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मोदी के सियासी गुरु आडवाणी आज अकेले क्यों खड़े हैं?

आज आडवाणी अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है

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एक वक्त ऐसा भी था, जब प्रधानमंत्री वाजपेयी हर हाल में मुख्यमंत्री मोदी से इस्तीफा चाहते थे और आडवाणी किसी हाल में उनके इस्तीफे के पक्ष में नहीं थे. मोदी के इस्तीफे के सवाल पर बीजेपी के दो शीर्ष शख्सियतों के बीच भीतरी टकराव भी हुआ, लेकिन मोदी का बने रहे. टिके रहे, क्योंकि मोदी की पीठ पर आडवाणी का हाथ था. पढ़िए आडवाणी और मोदी की नजदीकियों और दूरियों की दिलचस्प कहानी.

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वो तारीख थी 12 अप्रैल 2002...

गुजरात दंगे के बाद गोवा में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हो रही थी. दिल्ली से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी एक ही विमान से गोवा जाने वाले थे. उन दोनों के अलावा विदेश मंत्री जसवंत सिंह को उस जहाज में जाना था. दिल्ली से प्रधानमंत्री के विशेष विमान के रवाना होने से कुछ घंटे पहले विनिवेश मंत्री अरुण शौरी के पास प्रधानमंत्री से सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्रा का फोन आया.

मिश्रा ने शौरी से पूछा - ‘क्या आपने गोवा का टिकट करवा लिया है ? ‘

शौरी ने जवाब दिया- ‘ हां‘

बृजेश मिश्रा ने कहा:

‘आप अपना टिकट तुरंत कैंसिल करा लीजिए. आपको पीएम के प्लेन में जाना है.‘ वजह पूछने पर बृजेश मिश्रा ने अरुण शौरी से कहा कि अगर आप साथ नहीं जाएंगे, तो वाजपेयी जी और आडवाणी जी आपस में एक शब्द भी बात नहीं करेंगे. अरुण शौरी भी दोनों के बीच कई दिनों से चली आ रही संवादहीनता से परिचित थे. एक दिन पहले ही शौरी सिंगापुर और कंबोडिया की यात्रा से लौटे थे. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इस सरकारी यात्रा में भी अरुण शौरी वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य और बृजेश मिश्रा के कहने पर ही गए थे.

विमान में चुप-चुप क्यों थे आडवाणी- वाजपेयी

जब अरुण शौरी तय वक्त पर प्रधानमंत्री को लेकर जाने वाले विशेष विमान में दाखिल हुए, तो वहां पहले से वाजपेयी, आडवाणी और जसवंत सिंह अपनी -अपनी सीटों पर बैठे थे. बकौल शौरी, विंडो की एक सीट पर वाजपेयी बैठे थे. सामने वाली विंडो सीट पर आडवाणी थे. दूसरी तरफ जसवंत सिंह. जैसे ही प्लेन ने टेक ऑफ किया, वाजपेयी ने सामने रखे टेबल से एक अखबार उठाया और पूरे पन्ने को इस तरह से खोलकर पढ़ना शुरू किया कि सामने बैठे आडवाणी से नजरें भी न मिल पाए.

फिर आडवाणी ने भी एक अखबार उठाया और पढ़ने लगे. प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री आमने-सामने बैठकर भी एक-दूसरे से बचने की कोशिश कर रहे थे. जसवंत सिंह और अरुण शौरी को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उन दोनों के बीच संवादहीनता खत्म कराई जाए.

