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श्रीकृष्ण: एक नाम, अनेक रूपों वाला लोकनायक देवता

कृष्ण के कितने रूप हैं. असंख्य. जितने रूपों में देख सकते हैं उतने

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कृष्ण के कितने रूप हैं. असंख्य. जितने रूपों में देख सकते हैं उतने. महाभारत के युद्ध के मैदान में अर्जुन कृष्ण का विराट रूप देखते हैं. उस दौर में भी और अब भी कृष्ण को अलग-अलग देखने का नजरिया है. राधा और ब्रज की गोपियां कृष्ण को प्रेमी के रूप में देखती हैं. द्रौपदी सखा के रूप में. अर्जुन मित्र और पथ प्रदर्शक के तौर पर. धर्मराज और नीति शास्त्र में पारंगत होते हुए युद्धिष्ठिर उनसे डिप्लोमेसी पर सलाह लेते हैं.

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दुर्योधन के लिए कृष्ण अलग, सहपाठियों के लिए अलग

राजनीति-शास्त्र के छात्र के रूप में वह राजनीति के पाठ उनसे पढ़ते हैं. दुर्योधन के लिए कृष्ण दुष्ट, आवारा, मूढ़ और छल करने वाला है. कोई उन्हें ईश्वर के तौर पर देखता है. कोई उन्हें मित्र, सलाहकार एक सकारात्मक शक्ति के तौर देखता है.जो अपनी उपस्थिति से चीजों को सही दिशा में मोड़ देता है.

कृष्ण के कितने रूप हैं. असंख्य. जितने रूपों में देख सकते हैं उतने

क्या कृष्ण को इसका अहसास था कि लोग उन्हें किस रूप में देखते हैं. अहसास रहा होगा. लेकिन उन्होंने कभी जताया नहीं. कृष्ण एक दैवीय शक्ति रहे होंगे. लेकिन हमेशा जमीन से जुड़े रहे. ग्वालों के संग खेले. ग्रामीण महिलाओं से नाता जोड़ा. स्थानीय राजनीति में हिस्सा लिया. खुद एक बड़े क्षत्रप और बाद में नरेश हुए लेकिन जनता के बीच घुलमिल कर रहने के अंदाज से उन्होंने कभी इसका अहसास नहीं होने दिया.

कृष्ण एक लोकनायक हैं. जनता के नायक. खुद को उनके बीच रखने वाले. महान समाजवादी विचारक और नेता राममनोहर लोहिया ने राम, कृष्ण और शिव नाम के अपने एक प्रसिद्ध लेख में उनके बारे में लिखा है- उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं किया या माना जाए तो केवल इस हद तक कि जिनके लिए उन्होंने सबकुछ किया वे उनके अंश भी थे. उन्होंने राधा को चुराया तो न अपने लिए और न राधा की खुशी के लिए बल्कि इसलिए कि हर पीढ़ी की अनगिनत महिलाएं अपनी सीमाएं और बंध तोड़ कर विश्व से रिश्ता जोड़ सकें. इस तरह की हर सफाई गैर-जरूरी है.

दुनिया के महानतम ग्रंथ भगवदगीता के रचयिता कृष्ण को कौन नहीं जानता. दुनिया में हिन्दुस्तान अकेला देश है, जहां दर्शन को संगीत के माध्यम से पेश किया गया है. जहां बिना कविता और कहानी में परिवर्तित होकर गाए गए हैं. कृष्ण ने उन्हें और शुद्ध रूप में निथारा.

कर्मयोगी, महायोगी कृष्ण

कृष्ण के कितने रूप हैं. असंख्य. जितने रूपों में देख सकते हैं उतने
कृष्ण का जीवन हमें कर्म करने की प्रेरणा देता है.
(फोटो: Twitter/Facebook)

कृष्ण को कर्मयोगी कहा गया है. उन्हें महायोगी भी कहा गया है. यानी एक आध्यात्मिक शक्तियों से परिपूर्ण कर्म में रत रहने वाला व्यक्ति.कृष्ण के जीवन में जो प्रसंग आए हैं. वह इसे साबित करते रहे कि उनके जीवन का एक-एक क्षण दुनियावी संदर्भों  में उलझा रहा. वह राजनीति के उठापटक, राजनय के दांव-पेच और सत्ता-समीकरणों से जुड़ा रहा. महाभारत की धुरी में वही थे. जय में भी और पराजय में भी. सत्ता की धुरी होते हुए भी उन्होंने कभी यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह विशेष हैं. जमीन और जमीनी लोगों से यह जुड़ाव ही कृष्ण  को महान बनाता है.

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कृष्ण का जीवन हमें कर्म करने की प्रेरणा देता है. निरंतर कर्म. एक सुंदर दुनिया बनाने के लिए किया जाने वाला कर्म. वह शहर (द्वारिका) बसाते हैं. गो पालन करते हैं. राजनीति करते हैं. राजनयिक के तौर पर काम करते हैं. युद्ध करते हैं. युद्ध भूमि में प्रेरक उपदेश देते हैं. इतनी ऊंचाई के बावजूद छोटे से छोटे व्यक्ति की उन तक पहुंच है. ब्रज के ग्वालिनों से लेकर मीरा तक उनकी एकनिष्ठ भक्तिनें हैं. सुदामा से लेकर द्रौपदी और युद्धिष्ठिर से लेकर, हर कोई उन्हें सिर्फ अपना और अपना मानता है. लेकिन कृष्ण अलग-अलग लोगों के अपने होते हुए सबके हैं.सर्वव्यापी हैं.

हर किसी के हैं कृष्ण

कृष्ण के कितने रूप हैं. असंख्य. जितने रूपों में देख सकते हैं उतने

भारतीय संस्कृति के विश्लेषक विद्यानिवास मिश्र लिखते हैं- श्रीकृष्ण से हमारा सीधा संबंध है. उन्हें उलाहना देने का. उनसे नाराज होने का. उन्हें दुलारने का. उन्हें प्यार से बुलाने का हमें अधिकार है और इस अधिकार पर हम गर्व करते हैं. श्रीकृष्ण हमारे भाव पुरुष हैं. जीवन का कोई ऊर्जात्मक पक्ष नहीं है, जो श्रीकृष्ण में पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं हुआ हो. बाल सुलभ चपलता और स्फूर्ति से लेकर प्रौढ़ पुरुष की परिणति, स्थितप्रज्ञता और निस्संग करुणा तक जितने भी गुण हो सकते हैं वे सभी श्रीकृष्ण में मूर्तिमान हैं.

इन सबसे बढ़ कर कृष्ण एक लोकनायक हैं. एक ऐसा नायक जो दैवीय और आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण होते हुए मनुष्य के सबसे नजदीक दिखता है. कृष्ण का यह रूप सदियों से लोगों को प्रेरित करता रहा है. विशालता और भव्यता के प्रतीक श्रीकृष्ण इतने सहज हैं कि हर कोई उनसे तुरंत नाता जोड़ लेता है. भाव के जितने रूप एकत्र हैं वे सभी कृष्ण में हैं. कृष्ण अज्ञेय हैं.

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