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गोपाल दास नीरज | फूलों के रंग और दिल की कलम से गीत लिखने वाला कवि

वो नाम जिसकी कविता में गीत लहराते हैं और गीतों में कविता

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गोपाल दास नीरज. कविता और गीतों के पन्नों पर दर्ज वो नाम जो आधी सदी से रोशन है और अभी न जाने कितनी सदियों तक रहेगा. वो नाम जिसकी कविता में गीत लहराते हैं और गीतों में कविता. और वो नाम भी जो बहुत कम वक्त के लिए बॉलीवुड में रहा लेकिन ऐसे नगमे दे गया जिनकी शिद्दत कम होती ही नहीं.
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सुनिए गोपाल दास नीरज की कविताओं और गीतों की कहानी

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे

स्वप्न झरे फूल से

मीत चुभे शूल से

लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से

और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे

कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई

पांव जब तलक उठें कि जिंदगी फिसल गई

पात-पात झर गए कि शाख-शाख जल गई

चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई

गीत अश्क बन गए

छंद हो दफन गए

साथ के सभी दिए धुआं-धुआं पहन गए,

और हम झुके-झुके

मोड़ पर रुके-रुके

उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे

कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे

हाथ थे मिले कि जुल्फ चांद की संवार दूं

होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूं

दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूं

और सांस यों कि स्वर्ग भूमि पर उतार दूं

हो सका न कुछ मगर

शाम बन गई सहर,

वह उठी लहर कि ढह गये किले बिखर-बिखर

और हम डरे-डरे नीर नैन में भरे

ओढ़कर कफन पड़े मजार देखते रहे

कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे

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जब देव आनंद हुए नीरज के मुरीद

सुपरस्टार देव आनंद से नीरज की मुलाकात का दिलचस्प किस्सा है. 1965 में नीरज मुंबई में एक कवि सम्मेलन में कविता पाठ के लिए गए. देव आनंद ने उन्हें सुना और उनके मुरीद हो गए. देव ने कहा कि आप मेरी फिल्म के लिए गीत लिखिएगा. देव आनंद, वहीदा रहमान को लेकर प्रेम पुजारी बना रहे थे. म्यूजिक दे रहे थे मशहूर संगीतकार बर्मन दा यानी एसडी बर्मन. बर्मन दा ने नीरज से कहा- मुझे ‘रंगीला’ शब्द के साथ एक गीत चाहिए. बस फिर क्या था. नीरज ने लिखा ये गीत जो सालों बाद आज भी सुनने वालों की नसों को रोमांच से झनझना देता है.

रंगीला रे...रंगीला रे...

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उनका गीत रंगीला रे देव आनंद का लाइफटाइम पसंदीदा गाना था. प्रेम पुजारी के गाने सुपरहिट रहे. इसके बाद नीरज के गीत काला पानी, तेरे घर के सामने, गैंबलर, रेशम की डोर जैसी कई फिल्मों के हिट होने की वजह बने.

70 के दशक में मुशायरों से लेकर फिल्मी गानों तक साहिर लुधियानवी, मजरूह सुल्तानपुरी, कैफी आजमी, निदा फाजली जैसे दिग्गज शायरों का बोलबाला था. उस जमाने में नीरज ने कवि सम्मेलनों को जिंदा करने के साथ फिल्मी गानों के जरिये हिंदी साहित्य को लोकप्रिय बनाया.

खिलते हैं गुल यहां खिल के बिखरने को

19 जुलाई 2018 को नीरज का निधन हो गया. मशहूर लेखक काशीनाथ सिंह कहते हैं-

वो कारवां था, जो गुजर गया. नीरज खुद में कारवां थे. उनकी रचनाओं ने लोगों को बताया कि जो गाया जाए वह गीत है और वही कविता है.
काशीनाथ सिंह, लेखक

अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए

जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए

जिसकी खुशबू से महक जाए पड़ोसी का भी घर

फूल इस किस्म का हर सिम्त खिलाया जाए

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा

मैं रहूं भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए

गीत उन्मन है, गजल चुप है, रूबाई है दुखी

ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए

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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ नीरज को हिंदी की 'वीणा' कहते थे. लेकिन अगर आपको लगता है कि नीरज के शब्द रोमांस और पीड़ा जैसे चंद जज्बात के बीच ही टहलते थे तो आप गलत हैं. राजनीति की मौकापरस्ती पर हंटर चलाते उनके ये दोहे सुनिए-

अद्भुत इस गणतंत्र के अद्भुत हैं षडयंत्र

संत पड़े हैं जेल में, डाकू फिरें स्वतंत्र

राजनीति के खेल ये समझ सका है कौन

बहरों को भी बंट रहे अब मोबाइल फोन

राजनीति शतरंज है, विजय यहां वो पाय

जब राजा फंसता दिखे पैदल दे पिटवाय

लोग कहते हैं नीरज को पद्म श्री (1991), पद्म भूषण (2007) समेत कई पुरस्कारों से नवाजा गया. लेकिन लगता है कि इन पुरस्कारों को नीरज से नवाजा गया. तो जाते-जाते आपको छोड़ जाते हैं नीरज के एक और सदाबहार गीत के साथ

फूलों के रंग से..

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