कुछ सोचने के बाद अरुण शौरी ने वाजपेयी के हाथ से अखबार ले लिया और कहा:

आज आडवाणी  अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है
साल 2002 के दंगों के बाद उस वक्त पीएम रहे वाजपेयी ने उस वक्त गुजरात के सीएम रहे नरेंद्र मोदी  के इस्तीफे की बात की थी.
(फाइल फोटो : PTI)
‘‘वाजपेयी जी, न्यूज पेपर तो बाद में भी पढ़ा जा सकता है. आप आडवाणी जी वो जो कहना चाहते हैं, वो कह क्यों नहीं रहे हैं?‘ अरुण शौरी के मुताबिक वाजपेयी ने कहा दो चीजें बहुत जरूरी हैं. एक तो वेंकैया नायडू को जेना कृष्णमूर्ति की जगह बीजेपी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए. दूसरा- मोदी को इस्तीफा देना चाहिए’’
आज आडवाणी  अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है

आडवाणी ने कहा कि इससे राज्य में अस्थिरता जैसी स्थिति हो जाएगी, लेकिन वाजपेयी के मूड को देखते हुए ये तय हो गया कि गोवा पहुंचकर नरेन्द्र मोदी को इस्तीफे के लिए कहा जाएगा. आगे क्या हुआ, जानने से पहले लालकृष्ण आडवाणी ने विमान यात्रा में हुए संवाद का अपनी किताब MY COUNTRY, MY LIFE में जो जिक्र किया है, उसे भी जान लें.

आडवाणी ने लिखा है- दो घंटे की यात्रा के दौरान शुरू में हमारी चर्चा गुजरात पर ही केन्द्रित रही. अटल जी ध्यानमग्न थे. थोड़ी देर के लिए निस्तब्धता छाई रही.
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तभी जसवंत सिंह के सवाल पूछने के बाद चुप्पी टूटी, ‘'अटल जी आप क्या सोच रहे हैं?‘ अटल जी ने जवाब दिया, ‘कम से कम इस्तीफे का ऑफर तो करते‘ तब मैंने कहा, 'यदि नरेन्द्र के पद छोड़ने से गुजरात की स्थिति में सुधार आता है, तो मैं चाहूंगा कि उन्हें इस्तीफे के लिए कहा जाए. लेकिन मैं नहीं मानता कि इससे कोई मदद मिल पाएगी. मुझे विश्वास नहीं है कि पार्टी की राष्ट्रीय परिषद या कार्यकारिणी इस प्रस्ताव को स्वीकार करेगी.‘'

विमान के लैंड करने से पहले ही मोदी के इस्तीफे की पृ्ष्ठभूमि तैयार हो गई. वाजपेयी निश्चिंत हो गए.

गोवा पहुंचते ही कैसे खेल पलट गया

गोवा पहुंचने के बाद नरेन्द्र मोदी को वाजपेयी की राय से अवगत करा दिया गया. बकौल आडवाणी मोदी इस्तीफे के लिए सहमत भी हो गए. कार्यकारिणी शुरू हुई. कई नेताओं के बोलने के बाद जब मोदी बोलने के लिए उठे, तो उन्होंने गुजरात में बीते सालों के दौरान हुए दंगों का जिक्र करते हुए सांप्रदायिक तनाव की ऐतिहासिक वजहें गिनाईं. अंत में कहा कि गुजरात में होने वाले इस कांड की जिम्मेदारी लेते हुए मैं इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं.

आज आडवाणी  अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है
मोदी का इतना कहना था कि कई राज्यों से आए बीजेपी नेता शोर मचाने लगे. मोदी के इस्तीफे का विरोध करने लगे. इस्तीफा मत दो, इस्तीफा मत दो के नारे लगने लगे. प्रमोद महाजन तक ने कहा कि मोदी के इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता.

वाजपेयी हतप्रभ थे. उन्हें अपनी हार होती दिख रही थी. तभी अरुण शौरी ने माइक लेकर विमान में वाजेपेयी और आडवाणी के बीच हुई बातचीत और सहमति के बारे में सबको जानकारी दी. शोर तब भी नहीं थमा. मोदी का इस्तीफा नहीं होगा, जैसे नारे वाजपेयी को मुंह चिढ़ा रहे थे. माहौल भांपकर वाजपेयी ने कहा, ‘ठीक है, इसका फैसला बाद में कर लेंगे.’

