॉरन्टीन सेंटर बनाया है.

आसानी से बोझ डालने के कई फायदे हैं, जो सैन्य बलों पर निर्भर करता है. लेकिन कुल मिलाकर यह विचार अच्छा नहीं है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
सुरक्षा बलों में वायरस आसानी से फैल सकता है जो अक्सर तंग बैरकों में रहा करते हैं.

खासकर ऐसा इसलिए कि क्वॉरन्टीन में रहने वाले लोग जिम्मेदारी से बर्ताव नहीं करते. ऐसा पिछले हफ्ते इटली से लौटे एक समूह की रिपोर्ट कहती है. उन्हें क्वॉरन्टीन करने के लिए गुरुग्राम ले जाया गया.

कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सैन्य बलों को अलग-थलग रखना चाहिए

सबसे अच्छी रणनीति है कि सैनिकों को वायरस से दूर एकांत में रखा जाए न कि वहां, जहां इसका खतरा हो. वास्तव में नेतृत्व को विचार करना चाहिए कि अत्यावश्यक मामलों को छोड़कर छुट्टियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाए. अगर विरोधी ताकतें इस महामारी का इस्तेमाल करती हैं और हमारे देश को अस्थिर करती हैं या फिर लोगों में अशांति फैलती है तो प्राथमिक भूमिका के लिए सैन्यबलों की ही आवश्यकता होगी.

खाली होटलों का इस्तेमाल होना चाहिए

चूकि लोग खुद को अलग-थलग कर रहे हैं और मीटिंग एवं कान्फ्रेंस रद्द किए जा रहे हैं और होटलों में बुकिंग कम हो रही है, इसलिए हॉस्टल और होटलों की मांग करना बेहतर होगा. यहां सफाई रहती है और खाना बनाने की सुविधा भी है. सैनिकों के लिए यह सुविधाजनक है.

इस व्यवस्था में वित्तीय नजरिए से दोनों पक्षों को फायदा है : तुलनात्मक रूप में सस्ते में कमरे बुक हो सकेंगे और मालिकों को ऐसे समय में कुछ फायदा हो जाएगा जब मांग बेहद कम है.

अगर कोरोना वायरस के डर से ऐसे केंद्रों पर स्टाफ नहीं हैं तो देशभक्त स्वयंसेवी संगठन निश्चित रूप से सस्ते में मिल जाएंगे जो अपने साथी नागरिकों को सेवा उपलब्ध कराएंगे.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लोक व्यवस्था कायम रखने के लिए सेना बुलायी जा सकती है

सैन्य बलों को सुरक्षित और स्वस्थ रखने की एक और वजह है कि उनकी जरूरत जन-जीवन को सामान्य बनाने में हो सकती है.

अगर महामारी की स्थिति इतनी खराब हो जाए कि डॉक्टरों को यह चुनने की स्थिति आ जाए कि किसे बचाना है तो अस्पतालों में मारपीट की स्थिति पैदा हो जाएगी.

ऐसी हृदय विदारक स्थिति इटली के कई हिस्सों में पैदा हो चुकी है जहां कोरोना मामलों की संख्या विस्फोटक हो गयी थी. 19 मार्च को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने खास तौर से संक्रमण में ब़ढ़ोतरी की ऐसी ही ‘विस्फोटक’ स्थिति से आगाह किया है.

चूकि भारतीय अस्पतालों में परिवारों और रिश्तेदारों में भीड़ जमाने की प्रवृत्ति होती है इसलिए दंगा-फसाद की स्थिति वास्तविकता बन जाती है. छोटे-छोटे मामलों में भी पहले ऐसा हो चुका है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्वॉरन्टीन से बचने की कोशिशों पर रोक में भी सैन्य टुकड़ियां मददगार

भारत में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो अस्पताल और क्वॉरन्टीन से बच निकले हैं. अधिकारी यह सोचने को मजबूर हैं कि जब तेज रफ्तार से महामारी फैलेगी तो कैदखाने जैसी स्थिति में क्वॉरन्टीन होने के मामले भी बढ़ेंगे. वैसी स्थिति में सैन्य बलों को तैनात करने की जरूरत होगी.

भारत में पीड़ितों की सुनामी का खतरा बना हुआ है क्योंकि किसी दूसरे प्रमुख देशों की तुलना में यहां कम लोगों की जांच हुई है. (16 मार्च तक 10 लाख में 6)

खाने-पीने और जरूरी सामान की किल्लत : सैन्य टुकड़ियां रिजर्व रखने का एक अन्य कारण

सेना की ओर से उपलब्ध करायी जाने वाली क्वॉरन्टीन सुविधाओँ के संदर्भ में कैच-22 साफ सुथरा और प्रभावशाली तरीके से चल रहा है. लोग कई क्वॉरन्टीन सुविधाओं से मुख्य रूप से इसलिए बच रहे हैं क्योंकि अक्सर उनमें साफ-सफाई की कमी होती है जिस वजह से वे वायरस इकट्ठा हो जाते हैं. गंदे बाथरूम और डोरमेट इसके लिए जाने जाते हैं.

कई सार्वजनिक अस्पतालों की बुरी स्थिति आने वाले दिनों में चर्चा का विषय रहने वाली है.

अगर उपभोग में गिरावट या आपूर्ति श्रृंखला में बाधा और नकद प्रवाह में कमी की स्थिति गंभीर है तो देश में आर्थिक अनिश्चितता भी बढ़ जाएगी.

अगर अभाव की स्थिति बनती है, खासकर भोजन और दूसरी बुनियादी घरेलू आवश्यकताओं की आपूर्ति पर इसका असर पड़ता है तो आम लोगों के बीच अशांति की स्थिति पैदा हो सकती है. वैसी स्थिति में सैन्य टुकड़ियों की तैनाती एक आवश्यकता बन जाएगी. यह एक अलग कारण है कि उन्हें रिजर्व में रखा जाना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

महामारी से लड़ने का केरल मॉडल

महामारी से किस तरह बेहतर तरीके से निपटा जाए, इसका शानदार उदाहरण है केरल. होली के बाद से भारत सरकार ने विदेश से लौटने वाले लोगों में लक्षण को पहचानने और उनकी निगरानी पर तुलनात्मक रूप में अच्छा काम किया है.

लेकिन वुहान में में इस भयावह कहानी शुरू होने के शुरुआती चार महीने में एअरपोर्ट पर स्क्रीनिंग जरूरत के मुताबिक नहीं रही.

हम ज्वालामुखी के मुहाने पर हैं. अगर यह फूट जाता है, यह अर्थव्यवस्था, सामाजिक सद्भाव और नागरिकों की निजता को अपंग कर देगा.

वास्तव में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले भारत में खतरा कहीं ज्यादा बड़ा है. इसकी वजह यहां की आबादी का घनत्व, भीड़-भाड़ वाला वातावरण, सफाई की स्थिति, गंदगी का निस्तारण, साफ-सफाई और कई अस्पतालों की दयनीय अवस्था हैं जो कोरोना वायरस के लिए उन फतिंगों की तरह हैं जो आग के चारों ओर मंडराते हैं.

(लेखक ने ‘द स्टोरी ऑफ कश्मीर’ और ‘द जेनरेशन ऑफ रेज इन कश्मीर’ नामक पुस्तकें लिखी हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @david_devadas. यह वैचारिक आलेख है और इसमें लेखक के निजी विचार हैं. क्विंट का इससे कोई सरोकार नहीं है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×