कोविड-19 संकट के दौर में विश्व स्तर पर जब महिला लीडरशिप पर बातचीत होती है तो दक्षिण एशिया की महिला नेताओं का कोई जिक्र नहीं होता. विमेन फॉर पॉलिटिक्स नामक ग्रुप का कहना है कि दक्षिण एशिया में बड़े स्तर पर महिलाओं और पुरुषों के बीच गैर बराबरी कायम है, फिर भी महामारी के प्रकोप से लड़ने में महिला नेताओं ने कई अच्छी मिसाल पेश की है.
कोविड-19 के दौरान इस चर्चा की शुरुआत हुई कि किस तरह दुनिया भर के नेता संकट से लड़ने का काम कर रहे हैं. इस चर्चा में जर्मनी, नॉर्वे और न्यूजीलैंड की महिला नेता छाई रहीं. यह कहा गया कि उनके नेतृत्व में विभिन्न देश इस कष्ट भरे दौर का मजबूती से मुकाबला कर रहे हैं.
बेशक, संकट से जूझने में इन महिलाओं की कामयाबी की तारीफ की जानी चाहिए, इस बीच हमने दक्षिण एशियाई देशों की महिला नेताओं पर अध्ययन किया. हमारे अध्ययन में भारत की कुछ महिला सरपंच और विधायक, नेपाल की मेयर, श्रीलंका और भूटान की स्वास्थ्य मंत्री, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान की सांसद शामिल थीं. चूंकि हम दक्षिण एशियाई देशों की महिला नेताओं के कामकाज को समझना चाहते थे.
इन महिलाओं ने जिस पॉलिटिकल लीडरशिप की मिसाल पेश की है, वह लीडरशिप के तयशुदा रूप से बहुत अलग है. एक अलग किस्म का लीडरशिप, जोकि सहयोग करने, सहानुभूति रखने वाला, पारदर्शी तरीके से संवाद करने वाला है. इन महिला नेताओं ने फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स के सहयोग से आगे बढ़कर काम किया, जिसमें अपने निर्वाचन क्षेत्रों में साफ-सफाई का काम भी शामिल है. उनकी ओनरशिप की भावना की वजह से ही लोग एकजुट हुए और कोविड-19 के संकट से जूझने को तैयार हुए.
विमेन फॉर पॉलिटिक्स की सीरिज बियॉन्ड विक्टिम्स में दक्षिण एशिया की महिला नेताओं की पहल को प्रदर्शित किया गया है. इसमें यह दिखाया गया है कि सीमित संसाधन, कठिन भौगोलिक स्थितियों और पितृसत्तात्मक सोच के बावजूद महिला नेताओं ने किस तरह काम किया.
इस पूरे क्षेत्र में महिला राजनीतिज्ञों के कामकाज का विश्लेषण करने पर एक बात और पता चलती है. वह यह है कि विकासशील देशों में मौजूद चुनौतियों का सामना करने में महिला नेताओं की लीडरशिप में बहुत सी बातें एक सरीखी हैं.
जनता को अपडेट करना
भारत के केरल राज्य की के के शैलजा ने संसाधनों को इस तरह रीडायरेक्ट किया और एक ऐसी रणनीति बनाई. इसमें जनता को लगातार अपडेट करना और महामारी से जुड़ी फेक न्यूज और मिथ का मुकाबला
करना शामिल था. पंजाब, बिहार और दूसरे राज्यों की महिला सरपंचों ने व्हॉट्सएप ग्रुप बनाए और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए लोगों तक जरूरी सामान की उपलब्धता की जानकारी पहुंचाती रहीं, कोविड-19 से जुड़ी सूचनाएं और अपडेट्स भी देती रहीं.
चूंकि इन महिला नेताओं ने अपने क्षेत्रों में महामारी के प्रकोप और कंटेनमेंट के उपायों को सीधे तौर पर और ईमानदारी से साझा किया तो इसका यह फायदा हुआ कि उनके प्रति लोगों में भरोसा कायम हुआ.
जागरूकता फैलाना और जरूरी सामान पहुंचाना
सामुदायिक सुरक्षा का बीड़ा उठाया तो महिला नेताओं ने समुदायों को लामबंद भी किया ताकि सब मिलकर संकट का मुकाबला कर सकें.
नेपाल की मेयर कांतिका सेजुवाल आर्मी, पुलिस, जिला प्रशासन और टीचर्स की मदद से काम कर रही हैं और महामारी के जोखिम को कम करने के लिए अच्छे से अच्छा तरीका अपना रही हैं.
