COVID-19 के दौर में स्कूली बच्चों की शारीरिक सुरक्षा पर सबका ध्यान लगा हुआ है. लेकिन इससे जुड़ा एक और संकट है, जिससे हमें जूझना है. यह है मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा.
हर उम्र के बच्चों का स्कूल से नाता टूटा हुआ सा है. वे चहकते-इठलाते अपने संगी साथियों के साथ स्कूल नहीं जा पा रहे.
युवा स्टूडेंट्स के ग्रेजुएशन्स रद्द हो चुके हैं. जिन बच्चों के पास इंटरनेट कनेक्टविटी नहीं है, उन्हें अपेक्षित स्तर की शिक्षा नहीं मिल पा रही. इन हालात में स्टूडेंट्स को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है. उनकी मानसिक और भावनात्मक सेहत पर असर हो रहा है. कामयाबी का स्वाद पहुंच से दूर हो रहा है.
COVID ने हालात बदतर किए हैं
अगर कोई बच्चा इस ‘न्यू नॉर्मल’ से तालमेल नहीं बैठा पा रहा, या अपने भविष्य को लेकर आशंकाओं से भरा हुआ है तो उसे जबरदस्त एनजाइटी महसूस हो सकती है. इसका उसके जीवन के कई पहलुओं पर असर हो सकता है, उसके सोशल कनेक्शन्स पर, उसकी शारीरिक सेहत और स्कूल में प्रदर्शन पर भी.
यूनेस्को में हम संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 4 के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह लक्ष्य है, लोगों को ऐसी अच्छी शिक्षा उपलब्ध हो जो कि सभी को समान रूप से प्राप्त हो यानी समावेशी और समतामूलक हो. साथ ही सभी लोग जीवनभर सीखते रहें, यानी लाइफ लॉन्ग लर्निंग को बढ़ावा दिया जाए. यह COVID-19 के हाहाकार से पहले की चुनौतियां थीं. अब, जब हम लगभग छह महीने से इस वायरस के संकट से जूझ रहे हैं, तब हालात बदतर हुए हैं. खास तौर से हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए- लड़कियों, विकलांग व्यक्तियों, गरीब पृष्ठभूमि वाले लोगों के लिए और उनके लिए जो शहरी क्षेत्रों से दूर बसते हैं.
यूनेस्को का नया कैंपेन
इस साल की शुरुआत में यूनेस्को ने माइंडिंग आर माइंड्स कैंपेन शुरू किया था. चूंकि यह स्पष्ट था कि स्टूडेंट्स पर महामारी के असर को कम करने के लिए व्यापक स्तर पर मेंटल हेल्थ पर केंद्रित रणनीति बहुत जरूरी है. इसके लिए हम सबके प्रयासों की जरूरत है ताकि यह पक्का हो कि सफलता हासिल करने के लिए स्टूडेंट्स को जिस देखभाल की जरूरत है, वो देखभाल उन्हें मिले. इन लोगों की मानसिक अवस्था पर महामारी और फिर लॉकडाउन के असर को देखते हुए नई दिल्ली स्थित यूनेस्को कार्यालय ने पांच पोस्टर बनाए हैं जोकि अंग्रेजी, हिंदी, सिंहली और तमिल भाषाओं में हैं.
इस महामारी के नेगेटिव पहलुओं से लड़ने के लिए हमें यह तय करना होगा कि हमारे स्टूडेंट्स की मानसिक स्थिति अच्छी हो. वे पिछले साल की यादों से बाहर निकल सकें, बीते वक्त के नुकसान को झेल सकें.
लोगों की मानसिक स्थिति अच्छी हो, इसके लिए भारत की सदियों पुरानी परंपराओं की मदद ली जा सकती है जो यहां की संस्कृति में रची बसी है.
ध्यान और योग से अच्छी होती है मानसिक अवस्था
जैसे ध्यान और योग साधना ऐसी बेशकीमती धरोहर हैं जिनसे सांस को नियंत्रित किया जा सकता है और युवा एवं बच्चे एनजाइटी और कन्फ्यूजन को दूर कर सकते हैं. योग में तो मानसिक के साथ-साथ शारीरिक व्यायाम भी होता है.
खुशी की बात तो यह है कि इन परंपरागत तरीकों का इस्तेमाल कोई भी कर सकता है- घर पर रहकर काम करने वाले भी, और पढ़ने वाले भी. इसके लिए ऑनलाइन वीडियो, मुफ्त ऐप्स और दूसरी ऑनलाइन गाइड्स भी हैं. दुनियाभर में लोग इनका अभ्यास कर रहे हैं. भारत की नई शिक्षा नीति में भी साफ लिखा है कि यह भारतीय विरासत का अभिन्न हिस्सा है और इसे इसी प्रकार माना जाना चाहिए. कुल मिलाकर, परंपरागत तौर तरीके बहुत मायने रखते हैं और इतने अनूठे हैं कि जबरदस्त तनाव को भी काबू में कर सकते हैं.
छोटे-छोटे कदम जरूरी
लोग छोटे-छोटे कदमों से अपने बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ रख सकते हैं. उन्हें स्वस्थ आहार दे सकते हैं. फिजिकल एक्सरसाइज को बढ़ावा दे सकते हैं. दोस्तों और साथियों से ऑनलाइन गेमिंग या सोशल मीडिया के जरिए कनेक्ट कर सकते हैं. नियमित रुटीन अपनाकर और भरपूर नींद लेकर भी हम स्वस्थ रह सकते हैं.
यूनेस्को के नए माइंडिंग आवर माइंड्स कोर्स को जल्द शुरू किया जाएगा. इसमें ऐसे कई टिप्स दिए गए हैं जो स्टूडेंट्स को इन मुश्किल हालात से मुकाबला करने लायक बनाएंगे.
भारत सरकार की नई शिक्षा नीति कहती है कि शिक्षा ग्रेट लेवलर है. यह स्टूडेंट्स के लिए सामाजिक-आर्थिक तरक्की का रास्ता साफ करती है और भारत को आने वाले दशकों में विश्व मंच पर पहुंचा सकती है. वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए यह वादा पूरा हो, इसके लिए जरूरी है कि हम बच्चों और उनके माता-पिता की मदद करें. वे महामारी के दौर में एनजाइटी, भ्रम और दूसरे नुकसान से मजबूती से निपट सकें.
(एरिक फाल्ट भारत, भूटान, मालदीव और श्रीलंका के यूनेस्को रिप्रेजेंटेटिव हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं.)
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