प्रकृति अपने आप को खुद ही रिस्टोर करती है लेकिन बदले में हमसे कुछ छीन भी लेती है. प्रकृति के साथ खिलवाड़ हमें जलवायु (environment) तबाही के रूप में भुगतना पड़ता है और शायद इसके लिए हमें इतिहास माफ ना करे.
21 साल पहले ओडिशा को सुपर साइक्लोन के रूप में प्रकृति के अभूतपूर्व क्रोध का सामना करना पड़ा.तब लगभग 14 जिलों में 36 घंटों के लिए जिंदगी रुक सी गई थी. तूफान का केंद्र जगतसिंहपुर जिले के इरसामा में था. सुपर साइक्लोन से हुई तबाही इतनी अप्रत्याशित और डरावनी थी कि 10 हजार से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई और उसने कई क्षेत्रों को पूरी तरह से तबाह कर दिया था.
लेकिन इससे उलट ओडिशा के 480 किलोमीटर के समुद्री तटों से लगा ऐसा भी क्षेत्र था जहां प्रकृति आश्चर्यजनक रूप से दयालु रही. इसका कारण था तटों पर मैंग्रोव वन का आवरण,जिसने समुंद्र के प्रकोप और इंसानी क्षेत्र के बीच बैरियर के रूप में काम किया. यह केंद्रपरा जिले के भीतरकनिका वन्यजीव अभ्यारण का विस्तार था जहां मैंग्रोव वन बंगाल की खाड़ी और मानव बस्तियों के बीच प्राकृतिक किलेबंदी के रूप में काम करती है.
यह पूरा क्षेत्र उष्णकटिबंधीय जलवायु (ट्रॉपिकल क्लाइमेट) के अंतर्गत आता है और अप्रैल से मई महीने के दौरान यहां समुद्री प्रकोप नियमित विशेषता बनी हुई है. यहां चक्रवर्ती तूफानों का बार बार आना सिर दर्द बना रहता है लेकिन तटों के किनारों के विशाल क्षेत्र मैंग्रोव वनों के कारण सुरक्षित रहते हैं, जिससे मानव जीवन की रक्षा होती है.
सुपर साइक्लोन 29 अक्टूबर 1999 को उड़ीसा से टकराया और कई वो क्षेत्र तबाह हो गए जहां मैनग्रोव वन की सुरक्षा मौजूद नहीं थी. लेकिन दूसरी तरफ उल्लेखनीय बात यह रही कि राजनगर डिवीजन और अन्य तटीय क्षेत्रों में बहुत कम नुकसान हुआ,जहां मैंग्रोव वन बड़ी संख्या में मौजूद थे.यह क्षेत्र प्रकृति के क्रोध से चमत्कारिक रूप से बचा रहा.वास्तव में यह चमत्कार केवल मैंग्रोव वनों था.
यहां तक कि हाल में आए 'यास चक्रवात' में भी यह आश्चर्य देखने को मिला,जिसमें तूफान की रफ्तार 135 से 140 किलोमीटर प्रति घंटे तक थी. भीतरकनिका अभ्यारण ,जहां मैंग्रोव की बहुतायत है,ने कई क्षेत्र के लिए सुरक्षा बैरियर का काम किया.इसके पहले अम्फान चक्रवात ने भी भीतरकनिका अभ्यारण से गुजरते हुए लोगों,वनस्पतियों और जीवों को खतरे में डाल दिया था.लेकिन अधिकतर क्षेत्रों ने मैंग्रोव के सुरक्षा बैरियर की सहायता से अम्फान तूफान की गति का डटकर सामना किया.
मैंग्रोव वन: अभेद्य सुरक्षा की किलेबंदी
इन क्षेत्रों में पिछले दो दशकों में 7 ऐसे समुद्री 'आक्रमण' हुए हैं. लेकिन 1999 में आए सुपर साइक्लोन से ही, जब हवा की गति 260 किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर लगभग 300 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुंच गई थी, यह साबित हो गया कि मैंग्रोव वन दीवारों की तरह खड़े हैं और लोगों के जीवन के साथ-साथ अन्य जीवों को भी बचा रहे हैं.
राजनगर मैंग्रोव (वाइल्डलाइफ) डिवीजन के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर विकास रंजन दास के अनुसार "भीतरकनिका नेशनल पार्क के सीमा पर मौजूद गांवों के इंसानी बस्तियों को के लिए मैंग्रोव वनों ने बफर जोन का काम किया है".
तटीय जंगलों को काटना
ओडिशा,जो जंगलों की प्रचुरता का आनंद लेता है, वह समुद्री तटों के किनारे 231 वर्ग किलोमीटर में फैले मैंग्रोव वन के विस्तार पर भी गर्व कर सकता है. लेकिन दुखद है कि मानव बस्तियों को बसाने ,खेती करने ,झींगा उत्पादन के अलावा अन्य गतिविधियों के लिए लगातार होते मानव अतिक्रमण ने मैंग्रोव वनों को काफी हद तक कम कर दिया है.
एक बार जब मैंग्रोव वन का एक हिस्सा खत्म कर दिया जाता है तो उसे वापस से उगने में दशकों लग जाते हैं. इसलिए गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए मैंग्रोव वनों को साफ करना एक दुखद तमाशा है. झींगों के उत्पादन के लिए तालाब बनाने को मैंग्रोव वनों को साफ किया जा रहा है. यह कोस्टल रेग्यूलेशन जोन(CRZ)कानून का उल्लंघन है क्योंकि यह क्षेत्र अभ्यारण नियमों द्वारा सुरक्षित क्षेत्र में आता है.
भीतरकनिका में मौजूद मैंग्रोव वन पश्चिम बंगाल के सुंदरवन के बाद दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है. इसे 'तटीय वुडलैंड' भी कहा जाता है.
खतरे में विरासत
भीतरकनिका के मैंग्रोव वन में 67 प्रजातियों के पौधे पाए जाते हैं जो गहिरमाथा अभ्यारण तक फैला हुआ है. यह क्षेत्र ओलिव रिडले समुद्री कछुओं के लिए दुनिया का सबसे बड़ा ब्रीडिंग प्लेस माना जाता है, जहां वे अंडा देने के लिए हजारों किलोमीटर का सफर तय करके आते हैं.
हालांकि इस अभ्यारण में पाये जाने वाले 30 रेप्टाइल की प्रजातियों में विशाल खारे पानी के मगरमच्छों को ‘फ्लैगशिप’ प्रजाति माना जाता है ,जो अप्रत्यक्ष रूप से मैनग्रोव की रक्षा उन तत्वों से करते हैं जो अवैध शिकार, मछली पकड़ने और जलाऊ लकड़ी के लिए इधर आते हैं. मैनग्रोव की जटिल जड़ प्रणाली इस तटीय क्षेत्र को स्थिरता प्रदान करती है तथा समुद्री कटाव को रोकने के साथ-साथ समुद्री लहरों को धीमे करती है.
लेकिन पिछले कुछ दशकों में अनियंत्रित मानव गतिविधियों और बांग्लादेश से होते अवैध प्रवास ने मिलकर मैंग्रोव वनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और इसका परिणाम हुआ कि यहां मैंग्रोव के बड़े-बड़े हिस्से साफ हो गए.
समुद्री लहरों को नहीं रोका जा सकता क्योंकि यह प्राकृतिक घटना है जो सूर्य और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण उत्पन्न होती है .लेकिन मैंग्रोव वनों जैसे महान विरासत को बचाने के लिए लोगों को आगे आना होगा और उन लोगों की प्रशंसा भी होनी चाहिए जो इस दिशा में प्रयास कर रहें हैं.
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