ADVERTISEMENTREMOVE AD

महाशिवरात्र‍ि स्‍पेशल: शिव सिखाते हैं,सच्चे प्रेम का मतलब क्‍या है

शिवरात्रि कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने और शादीशुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का है

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

हर साल फरवरी में एक सप्‍ताह तक वैलेंटाइंस वीक की धूम रहती है. इसी के आसपास फाल्‍गुन कृष्‍ण चतुर्दशी को महाशिवरात्र‍ि मनाई जाती है. वैलेंटाइन डे, प्रेम की अभिव्यक्ति का दिन है, तो शिवरात्रि प्रेम की परिणति का. अनादि, अनंत शिव का कैसा जन्मदिवस? उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन तो उनके विवाह का उत्सव है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
शिवरात्रि  कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने और शादीशुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का  है
वैलेंटाइन डे, प्रेम की अभिव्यक्ति का दिन है तो शिवरात्रि, प्रेम की परिणति का
फोटो:Twitter

शिवरात्रि दिन कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने का है, तो शादीशुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का. समय चाहे कितना भी बदल जाए, पति या प्रेमी के तौर पर शिव की प्रासंगिकता कभी खत्म नहीं होगी. चूंकि शिव सच्चे अर्थों में आधुनिक, मेट्रोसेक्सुअल पुरुषत्व के प्रतीक हैं, इसलिए हर युग में स्त्रियों के लिए काम्य रहे हैं.

यह भी पढ़ें: महाशिवरात्र‍ि पर पूजा करने से पहले ये जरूर जान लीजिए

शिव जैसा सरल और सहज कोई नहीं

शिव का प्रेम सरल है, सहज है, उसमें समर्पण के साथ सम्मान भी है. शिव प्रथम पुरुष हैं, फिर भी उनके किसी स्वरूप में पुरुषोचित अहंकार यानी मेल ईगो नहीं झलकता. सती के पिता दक्ष से अपमानित होने के बाद भी उनका मेल ईगो उनके दाम्पत्य में कड़वाहट नहीं जगाता. अपने लिए न्‍योता नहीं आने पर भी सती के मायके जाने की जिद का शिव ने सहजता से सम्मान किया.

आज के समय में भी कितने ऐसे मर्द हैं, जो पत्नी के घरवालों के हाथों अपमानित होने के बाद उसका उनके पास वापस जाना सहन कर पाएंगे? शिव का पत्नी के लिए प्यार किसी तीसरे के सोचने-समझने की परवाह नहीं करता. लेकिन जब पत्नी को कोई चोट पहुंचती है, तब उनके क्रोध में सृष्टि को खत्म कर देने का ताप आ जाता है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
शिवरात्रि  कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने और शादीशुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का  है
शिवरात्रि दिन कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने का है तो शादी-शुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का दिन है
फोटो:Twitter
हिंदू मान्यताएं कहती हैं कि बेटा राम सा हो, प्रेमी कृष्ण सा, लेकिन पति शिव सा होना चाहिए. पार्वती के अहिबात सा दूसरा कोई सुख नहीं विवाहिता के लिए. क्यों? क्योंकि शिव सा पति पाने के लिए केवल पार्वती ने ही तप नहीं किया, शिव ने भी शक्ति को हासिल करने लिए खुद को उतना ही तपाया.

शक्ति के प्रति अपने प्रेम में शिव खुद को खाली कर देते हैं. कहते हैं, पार्वती का हाथ मांगने शिव, उनके पिता हिमालय के दरबार में सुनट नर्तक का रूप धरकर पहुंच गए थे. हाथों में डमरू लिए, अपने नृत्य से हिमालय को प्रसन्न कर जब शिव को कुछ मांगने को कहा गया, तब उन्होंने पार्वती का हाथ उनसे मांगा.

शिव न अपने प्रेम का हर्ष छिपाना जानते हैं, न अपने विरह का शोक. उनका प्रेम निर्बाध और नि:संकोच है, वह मर्यादा और अमर्यादा की सामयिक और सामाजिक परिभाषा की कोई परवाह नहीं करता. अपने ही विवाह भोज में जब शिव को खाना परोसा गया, तो श्वसुर हिमालय का सारा भंडार खाली करवा देने के बाद भी उनका पेट नहीं भरा. आखिरकार उनकी क्षुधा शांत करने पार्वती को ही संकोच त्याग उन्हें अपने हाथों से खिलाने बाहर आना पड़ता है. फिर पार्वती के हाथों से तीन कौर खाने के बाद ही शिव को संतुष्टि मिल गई.

