Akshaya Tritiya 2024: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का त्योहार मनाया जाता है, जो कि इस साल 10 मई 2024, शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया का दिन बड़ा ही शुभ माना जाता है. इस दिन विवाह के साथ गृह प्रवेश, सगाई, मुंडन और यज्ञोपवित आदि शुभ संस्कार भी किए जा सकते हैं. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा के साथ सोना-चांदी की खरीदारी की जाती हैं. आइए जानते हैं अक्षय तृतीया पर खरीदारी का मुहूर्त.
Akshaya Tritiya Shubh Muhurat: अक्षय तृतीया शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया शुक्रवार, 10 मई 2024 को मनाई जाएगी.
अक्षय तृतीया पूजा मुहूर्त - 05:33 ए एम से 12:18 पी एम
तृतीया तिथि प्रारम्भ - मई 10, 2024 को 04:17 ए एम बजे
तृतीया तिथि समाप्त - मई 11, 2024 को 02:50 ए एम बजे
अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय - 04:17 ए एम से 05:33 ए एम
Akshaya Tritiya Pujan Vidhi: अक्षय तृतीया पूजन विधि
सबसे पहले सुबह स्नान कर वस्त्र धारण करें.
इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए एक चौकी पर पीले या लाल रंग का वस्त्र बिछाकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें.
इसके बाद भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल और तुलसी चढ़ाएं, वहीं मां लक्ष्मी को कमल या गुलाब के फूल चढ़ाएं.
इसके साथ भोग में सत्तू, ककड़ी, भीगे चने की दाल अर्पित करें, साथ ही मिठाई का भोग लगा दें.
अंत में घी का दीपक, धूप जलाकर विधिवत तरीके से लक्ष्मी चालीसा का पाठ करके आरती कर लें.
पूजा के बाद ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं.
Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीय का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन त्रेतायुग का आरंभ हुआ था. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था. कहा जाता है अक्षय तृतीया पर दान करने का विशेष महत्व है. इस दिन दान करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और जीवन के सभी सकंट दूर हो जाते हैं.
मां लक्ष्मी पूजन मंत्र
पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्
ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:
भगवान विष्णु पूजन मंत्र
ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।
ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
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