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सोशल ‘बाजार’ में गूगल, फेसबुक, ट्विटर के ये ऑप्शन हैं चीन के पास

दुनिया के बाकी देशों की तरह चीन के लोग अमेरिकी सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक या गूगल पर निर्भर नहीं हैं

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भारत में फेसबुक यूजर्स की संख्या 24 करोड़ से ज्यादा है, वहीं देशभर की करीब 43 करोड़ यानी 31 फीसदी आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. इतना बड़ा सोशल मीडिया और इंटरनेट 'बाजार' होने के बावजूद भी भारत के पास अपनी कोई पॉपुलर सोशल नेटवर्किंग साइट या सर्च इंजन नहीं है. देश में फेसबुक, ट्विटर और इंस्टेंट मैसेजिंग सर्विस व्हाट्सअप छाए हुए हैं.

वहीं अगर चीन की बात करें तो वहां करीब 75 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, और उनके पास फेसबुक, ट्विटर और गूगल का तोड़ भी मौजूद है. ऐसे में भारत समेत दुनिया के दूसरे देशों की तरह चीन के लोग अमेरिकी सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक या हर मर्ज की दवा ढूंढने वाले गूगल पर निर्भर नहीं हैं.

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अब सवाल ये है कि जिस तरह हम लोग अपनी बात फेसबुक और ट्विटर पर शेयर करते हैं तो चीन के लोग अपने दिल की बात कहां शेयर करते होंगे?

आइए बताते हैं चीन के अपने 'गूगल' और 'फेसबुक' के बारे में:

बाइडू: चीन का गूगल

चीन में साल 2005 में गूगल की एंट्री हुई. महज 4 साल के अंदर यानी 2009 में चीन के करीब 36% लोग इस सर्च इंजन का इस्तेमाल करने लगे. फिर चला चीन का 'सेंसरशिप' वाला डंडा, और ठीक 4 साल बाद यानी 2013 में ही ये शेयर घटकर करीब 2% पर पहुंच गया. वहीं साल 2000 में चीनी सर्च इंजन बाइडू की शुरुआत हुई.

फिलहाल चीन में सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर्स इसी सर्च इंजन का इस्तेमाल करते हैं.

वॉट्सऐप नहीं वीचैट

चीन में वॉट्सअप भी लोग इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम के बाद इंस्टेंट मेसेजिंग एप्लीकेशन वॉट्सअप को भी चीन की सरकार ने आंशिक रूप से बंद कर दिया. अब वहां 'वीचैट' का इस्तेमाल इंस्टेंट मैसेजिंग सर्विस के तौर पर होता है.

फिलहाल चीन में ‘वीचैट’ के 49 करोड़ यूजर्स हैं.

फेसबुक नहीं रेन-रेन

चीन में साल 2009 से ही फेसबुक ब्लॉक. किसी भी इंटरनेट या मोबाइल नेटवर्क के जरिए फेसबुक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. ऐसे में साल 2005 में चीनी कंपनी Xiaonei Network ने रेन-रेन नाम से सोशल नेटवर्किंग साइट बनाया था.

फेसबुक की तरह ही फोटो, टेक्स्ट स्टेटस, लाइव स्ट्रीमिंग की सुविधा के लिए ये चीन के कॉलेज स्टूडेंट्स के बीच काफी मशहूर है.

ट्विटर नहीं वीबो

साल 2009 में चीन के उरुमकी में दंगा हुआ था, चीन की सरकार का मानना था कि ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया साइट्स के जरिए ही फैल अफवाह के कारण ये दंगा हुआ. इसके बाद सरकार ने सेंसरशिप को लेकर लगाम कसना शुरू किया. ऐसे में वीबो को एक नए सोशल मीडिया प्लेटफार्म के रूप में पेश किया गया, जो सेंसिटिव कंटेंट पर नजर बनाने के साथ-साथ उसे अपने लेवल पर ही ब्लॉक कर देता था.

ट्विटर की तरह इस पर भी 140 कैरेक्टर में ही अपनी बात कहनी होती है.

यूट्यूब नहीं यूको टुडू

चीन के लोग यूट्यूब की जगह 'यूको टुडू' का इस्तेमाल करते हैं. इस वीडियो प्लेटफॉर्म की खास बात ये है कि इस पर लोग छोटे-छोटे वीडियो की जगह लॉन्ग फॉर्मेट वीडियो देखना पसंद करते हैं. साथ ही इस पर 70% कंटेंट प्रोफेशनल या फिर यूको टुडू के बैनर तले बना होता है.

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