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तब भीड़ से आवाज आई, ‘बाद में नहीं, आज ही करिए फैसला. मोदी का इस्तीफा नहीं होगा.‘ फिर सब इसी तरह का शोर मचाने लगे.

आडवाणी सब कुछ चुपचाप देख रहे थे . उन्होंने एक शब्द नहीं कहा. नारे लगाने वालों को रोकने की भी कोशिश नहीं की. वाजपेयी को जिंदगी में पहली बार अपनी पार्टी के सैकड़ों जूनियर और युवा नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ रहा था. उनके चेहरे पर तनाव और हारने की कसक साफ दिख रही थी. इसी शोर में वाजपेयी की हार हुई. आडवाणी और मोदी की जीत हुई.

बकौल अरुण शौरी, गोवा में हुई जलालत को ताउम्र नहीं भूल पाए. उन्हें लगा कि विमान में सब तय होने के बाद भी मोदी के बचाव में इस नाटक की पटकथा पार्टी नेताओं ने ही लिखी थी.

क्यों इतने परेशान थे वाजपेयी

गोवा जाने से पहले करीब एक सप्ताह पहले वाजपेयी गुजरात होकर आए थे. उन्होंने अहमदाबाद के शाह आलम कैंप का भी दौरा किया था, जहां करीब नौ हजार दंगा पीडितों ने शरण ले रखी थी.

आज आडवाणी  अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी
(फोटोः PTI)
वहां एक मुस्लिम महिला ने वाजपेयी ने ये कहकर झकझोर दिया था कि अब एकमात्र आप ही हैं, जिसका सहारा है. जो इन नरक से बचा सकता है. उसी के बाद वाजपेयी ने अहमदाबाद के प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सीएम नरेन्द्र मोदी को राजधर्म निभाने की नसीहत दी थी.

बगल में बैठे नरेन्द्र मोदी ने कहा था, 'हम भी तो वही कर रहे हैं साहेब'. फिर वाजपेयी ने थोड़ा नरम होते हुए कहा था, ‘ उम्मीद है कि नरेन्द्र भाई भी वही कर रहे होंगे.'

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वाजपेयी पर लिखी किताब ‘THE UNTOLD VAJPAYEE’ के मुताबिक, गुजरात से लौटने के बाद से ही वाजपेयी लगातार परेशान थे. विरोधी दलों का भी उन पर जबरदस्त दवाब था. वो चाहते थे कि मोदी इस्तीफा दे दें, लेकिन इसके लिए उन्हें उपप्रधानमंत्री और नरेन्द्र मोदी के सबसे बड़े पक्षधर आडवाणी को तैयार करना था.

वाजपेयी भीतर ही भीतर घुंट रहे थे, लेकिन आडवाणी से अपने दिल की बात कह नहीं पा रहे थे. इसका जिक्र उनके बेहद करीब रहे अरुण शौरी ने कई साल पहले एक इंटरव्यू और लेख में किया था. गुजरात से लौटने के तीन बाद वाजपेयी को सिंगापुर और कंबोडिया की सरकारी यात्रा पर जाना था. उन्हें इस बात की चिंता सता रही थी कि अगर वहां मीडिया ने गुजरात के मुद्दे पर उनसे सवाल पूछा तो क्या मुंह दिखाएंगे. यही बात उन्होंने गुजरात में कही भी थी.

तब अरुण शौरी ने उन्हें सलाह दी कि आप क्यों नहीं आडवाणी जी से इस मुद्दे पर बात लेते हैं. वाजपेयी ने कहा जरूर कि मैं बात करूंगा, लेकिन की नहीं. सिंगापुर यात्रा पर उनके साथ अरुण शौरी बृजेश मिश्रा के कहने पर सिर्फ इसलिए साथ गए, ताकि उन्हें कहीं असहज स्थितियों का सामना करना पड़े तो शौरी उनके साथ रहें. लौटकर आए तो फिर शौरी को उनके साथ भेजा गया. इसके बाद की कहानी आप पढ़ चुके हैं.

