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क्‍या महिलाओं के प्रति जान-बूझकर ये भेदभाव कर रहा है फेसबुक?

फेसबुक के ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ को बदलने की जरूरत है, जिसमें सिर्फ महिलाओं की आवाज को ही दबाया जा रहा है.

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भारत
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फेसबुक ने जहां एक ओर लोगों को अपनी बातें रखने के लिए खुला मंच दिया है, वहीं दूसरी ओर कइयों को इसके दोहरे रवैये से भी दो-चार होना पड़ रहा है.

ऐसा लग रहा है, जैसे यह सेक्सुअल हैरेसमेंट के शिकार हो रहे लोगों की आवाज को दबा रहा है. अभी हाल की दो घटनाओं से तो इस तरह के विचार ही सामने निकलकर आते दिख रहे हैं.

केस-1

25 जुलाई 2016. संत जेवियर्स काॅलेज, मुंबई की एक पूर्व छात्रा ने मुंबई के ही एक म्यूजिशियन रेक्स फर्नांडिज के बारे में एक फेसबुक पोस्ट डाला. उस पोस्ट में लड़की ने इस बात का जिक्र किया था कि कैसे रेक्स उसे भद्दे मैसेज भेज कर परेशान किया करता था. उसने यह भी बताया कि रेक्स काॅलेज कैंपस के अंदर उसे परेशान किया करता था. इस पोस्ट के साथ उसने रेक्स के मैसेज के स्क्रीनशाॅट्स डाले थे.

इसके बाद कमेंट बाॅक्स में कई लड़कियों ने दोषी के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार करते हुए अपने अनुभव को साझा किया कि रेक्स उनके साथ भी ऐसा कर चुका है. उन लड़कियों ने प्रूफ के तौर पर मैसेज के स्क्रीनशाॅट्स कमेंट बाॅक्स में डाले.

इस पूरे मामले के सामने आते ही दोषी लड़के के भाई ने उस पोस्ट को रिपोर्ट किया और वह पोस्ट फेसबुक से हट गया. लड़की ने दोबारा वह पोस्ट डाला, पर दोबारा पोस्ट करने की वजह से कमेंट बाॅक्स के स्क्रीनशाॅट्स और सारे कमेंट्स हट चुके थे.



 फेसबुक के ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ को बदलने की जरूरत है, जिसमें सिर्फ महिलाओं की आवाज को ही दबाया जा रहा है.




 फेसबुक के ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ को बदलने की जरूरत है, जिसमें सिर्फ महिलाओं की आवाज को ही दबाया जा रहा है.


 फेसबुक के ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ को बदलने की जरूरत है, जिसमें सिर्फ महिलाओं की आवाज को ही दबाया जा रहा है.
(फोटो: Facebook/Feminisminindia)

27 जुलाई को फेसबुक ने फिर से वह पोस्ट हटा दिया और इस बार फेसबुक ने उस छात्रा को अगला पोस्ट करने और 24 घंटे तक किसी को टेक्स्ट मैसेज करने पर रोक लगा दी. छात्रा के मूल पोस्ट के बाद 3 और लड़कियों ने रेक्स पर आरोप लगाया था कि वह भी काफी लंबे समय से ऑनलाइन उत्पीड़न से परेशान थी, पर उन्होंने सामने आकर यह बात कभी नहीं रखी. रेक्स का व्यवहार उनके साथ भी ऐसा ही था.

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केस-2

ठीक ऐसा ही मामला हाल में पश्चिम बंगाल की जादवपुर यूनिवर्सिटी से आया था. एक छात्रा एकबाली घोष ने अपने साथ पढ़ने वाले एकलव्य चौधरी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट साझा किया था. आरोप लगाए जाने के बाद 13 लड़कियों ने एकलव्य के खिलाफ यौन उत्पीड़न के साथ-साथ, अॉनलाइन उत्पीड़न जैसे अपराधों के भी इल्जाम लगाए. यह पोस्ट काफी वायरल हो गया.



 फेसबुक के ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ को बदलने की जरूरत है, जिसमें सिर्फ महिलाओं की आवाज को ही दबाया जा रहा है.

1, 000 से अधिक शेयरों के बाद फेसबुक ने इसे हटा दिया था. ऐसा लगता है, जैसे फेसबुक असहमति के किसी भी वास्तविक आवाज को व्यवस्थित तरीके से दबा रहा हो. लेकिन इस केस में कई लोगों ने एकबाली के पोस्ट का स्क्रीनशाॅट लेकर उसे पोस्ट और शेयर किया, जिस वजह से यह वायरल हुआ.

फेसबुक का यह ‘समुदाय मानक’ (कम्युनिटी स्टैंडर्ड) महिलाओं को असफल करार दे रहा है, जबकि पुरुषों के तथाकथित अधिकार संबंधी बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ हिंसा का महिमा बखान करने वाले पोस्ट को शायद ही हमने हटते देखा होगा.

क्यों महिलाएं सहें भेदभाव?

मई में शुरू हुआ ब्लोक्स एडवाइस नाम के एक फेसबुक ग्रुप में 2 लाख मेंबर हैं. इस ग्रुप के सभी मेंबर मर्द हैं. इस ग्रुप के मेंबर्स रेप से जुड़ी बातों के मजे लेने के लिए इससे जुड़ते हैं. औरतों के बारे में बुरी सोच रखने वाले पुरुष इस ग्रुप पर खुलकर अपनी भड़ास निकालते हैं.


ये सीक्रेट ग्रुप ऑस्ट्रेलिया में शुरू हुआ था. पेज के बारे में लोगों को तब पता चला, जब फेमिनिस्ट राइटर क्लीमेंटीन फोर्ड ने अपने फेसबुक पेज से इस ग्रुप के कुछ स्क्रीनशॉट पोस्ट किए. उन पोस्ट में काफी भद्दी बातें औरतों के लिए लिखी गई थी.



 फेसबुक के ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ को बदलने की जरूरत है, जिसमें सिर्फ महिलाओं की आवाज को ही दबाया जा रहा है.

क्लीमेंटीन हमेशा से फेसबुक के इस दोहरे मापदंड के लिए आलोचना करती आई हैं. एक बार इंटरनेट ट्रॉल का शिकार होने के बाद ट्रोलर से भिड़ने के कारण फेसबुक ने उन पर भी 30 दिनों के लिए प्रतिबंध लगा दिया था.

क्या है तय करने का पैमाना?

फेसबुक का कहना है, “वो कंटेंट खतरनाक हैं, जो यौन हिंसा या शोषण को बढ़ावा देती है. अभद्र भाषा, सेक्स, लिंग या लिंग पहचान के आधार पर लोगों पर हमला करती हैं. हमारे ग्लोबल समुदाय की विविधता की वजह से यूजर्स को ध्यान में रखना होगा कि वो ऐसे पोस्ट न करें जिससे उनके समुदाय मानकों ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ का उल्लंघन हो.”

फेसबुक के अनुसार, वह साइट से कोई भी कंटेंट अपने समुदाय मानकों के आधार पर हटाती है. यह उनकी समझ बांटने में मदद करती है कि किस तरह के कंटेंट और सूचना को फेसबुक पर अनुमति दी जा सकती है या किसे हटाया जा सकता है.

लेकिन फेसबुक का महिलाओं के लिए यह भेदभाव वाला रवैया एक सवाल खड़ा करता है. इस ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड’ को बदलने की जरूरत है, जिसमें सिर्फ महिलाओं की आवाज को ही दबाया जा रहा है.

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