पाकिस्तान में अब ये आवाज उठने लगी है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के बहाने अंग्रेजों ने भारत में व्यापार किया और ब्रिटिश कोलोनियल राज स्थापित कर भारत को गुलाम बना लिया था. कहीं वैसा ही कुछ चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर के बनने से पाकिस्तान का न हो जाये.
पाकिस्तान में भारत के सर्जिकल स्ट्राइक का डर अभी कम भी नहीं हुआ था कि अब चीन के भारी भरकम निवेश ने वहां के सियासतदानों को परेशान करना शुरू कर दिया है. अपर हाउस के कानून बनाने वालों ने ‘चीन-पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर’ के समझौते की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से की है.
पाकिस्तानी अखबार डॉन में छपी खबरों के मुताबिक सीनेटर ताहिर मशहदी, ने कहा है की “फिर से एक ईस्ट इंडिया कंपनी जन्म ले सकती है, यह देश हित में नहीं है. हमें गर्व है कि चीन हमारा अच्छा दोस्त है, लेकिन देश हमारे लिए सब से पहले है.”
इस प्रोजेक्ट को लेकर कई सिनेटर्स नाराज हैं और यह डर सता रहा है कि स्थानीय फाइनेंसिंग का इस्तेमाल चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर से जुड़े प्रोजेक्ट्स में हो रहा है.
“यह बहुत खतरनाक होगा अगर हमें इसका पूरा भार उठाना पड़ा तो. यह प्रोजेक्ट देश का विकास करेगी या आपदा लाएगी? जो भी लोन सरकार ने चीन से लिया होगा उसका कर्ज तो पाकिस्तान के गरीब लोगों को ही चुकाना पड़ेगा.”सईदुल हसन मंढोकलि, सीनेटर
पाकिस्तान में उठ रहे विरोध की खबर जैसे ही चीन को लगी तो उसने तुरंत अपने राजदूत सन वेईडोंग को पाकिस्तान तहरीक-ए-इन्साफ पार्टी के मुखिया इमरान खान से मिलने को कहा. जिसमे इमरान खान ने यह साफ कर दिया कि उनकी लड़ाई पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से है, और उनका एकाउंटेबिलिटी मूवमेंट भी उसी के लिए है.
डॉन के खबर की माने तो दोनों के बीच हुई मीटिंग में इस बात को साफ कर दिया गया कि पाकिस्तान और चीन के बीच के संबंध में कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
अब देखना यह है की इस मीटिंग के बाद क्या पाकिस्तान के नेताओं में चीन-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर को ले कर ईस्ट इंडिया कंपनी वाला डर बना रहता है या नहीं?
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