ADVERTISEMENTREMOVE AD

शरारती आंखों और मिठास भरी मुस्कान वाली ‘दादी’ थीं जोहरा सहगल

अनमोल थी जोहरा सहगल के व्यक्तित्व की मधुरता और बेमिसाल थी उनकी जिंदादिली

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

बचपन में हम सबने बड़े-बुजुर्गों के मुंह से एक कहानी सुनी है कि चांद पर एक बूढ़ी दादी रहती हैं, जो हमेशा चरखा चलाकर सूत कातती रहती है. मैं जब छोटा था, तो अक्सर सोचता था कि कैसी दिखती होगी वो दादी? कितनी झुर्रियां होंगी उनके चेहरे पर? वो मुस्कुराती हुई कितनी प्यारी दिखती होगी?

जोहरा सहगल की शख्सियत को देखकर चांद पर सूत कातने वाली उस बुढ़िया के लिए मेरी कल्पना की मूरत को हकीकत की सूरत मिलती थी. अनमोल थी उनके व्यक्तित्व की मधुरता और बेमिसाल थी उनकी जिंदादिली.

करीब सात दशक के अपने करियर में उन्होंने नृत्य, थिएटर और फिल्मों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

नृत्य से गहरा नाता

27 अप्रैल 1912 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में जन्मीं जोहरा सहगल का असली नाम साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजुल्ला था. बचपन से ही उन्हें नृत्य से लगाव था. एक बार देहरादून में मशहूर क्लासिकल और फ्यूजन डांसर उदय शंकर के नृत्य कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस प्रोग्राम ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि ग्रेजुएट होने के बाद वो उदय शंकर की नृत्य-मंडली में शामिल हो गईं और स्टेज शो करने के लिए देश-विदेश में यात्रा करने लगीं. इसी दौरान 1942 में उन्होंने अपने से आठ साल छोटे कामेश्वर सहगल से लव मैरिज किया, जो उसी डांस ग्रुप के सदस्य थे.

अनमोल थी जोहरा सहगल के व्यक्तित्व की मधुरता और बेमिसाल थी उनकी जिंदादिली
उदय शंकर की नृत्य-मंडली में नृत्य करती थीं जोहरा 
(फोटो: ट्विटर)

रंगमंच का सफर

1945 में जोहरा सहगल मुंबई में मशहूर पृथ्वी थिएटर के संपर्क में आईं और करीब 15 साल तक इससे जुडी रहीं.  इस दौरान वो भारत के कई शहरों में अलग-अलग नाटकों का मंचन करती रहीं. पृथ्वीराज कपूर का वो बहुत सम्मान किया करती थीं और थिएटर में उन्हें अपना गुरु मानती थीं. आगे चलकर वो रंगमंच ग्रुप इप्टा में शामिल हो गईं. मुंबई में जोहरा ने इब्राहिम अल्काजी के मशहूर नाटक 'दिन के अंधेरे' में बेगम कुदसिया का किरदार निभाया. उन्होंने 1960 के दशक के मध्य में रूडयार्ड किपलिंग की 'द रेस्कयू ऑफ प्लूफ्लेस' में भी काम किया.

जोहरा सहगल स्वभाव से बेहद खुशमिजाज और जिंदादिल शख्सियत थीं. उनकी जिंदादिली की एक बानगी देखिए कि 97 साल की एक उम्र में एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया था कि इस उम्र में भी उनकी जिंदादिली का राज क्या है? उनका जवाब था- “ह्यूमर और सेक्स”
अनमोल थी जोहरा सहगल के व्यक्तित्व की मधुरता और बेमिसाल थी उनकी जिंदादिली
जोहरा पृथ्वीराज कपूर को थिएटर में अपना गुरु मानती थीं.
(फोटो: ट्विटर)
0

स्टेज से फिल्म और टीवी तक

1946 में ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा के पहले फिल्म प्रोडक्शन 'धरती के लाल' और फिर इप्टा के सहयोग से बनी चेतन आनंद की फिल्म 'नीचा नगर' में उन्होंने अभिनय किया. फिल्मों में काम करने के साथ उन्होंने गुरुदत्त की 'बाजी' और राज कपूर की 'आवारा' समेत कुछ हिन्दी फिल्मों के लिए कोरियोग्राफी भी की. साथ ही कुछ फिल्मों के लिए कला निर्देशन और निर्देशन भी उन्होंने किया.

उन्होंने 50 से ज्यादा देशी-विदेशी फिल्मों और टीवी सीरियल में काम किया. ‘भाजी ऑन द बीच’ (1992), ‘हम दिल दे चुके सनम’ (1999), ‘द करटसेन्स ऑफ बॉम्बे’ (1982) ‘बेंड इट लाइक बेकहम’ (2002), ‘दिल से'(1998), 'वीर जारा' (2004) और ‘चीनी कम’(2007) जैसी फिल्मों में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें याद किया जाता है. नवंबर 2007 में रिलीज हुई फिल्म ‘सांवरिया’ उनकी आखिरी फिल्म थी.

जोहरा सहगल की बेटी किरण सहगल ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था कि जोहरा खाने की बड़ी शौकीन थीं. पकौड़े, कढ़ी और मटन कोरमा उनके पसंदीदा थे. जब घर पर कोई मेहमान आते तो वो फौरन पकौड़े बनाने को कहतीं और परोसे जाने पर मेहमानों से ज्यादा खुद ही खा लिया करती थीं.  
अनमोल थी जोहरा सहगल के व्यक्तित्व की मधुरता और बेमिसाल थी उनकी जिंदादिली
जोहरा सहगल की जिंदादिली कमाल की थी 
(फोटो: ट्विटर)

शायरी और नज्म सुनाना भी जोहरा सहगल की शख्सियत का एक खूबसूरत पहलू था. इसके लिए उन्होंने अनगिनत स्टेज शो भी किए. इस वीडियो में देखिए उनका ये दिलकश अंदाज-

क्रिकेट से लगाव

वैसे तो उम्र के आखिरी पड़ाव में जोहरा सहगल फिल्में लगभग ना के बराबर ही देखती थीं, लेकिन क्रिकेट मैच वो बड़े चाव से देखा करती थीं. आंखें कमजोर होने की वजह से उनकी बेटी किरण क्रिकेट के मैच के दौरान मैच का स्कोर लगातार जोहरा को बताया करती थीं.

जोहरा को 1998 में पद्मश्री, 2002 में पद्मभूषण और 2010 में पद्म विभूषण के अलावा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और राष्ट्रीय कालिदास सम्मान से भी नवाजा जा चुका है. साल 2014 में 102 साल की उम्र में जोहरा सहगल ने दुनिया को अलविदा कह दिया. आज भले ही जोहरा हमारे बीच मौजूद न हों, लेकिन शरारती आंखों और मिठास भरी मुस्कान वाली ये दादी हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगी.

ये भी पढ़ें - गुरुदत्त : अपना ही घर जलाकर तमाशा देखने वाला जीनियस फिल्ममेकर

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×