शिवरात्रि  कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने और शादीशुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का  है
हिंदू मान्यताएं कहती हैं कि बेटा राम सा हो, प्रेमी कृष्ण सा लेकिन पति शिव सा होना चाहिए
फोटो:Twitter
ADVERTISEMENTREMOVE AD

यूं व्यावहारिकता के मानकों पर देखा जाए, तो शिव के पास ऐसा कुछ भी नहीं, जिसे देख-सुनकर ब्याह पक्का कराने वाले मां-बाप अपने बेटी के लिए ढूंढते हैं. औघड़, फक्कड़, शिव, कैलाश पर पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए एक घर तक नहीं बनवा पाए, तप के लिए परिवार छोड़ वर्षों दूर रहने वाले शिव. साथ के जो सेवक वो भी मित्रवत, जिनके भरण की सारी जिम्मेदारी माता पार्वती पर. पार्वती के पास अपनी भाभी, लक्ष्मी की तरह एश्वर्य और समृद्धि का भी कोई अंश नहीं.

फिर भी शिव के संसर्ग में पार्वती के पास कुछ ऐसा है, जिसे हासिल कर पाना आधुनिक समाज की औरतों के लिए आज भी बड़ी चुनौती है. पार्वती के पास अपने फैसले स्वयं लेने की आजादी है. वो अधिकार, जिसके सामने दुनिया की तमाम दौलत फीकी पड़ जाए.

पार्वती के हर निर्णय में शिव उनके साथ है. पुत्र के रूप में गणेश के सृजन का फैसला पार्वती के अकेले का था, वो भी तब, जब शिव तपस्या में लीन थे. लेकिन घर लौटने पर गणेश को स्वीकार कर पाना शिव के लिए उतना ही सहज रहा, बिना कोई प्रश्न किए, बिना किसी संदेह के. पार्वती का हर निश्चय शिव को मान्य है.

शिवरात्रि  कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने और शादीशुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का  है
पार्वती के हर निर्णय में शिव उनके साथ है
फोटो:Twitter
ADVERTISEMENTREMOVE AD

शिव अपनी पत्नी के संरक्षक नहीं, पूरक हैं. वह अपना स्वरूप पत्नी की तत्कालिक जरूरतों के हिसाब से निर्धारित करते हैं. पार्वती के मातृत्व रूप को शिव के पौरुष का संरक्षण है, तो रौद्र रूप धर विनाश के पथ पर चली काली के चरणों तले लेट जाने में भी शिव को कोई संकोच नहीं.

शिव के पौरुष में अहंकार की ज्वाला नहीं, क्षमा की शीतलता है. किसी पर विजय पाने के लिए शिव ने कभी अपने पौरुष को हथियार नहीं बनाया, कभी किसी के स्त्रीत्व का फायदा उठाकर उसका शोषण नहीं किया. शिव ने छल से कोई जीत हासिल नहीं की. शिव का जो भी निर्णय है, प्रत्यक्ष है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

वहीं दूसरी ओर शक्ति अपने आप में संपूर्ण है, अपने साथ पूरे संसार की सुरक्षा कर सकने में सक्षम. उन्हें पति का साथ अपने सम्मान और रक्षा के लिए नहीं चाहिए, प्रेम और साहचर्य के लिए चाहिए. इसलिए शिव और शक्ति का साथ बराबरी का है. पार्वती, शिव की अनुगामिनी नहीं, अर्धांगिनी हैं.

कथाओं की मानें, तो चौसर खेलने की शुरुआत शिव और पार्वती ने ही की. इससे इस बात की पुष्टि होती है कि गृहस्थ जीवन में केवल कर्तव्य ही नहीं होते, स्वस्थ रिश्ते के लिए साथ बैठकर मनोरंजन और आराम के पल बिताना भी उतना ही जरूरी है. शिव और पार्वती का साथ सुखद गृहस्थ जीवन का अप्रतिम उदाहरण है.

शिवरात्रि  कुंवारी लड़कियों के लिए शिव सा पति मांगने और शादीशुदा औरतों के लिए पार्वती सा अखंड अहिबात मांगने का  है
शिव और पार्वती का साथ सुखद गृहस्थ जीवन का अप्रतिम उदाहरण है.
फोटो:Twitter
ADVERTISEMENTREMOVE AD

अलग-अलग लोक कथाओं में शिव और शक्ति कई बार एक-दूसरे से दूर हुए, लेकिन हर बार उन्‍होंने एक-दूसरे को ढूंढकर अपनी संपूर्णता को पा लिया. इसलिए शिव और पार्वती का प्रेम हमेशा सामयिक रहेगा, स्थापित मान्यताओं को चुनौती देता हुआ, क्योंकि शिव होने के मतलब प्रेम में बंधकर भी निर्मोही हो जाना है, शिव होने के मतलब प्रेम में आधा बंटकर भी संपूर्ण हो जाना है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(डॉ. शिल्पी झा जीडी गोएनका यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ कम्यूनिकेशन में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. इसके पहले उन्‍होंने बतौर टीवी पत्रकार ‘आजतक’ और ‘वॉइस ऑफ अमेरिका’ की हिंदी सर्विस में काम किया है.)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×