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आज आडवाणी  अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है

अरुण शौरी ने इस विमान यात्रा का विवरण 2009 में Alice in Blunderland नामक लेख में लिखा. उसके बाद भी समय-समय पर शौरी अपने इंटरव्यू में वाजपेयी-आडवाणी संवाद और मतभेद का जिक्र करते रहे हैं. शौरी ने इस बात पर हर बार जोर दिया है कि वाजपेयी उन दिनों बहुत दुखी थे और मोदी के इस्तीफे के पक्ष में थे. गुजरात के दंगा पीड़ित इलाकों से लौटने के बाद उन्हें विदेश जाते हुए इसी बात की चिंता थी कि अगर उन्हें वहां दंगों के दौरान सरकार की भूमिका पर सवाल पूछे गए तो वो क्या जवाब देंगे.

वाजपेयी पर ULLEKH N.P की किताब THE UNTOLD VAJPAYEE में भी इस वाजपेयी की चिंता और परेशानियों का जिक्र किया गया है. आडवाणी ने अपनी किताब में वाजपेयी से इस मुद्दे पर अपने मतभेद का जिक्र करते हुए लिखा है कि वाजपेयी ने उनसे कहा, ‘कम से इस्तीफे का ऑफर तो करते‘ , यहां वाजपेयी उतने तल्ख भले नहीं नजर आते हैं, लेकिन आडवाणी ने भी मानते हैं कि वाजपेयी मोदी का इस्तीफा चाहते थे.

अब वक्त का पहिया काफी घूम चुका है. गुजरात के सीएम नरेन्द्र मोदी का इस्तीफा चाहने वाले पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी लंबी बीमारी से जूझते हुए इन दुनिया से रुखसत हो चुके हैं. मोदी को हर हाल में बनाए-बचाए और बढ़ाए रखने की हमेशा पैरोकारी करने वाले बुजुर्ग पूर्व उप प्रधानमंत्री आडवाणी हाशिए पर पर तो 2014 से ही हैं. न उनकी कोई सुनता है, न कोई पूछता है. तमाशबीन बना दिए गए आडवाणी उस मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा हैं, जिसका अपना मार्ग ही बंद है.

अब गुजरात के गांधीनगर से सांसद आडवाणी का टिकट भी काटकर पार्टी ने संदेश दे दिया कि आडवाणी युग खत्म हो चुका है. वैसे नब्बे पार आडवाणी चाहते तो खुद ही अपनी उम्र का हवाला देकर चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं. पार्टी ने साफ कर दिया है कि अब उनकी उम्र आराम करने की है.

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सोशल मीडिया पर आडवाणी, मोदी और अमित शाह की 1991 की एक तस्वीर घूम रही है, जिसमें आडवाणी गांधीनगर से पर्चा भरते दिखाई दे रहे हैं. मोदी उनके बगल में बैठकर उनकी मदद कर रहे हैं और पीछे खड़े चंद चेहरों के बीच से अमित शाह झांक रहे हैं. अब वक्त कितना बदल गया है. अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष हैं. मोदी पीएम हैं और आडवाणी बेटिकट. गांधीनगर से पर्चा भरते वक्त आडवाणी के पीछे खड़े होकर झांक रहे शाह उसी सीट से उम्मीदवार हैं. वर्तमान के इस सबसे उदास मोड़ खड़े आडवाणी अपने अतीत और भविष्य में झांक रहे होंगे.

आज आडवाणी  अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है
पीएम मोदी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और वरिष्ठ बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी 
(फोटो: PTI)
नब्बे के शुरुआती सालों में आडवाणी के लिए समर्पित कार्यकर्ता की तरह उनकी यात्राओं में उनके साथ दिखने वाले नरेन्द्र मोदी यहां तक शायद न पहुंचे होते अगर आडवाणी का हाथ उनकी पीठ पर नहीं होता. लेकिन ये भी सच है कि 2013 में अगर मोदी की दावेदारी का विरोध करने वाले आडवाणी कामयाब हो जाते तो भी मोदी यहां नहीं होते.

