2020 में पोंगल का त्योहार 15-18 जनवरी के बीच मनाया जाएगा. इस पर्व को खास तौर पर दक्षिण भारत में मनाया जाता है. उत्तर भारत में जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं तो मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं. ठीक उसी तरह से तमिलनाडु में पोंगल का पर्व धूमधाम से मनाते हैं. पोंगल पर्व से ही तमिलनाडु में नए साल की शुरुआत होती है. पोंगल का अर्थ है- खिचड़ी. इस दिन दक्षिण भारत में नई फसल आने की खुशी में खिचड़ी बनाई जाती है. यह फसल कटाई का उत्सव है. इस त्योहार का संबंध फसल है. इसलिए इस त्योहार में वर्षा, धूप और खेती में काम करने वाले पशुओं की पूजा की जाती है.
मुख्य रूप से पोंगल को तीन दिन तक मनाने की परंपरा है. तीन दिन तक चलने वाले इस त्योहार को अलग-अलग नामों जैसे भोगी पोंगल, सूर्य पोंगल और मट्टू पोंगल के नाम से जानते हैं. वहीं कुछ जगहों पर चौथे दिन कन्नु पोंगल भी मनाते हैं.
भोगी पोंगल (Bhogi Pongal)
पोंगल के पहले दिन को भोगी पोंगल के नाम से जानते हैं. इस दिन इंद्र देवता की पूजा की जाती है. अच्छी फसल के लिए बारिश की आवश्यकता होती है. ऐसे में पहले दिन बारिश के देवता इंद्र भगवान को खुश करने के लिए पूजा की जाती है. इंद्र देवता से अच्छी फसल और बारिश की कामना की जाती है. भोगी को तमिलनाडु के अलावा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी सेलिब्रेट करते हैं.
सूर्य पोंगल (Surya Pongal)
पोंगल के दूसरे दिन सूर्य पोंगल मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. अच्छी फसल के लिए धूप की जरूरत होती है, इसलिए पोंगल के दूसरे दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. इस दिन घरों में हाथों से डिजाइन बनाई जाती है इसे लोग रंगोली भी कह सकते हैं. महिलाएं सुबह स्नान के बाद घरों के बाहर बनाती हैं.
मट्टू पोंगल (Mattu Pongal)
पोंगल पर्व के तीसरे दिन मट्टू पोंगल मनाया जाता है. इस दिन खेती में काम आने वाले पशुओं की पूजा की जाती है. पशुओं की पूजा के साथ-साथ इस दिन सांड या बैलों की लड़ाई या दौड़ का भी आयोजन किया जाता है. जिसे जल्लीकट्टू के नाम से भी जानते हैं. दक्षिण भारत में ऐसी मान्यता है कि जिस घर में आक्रामक साड़ होता है, उस घर में मान-प्रतिष्ठा बनी रहती है.
कन्नुम पोंगल (Kaanum Pongal)
पोंगल के आखिरी दिन कन्नुम पोंगल मनाया जाता है. इस दिन घर की महिलाएं अपने भाईयों के साथ पूजा करके सूर्य देवता का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. पोंगल त्योहार का समापन भगवान को प्रसाद के रूप में गन्ने के डंठल के साथ सूखे हल्दी के पत्ते और विभिन्न प्रकार के चावल अर्पित कर किया जाता है.
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