देश में कांवड़ यात्रा का खास महत्व है. हर साल लाखों श्रद्धालु पैदल हरिद्वार से गंगाजल लेकर देश के कोन-कोने में पहुंचते हैं और शिवलिंग में गंगाजल चढ़ाते हैं. मान्यता है भक्तों द्वारा ऐसा करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती हैं.
सावन में इस बार 4 नहीं 5 सोमवार
हर साल कांवड यात्रा सावन से शुरू होती थी, इस बार सावन माह आज 6 जुलाई से शुरू हो गया है. लेकिन कोरोना महामारी के कारण सरकार ने कांवड यात्रा को रद्द कर दिया है.
सावन के महीने में इस बार 5 सोमवार पड़ रहे हैं. पहला 6 जुलाई, दूसरा 13 जुलाई, तीसरा, 20 जुलाई, चौथा 27 जुलाई और पांचवा सोमवार 3 अगस्त को पड़ रहा है. मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है.
क्यों होती है कांवड़ यात्रा
सावन में हर साल लाखों कांवड़िए हरिद्वार जाते हैं और कांवड़ में गंगाजल भरकर पैदल यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़िये अपने कांवड़ में जो गंगाजल भरते हैं, उससे सावन की चतुर्दशी पर भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है.
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला था, जिसे जगत कल्याण के लिए भगवान शंकर ने पी लिया था, जिसके बाद भगवान शिव का गला नीला पड़ गया और तभी से भगवान शिव नीलकंठ कहलाने लगे. भगवान शिव के विष का सेवन करने से दुनिया तो बच गई, लेकिन भगवान शिव का शरीर जलने लगा. ऐसे में देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया. इसी मान्यता के तहत कांवड़ यात्रा शुरू हुई.
हरिद्वार से क्यों लाते गंगाजल
कांवड़ यात्रा को लेकर मान्यता है कि पूरे श्रावण महीने में भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल, हरिद्वार में रहे हैं. इस समय भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण तीनों लोक की देखभाल भगवान शिव ही करते हैं. यही वजह है कि कांवड़िये श्रावण माह में गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)