पीएम बनने का रास्ता आडवाणी विरोध पर संघ का बुलडोजरचलाकर ही बुलंद हुआ था. अपने जिस चेले को सीएम बनाने रखने के लिए आडवाणी वाजपेयी की नाराजगी मोल लेने को तैयार थे, उसी चेले को पीएम बनते नहीं देखना चाहते थे, क्योंकि उनकी अपनी हसरतें भी आसमान पर थीं. 2009 में अपने पीएम बनने के अपने सपनों के ढहने के बाद भी आडवाणी आखिरी दांव खेलना चाहते थे. तभी उनकी राह में चेले की उम्मीदवारी ही रोड़ा बनने लगी थी. आडवाणी ने मोदी की खुली मुखालफत की. नाराजगी चिट्ठी लिखकर सरेआम कर दिया. यहीं से दोनों के बीच अंदरुनी खटपट पहली बार सतह पर आई. महत्वाकांक्षाओं के टकराव में चेले ने गुरु को ऐसी शिकस्त दी, जिसे तब भी जमाने ने देखा और अब भी देख रहा है.

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आज आडवाणी नितांत अकेले हैं. किनारे हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में उनकी हैसियत घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है. कहने को तो वो मार्गदर्शक मंडल में हैं. उनका टिकट काटने के बाद भी सभी बीजेपी नेता यही कह रहे हैं कि हम सब उनका सम्मान करते हैं लेकिन बीते चार-पांच सालों से आडवाणी का एकाकीपन और कई मौकों पर दैन्य हालत में उनकी मौजूदगी ही उनकी हालत बयान करती है.

नब्बे के दशक में बीजेपी नेताओं के ‘लौहपुरुष‘ अब ‘मौनपुरुष’ में तब्दील हो चुके हैं.  नब्बे पार की उम्र ने उन्हें शारीरिक तौर पर कमजोर कर दिया है और मोदीराज में बेहैसियत होकर मानसिक तौर पर कमजोर हो चुके होंगे. जब राष्ट्रपति के लिए नामों की चर्चा हो रही थी, तब भी कुछ आडवाणी समर्थकों का मानना था कि जीवन के आखिरी दौर में आडवाणी को सबसे ऊंचा मुकाम दिया जा सकता था, राष्ट्रपति भवन में गुजारने के लिए शायद उनकी उम्र इतनी बाधा भी नहीं बनती. लेकिन ये हो न सका.
आज आडवाणी  अकेले हैं. एक एक ईंट-पत्थर जोड़कर जिस पार्टी को बनाई, उस पार्टी में घर से सरमायेदार बुजुर्ग से कम है
पीएम मोदी संग बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी (फोटो: रॉयटर्स)

एक दलील ये भी है कि आडवाणी को इस दिन का इंतजार करने से पहले ही अपने संन्यास का ऐलान कर देना चाहिए था और सक्रिय राजनीति से सम्मानजनक विदाई लेनी चाहिए थी, लेकिन उम्र की इस ढलान पर भी उनकी हसरतों ने उन्हें संन्यास नहीं लेने दिया. नतीजा सामने है. जनरेशनल चेंज की जरूरत के नाम पर बेटिकट हो चुके अब आडवाणी अपने स्वर्णिम दौर पर याद करके गमजदा होने के आलावा कुछ कर भी तो नहीं सकते.

आडवाणी फिल्में बहुत देखते हैं. गाने सुनने के भी शौकीन हैं. ‘ दिल ने पुकारा ’ फिल्म के इस गाने का बोल शायद उनका हाल -ए -दिल बयान करने के लिए काफी हो.

वक्त करता जो वफा, आप हमारे होते

हम भी औरों की तरह आप को प्यारे होते

अपनी तकदीर में पहले ही से कुछ तो गम हैं

और कुछ आप की फितरत में वफा भी कम है

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