रमजान का पाक महीना शुरू हो चुका है. इस पूरे महीने खुदा की इबादत की जाती है और लोग 30 दिन का रोजा रखते हैं. यह महीना मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए बेहद खास है. जहां तक रोजा की बात है, इसे रखने के लिए सूर्योदय से पहले सहरी खाई जाती है. इसके बाद पूरे दिन कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है. सूरज ढलने के बाद मगरिब की अजान होने पर रोजा खोला जाता है, जिसे इफ्तार कहते हैं.
रोजा इस्लाम की पांच अहम बातों में से एक है. जो सभी बालिग पर वाजिब है. वाजिब मतलब करना ही होगा, नहीं करने पर गुनाह के भागीदार होंगे. सुनने में तो आपको लग रहा होगा कि ये वाजिब शब्द बहुत कड़ा है. मतलब कोई बीमार हो या फिर कोई मजबूरी हो तो वो क्या करेगा? तो ऐसे में उनके लिए भी रास्ता है.
इन हालत में रोजे में छूट
- बीमार के लिए माफी- अगर कोई बीमार है, जिसमें डॉक्टर ने भूखे रहने से मना किया है. या फिर वो कुछ ऐसी दवा खा रहा है जिसे छोड़ने से उसकी बीमारी बढ़ जाएगी तो वो रोजा छोड़ सकता है.
- यात्रा के दौरान छोड़ सकते हैं रोजा- कोई लंबी यात्रा पर है और अगर रोजा रखने में परेशानी आ सकती है तो रोजा छोड़ा जा सकता है. लेकिन छोड़े हुए रोजे का बदला बाद में रोजा रख कर पूरा करना होगा.
- प्रेग्नेंट औरतें को छूट- प्रेग्नेंट औरतें या नई-नई मां बनने वाली महिलाएं, जो बच्चे को दूध पिलाती हैं, वह भी रोजा नहीं रख सकतीं हैं
- बुजुर्ग और छोटे बच्चों को भी रोजा रखने में छूट दी गई है.
Ramzan का महत्व
रमजान के पवित्र महीने में ही पहली बार 'कुरान' मानव जाति के लिए प्रकट हुई थी. मुस्लिम धर्म में मान्यता है कि इस पूरे महीने में, शैतानों को नरक में जंजीरों में बंद कर दिया जाता है और आपकी सच्ची प्रार्थनाओं और भिक्षा के रास्ते में कोई नहीं आ सकता है.
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