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उत्तर प्रदेश की पॉलिटिक्स में रंग हैं और रंगों में पॉलिटिक्स

यूपी में रंगों पर सियासत और सियासत में रंगों की बाजीगरी देखते ही बनती है

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अंग्रेजी के महान उपन्यासकार शेक्सपीयर कभी लिख के चले गए- नाम में क्या रखा है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कुछ ‘भगवा’ रंग की बसों को ‘हरे’ रंग की झंडी दिखा कर रवाना क्या किया...लोग रंग-बिरंगी बातें करने लगे. अब जितने रंग.., माफ कीजिएगा..जितने मुंह, उतनी बातें! लेकिन बचाव में उतरे लोग शेक्सपीयर की दिखाई राह पर चलना चाहते हैं. वो कह रहे हैं कि रंग में क्या रखा है? सोचकर देखें तो लगता है बात तो सही है. रंग में वाकई क्या रखा है. बस भगवा न होकर नीली, पीली, गुलाबी होगी तो क्या मंजिल पर पहुंचने से इनकार कर देगी?
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रंगों की ‘घुल्लमघुल्ला’ सियासत

वैसे आप भी अगर यही सोच रहे हैं तो बड़े भोले हैं आप! सियासत में रंग और रंगों में सियासत 'घुल्लमघुल्ला' चलते हैं. और खुल्लमखुल्ला भी. योगी, भगवा पोशाक पहनते हैं. सॉरी, भगवा वस्त्र! भगवा, देश के सबसे बड़े सूबे में सत्ताधारी दल से जोड़कर देखा जाता है. ताज्जुब है कि 5, कालिदास मार्ग से जब बसों को रवाना किया गया तो 'हरी' झंडी दिखाकर किया गया. सियासत को परंपराओं और नियमों में क्या बांधना. हरी की जगह 'भगवा' झंडी दिखा दी जाती तो भी 'भगवा' बस के भीतर बैठे ड्राइवर को तो एक्सीलरेटर दबाना ही था. वैसे कहीं अनजाने में मैंने पार्टी को कोई आइडिया तो नहीं दे दिया! भाई लोगों, इस आइडिया को कभी आजमाओ तो रॉयल्टी भिजवा देना.

उत्तर प्रदेश उन सूबों में शुमार है जो एक ‘चित्रशाला’ की तरह बन कर रह गए हैं. सरकारें जब सत्ता में आती हैं तो अपनी एक कूची साथ लेकर आती हैं. यही कूची दफ्तरों से लेकर वाहनों तक, होर्डिंग से लेकर दीवारों तक घुमा दी जाती है.

मायावती की सरकार में उत्तर प्रदेश के आसमान का 'नीला' रंग जमीन पर उतर आया था. जहां देखो, वहां नीला. समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो विरोधी दलों के नेताओं के चेहरे का रंग उतर गया. कोई गुस्से में लाल हुआ कोई चिढ़ कर हरा. बाद में यही लाल और हरा पूरे प्रदेश पर चढ़ गया. स्कूली बच्चों के बस्ते पर, लैपटॉप पर, गली-मोहल्लों की दीवारों पर, सड़कों के होर्डिंग पर, बसों पर..और भी न जाने कहां-कहां. जैसे कभी नीला और लाल-हरा चढ़ा, अब भगवा चढ़ता नजर आ रहा है.

अगले चुनाव गठबंधन न कीजो...

उत्तर प्रदेश में रहने वालों की बस अब एक ही पुकार है. जब आए एक सरकार आए. रंगों की गुत्थमगुत्थी में कहीं रंग पहचानना ही न भूल जाएं लोग. फर्ज कीजिए, सरकार गठबंधन की है. बीएसपी के साथ एसपी खड़ी है तो बस पर क्या पुतेगा. नीला, लाल, हरा. उस पर पान और गुटखे की पीक की परत चढ़ेगी तो मौसम एकदम चितकबरा टाइप हो लेगा. वैसे मजेदार रहेगा ये भी. और जो कभी राष्ट्रीय लोक दल, सफेदी की चमकार में थोड़ा हरा मिलाकर भगवा के साथ घुल जाए तो क्या रंग-रंगीली तस्वीर उभरेगी.

राजस्थान तो खामख्वाह इतराता है--रंग-रंगीलो राजस्थान. अब तो उत्तर प्रदेश भी खूब रंग-रंगीलो हो रहा है.

पेंट कंपनियों के लिए सुनहरा मौका!

सुनहरा मने गोल्डन कलर का मौका मिल गया है पेंट कंपनियों को. वैसे आज से पहले कभी ध्यान नहीं गया कि मौके का भी रंग होता है. जब हर चीज का रंग होता है तो मौके का हो लिया तो कौन बड़ी बात हो गई. बड़ी बात तो ये है कि पेंट कंपनियों के पास स्पॉन्सरशिप से ब्रांड मजबूत करने का सुनहरा मौका है और सरकार के पास रंगीन होकर पहले से रंग-बिरंगे हो चुके करंसी नोट बचाने का. पेंट कंपनियां दीवारों से लेकर बसों का पेंट और होर्डिंग तक स्पॉन्सर कर दें तो सरकारी खजाने से खर्च होने वाला पैसा बच जाए. ये तो वही बात हो गई...हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा ही चोखा..लो कर लो बात, यहां भी रंग घुस गया.

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वैसे यूपी में कई जगह कूड़ा उठाने वाली गाड़ियों से लेकर ई-रिक्शा और सब्जी के ठेले तक भगवा रंग में रंग चुके हैं. मुख्यमंत्री योगी जिन मंचों पर खड़े होते हैं वो भगवा, पंडाल भगवा, सरकारी कार्यक्रमों में फूलों की सजावट भगवा... बड़ी जोर से गाना आ रहा है....ओ..ओ..ओ रंग दे मोहे भगवा...सॉरी गेरुआ..मल्लब भगवा..मल्लब बात तो एक ही है!

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