(ब्राजील के लिए तीन विश्व कप जीतने वाले फुटबॉल आइकन पेले का 29 दिसंबर, 2022 को देहांत हो गया. क्विंट उस महान खिलाड़ी को श्रद्धांजलि दे रहा है जिसे इस खूबसूरत खेल ने जन्म दिया था.)
1970 में मैक्सिको सिटी की सड़कों पर स्थानीय भाषा में एक पोस्टर पर लिखा था-“Hoje não trabalhamos porque vamos ver o Pelé,” इस मतलब है, “आज हम काम पर नहीं जाएंगे, क्योंकि हम पेले को देखने जाएंगे.”
दसियों साल बाद प्रशंसकों के लिए मैदान में ऐसे पोस्टर लेकर जाना ट्रेंडी बन गया- इस उम्मीद के साथ कि कैमरा कभी न कभी उन पर नजर-ए-इनायत करेगा. लेकिन इससे पहले मैक्सिको में फुटबॉल फैन्स ने अपने इरादों को पुरजोर आवाज में, और साफ-साफ जताना सीख लिया था.
मजदूरों की सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि, उनका काम और काम का समय, कुछ भी इतना मायने नहीं रखता था, मायने कुछ और ही रखता था. पेले- फुटबॉल का खुदा- जो एक मिथक बन चुका था, वह खेलने जा रहा था.
1970 का फीफा वर्ल्ड कप कई अर्थों में खास था. फुटबॉल की सबसे बड़ी स्पर्धा के इतिहास में यह पहली बार था कि मैच का रंगीन प्रसारण होना वाला था.
हां, तब यह स्वप्न सरीखा था कि कभी हथेलियों में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को थामकर, दुनिया कुछ ऐसे भी एकजुट हो सकती है. उस समय बड़े चौड़े डिब्बे सरीखे टेलीविजन और बुरे से दिखने वाले एंटीना होते थे लेकिन उसी के जरिए सार्वभौमिक एकता का एहसास होता था. जैसे धरा ने अपनी धुरी पर घूमना बंद कर दिया है, और वह खुद ही फुटबॉल में तब्दील हो गई है. बस, वह एक ब्राजीलियन के कदमों तले धरी हुई है.
वह था, एडसन अरांतेस डो नैसिमेंटो- हाड़ मांस का बना, ब्राजील की पीली शर्ट में सजा. दुनिया उसे टकटकी लगाए देख रही थी- मैक्सिको के एज़टेका स्टेडियम में एक लाख से ज्यादा खुशकिस्मत दर्शक ठसाठस भरे हुए थे. मानो सांस लेने की भी जगह न थी.
आखिरी मैच में इटली के खिलाफ पेले ने कई इतिहास रचे. एक गोल दागा, दो गोल असिस्ट किए. न सिर्फ उसने इस मैच में सेलेकाओ (यानी ब्राजील की राष्ट्रीय फुटबॉल टीम) को 4-1 से जीत दिलाई, बल्कि फुटबॉल के इतिहास में तीन बार विश्व कप जीतने वाला पहला खिलाड़ी भी बना.
ऐसी थी पेले की महानता, और पांच दशकों में इस रिकॉर्ड की बराबरी कोई नहीं कर सका, और आज वह चमकता सूरज अस्त हो गया.
तीन दिल वाला लड़का
पेले का जन्मस्थान ट्रेस कोराकाइस है. 1760 में पुर्तगाली यात्री टोम मार्टिन्स द कोस्टा वहां सोने की खोज के लिए पहुंचा और फिर वहीं बस गया. वहां उसने एक चैपल बनाया और उसे नाम दिया, 'थ्री हार्ट्स'. बाद में शहर का भी यही नाम पड़ गया.
इस प्राकृतिक खूबसूरती के साथ, इस स्थान को करीब 180 साल बाद यह कुंदन मिला. इस शहर के बाशिंदे मंत्रमुग्ध से उस नन्हे बच्चे को याद करते थे कि जैसे ही गेंद उसके करीब पहुंचती थी, उसके कदम कमाल कर देते थे. अब शहर का नाम, उसकी शख्सीयत में घुल-मिल गया था. लोग उसे ब्वॉय विद थ्री हार्ट्स कहा करते थे. यानी तीन दिल वाला लड़का.
आसान सी बात है, वे इससे बेहतर इंद्रजाल नहीं रच सकते- न ही इससे अच्छी व्याख्या कर सकते हैं.