भारत में कई राज्यों में सरपंच और विधायक महिलाओं और युवा वॉलियंटर्स के साथ मिलकर काम कर रही हैं. ये लोग मास्क बना रहे हैं, महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन्स बांट रहे हैं और वायरस के बारे में जागरूकता फैला रहे हैं. बिहार में जिला परिषद चेयरपर्सन पिंकी भारती ने सामुदायिक किचन चलाने, जरूरी सामान पहुंचाने और क्वारंटाइन केंद्रों के प्रबंधन के लिए सामुदायिक संसाधन जुटाए हैं. इससे लोगों को यह महसूस हुआ है कि यह हम सबकी साझा जिम्मेदारी है और इसमें सक्रिय सामुदायिक भागीदारी बहुत जरूरी है.
आगे की सोच- तकनीक का इस्तेमाल, तैयारी और समय के हिसाब से व्यवस्था करना
भूटान की स्वास्थ्य मंत्री देचेन वांगमो ने महामारी के लिए एक प्रिपेयर्डनेस प्लान बनाया और शुरुआती स्क्रीनिंग करनी शुरू की. साथ ही टेस्टिंग बढ़ाई और क्वारंटाइन को जरूरी बनाया. यही वजह है कि वहां अब तक कोविड-19 के कारण किसी की मौत नहीं हुई. गुजरात की सरपंच विजानंद बाई ने डिजी पे की मदद से सरकारी नकद हस्तांतरण को सुनिश्चित किया.
ये सभी महिला नेता बीमारी और सरकारी दिशानिर्देशों के बारे में अपडेटेड रहीं, और उन्होंने बदलती स्थितियों को देखते हुए कार्यशैली अपनाई, साथ ही समुदाय की जरूरतों का पूरा ख्याल रखा.
उन्होंने बदलती तकनीक को अपनाते हुए सारी तैयारियां कीं, सूचनाओं से लैस रहीं- इसी के चलते महामारी के घूमते पहिया को थामने में कामयाब भी रहीं.
सबका साथ, हमदर्दी और स्पष्टता
तेलंगाना की विधायक धनश्री अनुसूया ने दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों को चिन्हित किया और उन तक जरूरी सामान समय पर पहुंचाने का काम किया. अफगानिस्तान की सांसद फौजिया कूफी गरीब और तालिबान से पीड़ित लोगों के लिए एक फंडरेजिंग कैंपेन चला रही हैं, साथ ही तालिबान के साथ शांति वार्ता में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं.
कोलकाता की वॉर्ड काउंसिलर सना अहमद ने रमजान के दौरान रोजा रखने वाले लोगों के लिए खास प्रबंध किए थे और अम्पन चक्रवात के बाद मलबा हटाने का काम भी करवाया था. बांग्लादेश की सांसद सुलताना नादिरा ने कोविड-19 के दौरान दूसरे कामों के साथ अपने पैसे से दो अस्पतालों का किराया चुकाया. प्रोविंशियल एसेंबली की सदस्य शाहीन रजा ने डोर टू डोर राशन वितरण अभियान चलाने के साथ-साथ क्वारंटाइन केंद्रों का निरीक्षण किया. यह काफी दुखद है कि इस दौरान वायरस के संक्रमण से उनकी मौत हो गई.
कोई कह सकता है कि इस इलाके में राजनीति के क्षेत्र में औरतों को मर्दों के बराबर आने में बहुत समय लगेगा, लेकिन इन उदाहरणों से यह तो पता चलता ही है कि महिला नेताओं ने संकट से जूझने में कितनी हिम्मत दिखाई है.
यह बात और है कि विश्व स्तर पर होने वाली चर्चाओं में दक्षिण एशिया की महिला नेता नदारद रहती हैं. आज जब हम इस महामारी की प्रकृति और प्रभावों को समझने की कोशिश कर रहे हैं तो हमें अपनी चर्चाओं में दक्षिण एशिया की महिला नेताओं की उपलब्धियों को मान्यता देनी चाहिए.
(सुगंधा परमार विमेन इन पॉलिटिक्स में एक एडवोकेट हैं. वह टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से महिला अध्ययन में एमए और यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के एसओएएस से ह्यूमन राइट्स लॉ में एमए हैं. वह भारत के एक फिलेंथ्रोपिक संगठन के लिए काम करती हैं. वह @sugandha_sp पर ट्विट करती हैं)
(अखिल नीलम विमेन इन पॉलिटिक्स में एक एडवोकेट हैं. वह अशोका यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हैं जहां वह यंग इंडिया फेलो थे. वह पॉलिसी और गवर्नेंस पर देश के कई सरकारी विभागों के साथ काम कर चुके हैं. वह पब्लिक पॉलिसी कंसल्टेंट के तौर पर काम करते हैं. वह @akhilneelam पर ट्विट करते हैं)
(ये लेखकों के निजी विचार हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)
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