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इस बेतुके कानून पर ध्यान देने में सबने देर कर दी

ये इतना अजीबो-गरीब कानून है कि इस पर हमारी संसद और सुप्रीम कोर्ट को काफी पहले विचार कर लेना चाहिए था.

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हम अभी भी समाज की पुरुषवादी मानसिकता की जकड़न से निकल नहीं पाए हैं. लेकिन ये सोच हमारी कानून-व्यवस्था में दिखे, ये आश्चर्य के साथ-साथ शर्म की भी बात है. हालांकि महिलाओं के खिलाफ अपराध रोकने के लिए देश में कई कानून बनाए गए हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एडल्टरी (शादीशुदा लोगों का व्यभिचार) कानून एक ऐसा नारी विरोधी कानून है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान अब गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया, जो व्यभिचार के अपराध से संबंधित है.

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ये इतना अजीबो-गरीब कानून है कि इस पर हमारी संसद ओर सुप्रीम कोर्ट को काफी पहले विचार कर लेना चाहिए था. इस कानूनी धारा के तहत कहा गया है कि अगर किसी शादीशुदा महिला के साथ कोई गैर पुरुष संबंध बनाता है, तो उसके खिलाफ केस किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए ये जरूरी है कि शिकायत शादीशुदा महिला के पति की तरफ से की जाए.

बेंच ने इस कानून की जांच करने के लिए 2 पहलुओं पर गौर करने को कहा है. क्या भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का व्यभिचार वाला प्रावधान सिर्फ मर्द को एक अपराधी मानता है और विवाहित महिला को 'पीड़ित'? दूसरा ये कि इस अपराध में महिलाओं को संरक्षण मिल रहा है, दूसरी तरफ उन्हें एक उपभोग की चीज समझे जाने की सोच को बढ़ावा मिल रहा है.

खामियों को सुधारने, दूर करने के लिए कानून का सहारा लिया जाता है, लेकिन जब किसी कानून में ही खामियों की भरमार हो, तो ऐसे कानून का समाज फायदा नहीं उठाता, बल्कि दुरुपयोग ही करता है. ये बात एडल्टरी (व्यभिचार) कानून के साथ भी कुछ इसी तरह से लागू होती है. कैसे? आइए इसे समझते हैं.

1. अपराध पत्नी के खिलाफ, शिकायत का हक पति को

ये कानून कहता है कि अगर महिला के पति को ऐसे संबंध से कोई आपत्ति नहीं है, तो महिला से संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकती. महिला की शिकायत के ऐसे में कोई मायने नहीं हैं. मतलब कानून ये मानता है कि महिलाओं की भावनाओं पर 'मालिकाना' हक उसके पति के पास होता है!

2. समानता का सवाल

ये कानून एक मानसिकता को मजबूत करती है, जो ये कहती है कि 'अपराधी सिर्फ पुरुष' हो सकते हैं और 'महिला सिर्फ शिकार'. क्योंकि इस कानून के तहत सिर्फ उस शख्स के खिलाफ केस दर्ज हो सकता है, जिसने शादीशुदा महिला के साथ संबंध बनाए. उस महिला के खिलाफ केस दर्ज नहीं होता, जिसने ऐसे संबंध बनाने के लिए सहमति दी.

अनुच्छेद-14 के खिलाफ
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुछ साल पहले एक अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि ये संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता की भावना के खिलाफ है. अगर किसी अपराध के लिए मर्द के खिलाफ केस दर्ज हो सकता है, तो फिर महिला के खिलाफ क्यों नहीं? इस अर्जी को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. कोर्ट ने महिला को कमजोर पक्ष माना और कहा कि ऐसे में उनके खिलाफ केस नहीं चलाया जा सकता.

3. शिकायत का अधिकार सिर्फ मर्द के पास

कानून साफ तौर पर ये कहता है कि एडल्टरी मामले के तहत सिर्फ पुरुष को शिकायत करने का अधिकार है, जिसकी पत्नी किसी और से संबंध बनाती है. लेकिन उस महिला को शिकायत का कोई अधिकार नहीं है, जिसके पति ने किसी और से संबंध बनाए.

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4. महिला की सहमति-असहमति मायने नहीं रखती?

पत्नी को दूसरे पुरुष से संबंध बनाने के लिए पति की सहमति चाहिए, लेकिन जब पति किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाता है, तो उसे अपनी पत्नी की सहमति की कोई जरूरत नहीं है. इस कानून से कुछ ऐसे ही मायने सामने आते हैं. पति का बनाया गया नाजायज संबंध (जैसा कि ये समाज कहता है) कोई अपराध नहीं है, लेकिन पत्नी का बनाया गया नाजायज संबंध अपराध है. ऐसा क्यों है?

वीडियो देखें-

5. पर्सनल चाॅइस जैसी कोई चीज नहीं?

एक औरत या मर्द किसके साथ सेक्स करे, किसके साथ नहीं, ये उनका पर्सनल चाॅइस है. दो वयस्‍क लोगों के बीच सहमति से बनाए गए संबंध में किसी और की दखलंदाजी क्या जायज है? किसी की आपसी सहमति, पर्सनल चाॅइस का सम्मान क्‍या नहीं किया जाना चाहिए?

क्या आपको लगता है कि इस विक्टोरियन कानून की जरूरत हमें 21वीं सदी में है?

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