आप किसी भी ब्राजीलियन बच्चे का जिक्र करें, और जहां तक संभव है, आपको एक सरीखी कहानियां सुनने को मिले- फुटबॉल और गरीबी. बेशक, वह असाधारण प्रतिभा का धनी जरूर था, लेकिन पेले के हालात बहुत साधारण-सामान्य थे.
वह फुटबॉल से प्यार करते हुए, बड़ा हुआ लेकिन बड़ा होने के लिए, अपना गुजार चलाने के लिए उसे चाय की दुकानों पर काम करना पड़ा.
जिस दिन किस्मत उन पर मेहरबान होती, उनके पैरों में गेंद होती. लेकिन दिन ऐसे भी बीतता कि वह पुराने अखबारों को फटे मोजों में लपेटकर बांधता और उससे काम चलाता. जिन लोगों ने नौजवानी में अभाव देखे हों, वे समझ सकते हैं कि कुछ लोगों के लिए पसंद-नापसंद भी विलासिता ही होती है.
खुद से वादा किया
10 साल की उम्र में पेले को पहली बार फुटबॉल के लिए अपने देश की दीवानगी समझ आई. पहली बार वर्ल्ड कप ब्राजील में हो रहा था, और उसका देश फाइनल में पहुंचा था. उस समय कोई एक नहीं, देश की पूरी टीम फेवरेट थी, लेकिन माराकाना स्टेडियम में उरुग्वे ने मैच 2-1 से जीतकर ब्राजील को हरा दिया.
तब पेले ने पहली बार अपने पिता, पूर्व फुटबॉलर, डॉनडिनोह को रोते हुए देखा था, और वह स्तब्ध रह गया था. उस दौर के सामाजिक मानदंडों ने इस सदमे को और बड़ा बना दिया था. वह सामाजिक सोच के साथ बड़ा हुआ था कि पुरुषों को, किसी भी हालात में, कभी भी रोना नहीं चाहिए. पेले को अच्छी तरह पता था कि हार ने उसके पिता को इतना दुखी किया है कि सारे सामाजिक पैमाने टूटकर बिखर गए और वह बच्चों सरीखे रो पड़े.
बस, पेले ने खुद से वादा किया- इस हार का बदला लेगा और विश्व विजेता बनेगा. यह वादा पूरा हुआ, सिर्फ आठ साल बाद.
उस समय ब्राजील के मैनेजर विसेंट फियोला विशेष रूप से किसी नौजवान खिलाड़ी को मैच खिलाने के लिए तैयार नहीं थे, और उनके पास अपनी राय को पुख्ता करने के लिए ढेरों कारण थे. पेले की उम्र अभी सिर्फ 17 वर्ष थी. और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल का तर्जुबा भी बहुत कम था. इसके अलावा वह अभी-अभी घुटने की चोट से उबरा था.
लेकिन स्क्वॉड के सीनियर मेंबर्स देख चुके थे कि इस लड़के ने ट्रेनिंग सत्रों में कमाल किया था, इसलिए उन्हें कोच से गुहार लगाई कि उसे खेलने दिया जाए. फिओला राजी हो गए और शायद अनजाने में, उन्होंने न सिर्फ अपनी टीम पर एहसान किया, बल्कि दुनिया को एक ऐसा रत्न तोहफे में दिया जिसे वह हमेशा के लिए संजोकर रखना चाहती.
विश्व कप में भाग लेने वाला सबसे कम उम्र का खिलाड़ी, विश्व कप में असिस्ट लेने वाला सबसे कम उम्र का खिलाड़ी, विश्व कप में स्कोर करने वाला सबसे कम उम्र का खिलाड़ी, और सबसे महत्वपूर्ण, विश्व कप जीतने वाला सबसे कम उम्र का खिलाड़ी - आप गिनते जाएं... पेले ने स्वीडन यात्रा में वह सब कुछ हासिल किया.
देश का खजाना, पर निजी नुकसान भी
गरीबी से त्रस्त देश ब्राजील एक प्रचंड राजनीतिक घमासान में फंसा था, उसे उम्मीद की एक खिड़की नजर आई. वह पहली बार विश्व विजेता बने थे, और यह केवल शुरुआत थी.
दूसरी तरफ यूरोपीय दैत्य गरीब मुल्कों के स्वाभिमान के नशे को सिक्कों की खनखनाहट से तोड़ने की फिराक में रहते थे. झोलियां भरकर, देश-देश घूमा करते थे कि किसी तरह वहां के खिलाड़ियों को ललचा-फुसलाकर अपने साथ खींच ले जाएं.
लेकिन ब्राजील के पास और कोई सपना न था, उसके लिए पेले सिर्फ फुटबॉलर नहीं, और बहुत कुछ था.
उसका हुनर, ट्रैंक्विलाइजर के तरह काम करता था, और उसका गोल एनालेप्टिक जैसा था. यूरोप की उम्मीदों को पूरी तरह तोड़ने के लिए ब्राजील के राष्ट्रपति जेनियो क्वाड्रोस ने पेले को 'आधिकारिक राष्ट्रीय खजाना' घोषित किया. यानी पेले को ब्राजील से बाहर ले जाना, सचमुच अपराध हो गया.
लेकिन यह सब बहुत मुश्किल था- पेले लगभग सीमाओं में कैद कर लिए गए. फिर एक रणनीति अपनाई गई. उनकी टीम सैंटोस दुनिया भर का दौरा करेगी, ताकि दुनिया को उस जादूगर की एक झलक मिल सके.
तब पेले ने शायद ही ऐसा सोचा हो, लेकिन उससे उन लोगों का मुंह बंद हो गया, जो पेले की जादूगरी को देखे बिना, उनकी लीगेसी पर सवाल खड़े करते थे. यह बात और है कि पेले के 1,279 गोलों में से 504 अनऑफिशियल फ्रेंडली मैच में किए गए थे और इसलिए आरएसएसएसएफ ने उसे कभी आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी. आरएसएसएसए फुटबॉल से जुड़े आंकड़े जमा करने वाला अंतरराष्ट्रीय संगठन है.
मैनचेस्टर यूनाइटेड की एक पेशकश को ठुकराने के बाद पेले अंततः 1966 के विश्व कप के लिए इंग्लैंड पहुंचे, लेकिन यहां उन्हें अपनी जिंदगी का एक जोरदार झटका लगा. ब्राजील, जिसका लगातार तीसरा खिताब जीतना लगभग निश्चित लग रहा था, पहले दौर से ही बाहर हो गया.
1950 के टूर्नामेंट के बाद पेले ने अपने पिता को टूटते हुए देखा था. इस बार पेले का खुद का दिल टूटा और उन्होंने दुख से भरकर एक फैसला किया- फिर कभी विश्व कप में नहीं खेलेंगे.
बादशाह की वापसी
वह 1970 का समय था, पेले करियर की सांझ में कदम रख चुके थे. उन्हें ब्राजील की जरूरत थी या नहीं, इसका तो पता नहीं, लेकिन ब्राजील को सचमुच उनकी जरूरत थी. गरिंचा, गिलमार और निल्टन, सभी खिलाड़ी रिटायर हो गए थे, और राष्ट्र एक मुक्तिदाता, एक मसीहा की दरकार थी.
क्षितिज पर फिलहाल कोई सूरज उगता नहीं दिख रहा था. पेले के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था कि फिर से अपनी कारीगरी दिखाएं. अपने दुख को किनारे रखकर, दिल से खेलें.
स्टेडियम में मैच देखते प्रशंसक, रेडियो पर मैच की कमेंटरी सुनते श्रोता, और टेलीविजन सेट्स पर मैच को निहारने वाले दर्शक, सब दंग थे.
कमेंटेटर्स भी हैरान थे. आईटीवी के लिए काम करने वाले फुटबॉल पंडित मैलकम एलिसन ने अपने सहयोगी से पूछा "आप पेले को कैसे स्पेल करते हैं?" पैट क्रेरैंड ने जवाब दिया "बहुत आसान है. G-O-D."
अगर फुटबॉल धर्म है, तो यहां नास्तिकों के लिए कोई जगह नहीं. क्योंकि फुटबॉल के भक्त पेले के भक्त हैं- उनकी परंपरा के अनुयायी हैं.
जैसा कि माइकल प्लातिनी ने कभी कहा था, “पेले की तरह खेलने का मतलब है, भगवान की तरह खेलना. ब्राजीलियन्स अब भी गर्व से भरकर कहते हैं- ‘आपके पसंदीदा खिलाड़ी आज जो भी करते हैं, वह पेले पहले कर चुके हैं.’
29 दिसंबर, 2022 को हमने तीन दिलों वाले लड़के को अलविदा कहा, जिसने हमारा दिल कितनी ही बार चुराया है.
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