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जगजीत सिंह: जिनके गाए गीत अनगिनत होठों से छूकर अमर हो गए 

अल्फाजों से एहसास को छूने का सफर जगजीत सिंह को लोगों के जेहन में हमेशा के लिए अमर कर गया.

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अपने खयालों को हकीकत की शक्‍ल देने का हुनर कम ही लोगों में होता है. ये हुनर जगजीत सिंह की रगों में बसा हुआ था. अल्फाजों से एहसास को छूने लेने वाले जगजीत सिंह लोगों के जेहन में अमर हो चुके हैं.

दादरा द्रुपद ठुमरी, सेनिया घराने की रागदारी और लयकारी से शुरू हुआ उनका यह सफर आज गजल गायकी की मुकम्मल मंजिल बन चुका है. 8 फरवरी 1941 में जन्मे जगजीत सिंह ने मासूमियत, इश्क, मुफलिसी और दर्द की हर गजल में अपना सोज और अंदाज बयां किया.

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गालिब, मीर, खुसरो ने जो लिखा, वह इतनी खूबसूरती से गुनगुना जाएगा, ये उन फरिश्तों ने कभी सोचा भी नहीं होगा. वहीं गुलजार, निदा फाजली, बशीर बद्र, जावेद अख्तर न जाने कितने शायर इस मामले में खुशनसीब रहे कि जगजीत ने उनके जज्बातों को अपनी धुनों से सराबोर कर दिया.

“वह कागज की कश्ती वह बारिश का पानी” सुनते ही जैसे कहीं से बचपन दौड़ा चला आ रहा हो.

“खुमारी चढ़कर उतर गई जिंदगी यूं ही गुजर गई” इन दोनों गजलों के बीच जगजीत सिंह ने जिंदगी के हर पहलू और उसके जज्बात को मानो मखमल में लपेट लिया. भूख ,स्ट्रगल, मोहब्बत, हादसे, शोहरत इस शख्स ने सब कुछ बहुत करीब से देखा और महसूस किया. इसीलिए उनकी आवाज में समुंदर सी गहराई और लहरों का शोर आसानी से महसूस किया जा सकता है.

गंगानगर से ऑल इंडिया रेडियो जालंधर तक का सफर और फिर मुंबई में गायक बनने की कशमकश. तमाम दुश्वारियां झेलते सिर्फ अपनी गायकी को तवज्जो दी. करियर की शुरुआत एक ऐड जिंगल रिकॉर्डिंग से की. वहीं टकराए अपनी मोहब्बत चित्रा सिंह से, जो उनकी हमसफर बनीं.
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उनकी गजलों ने मोहब्बत के सफर को सिलसिलेवार बयान किया. “ऐसी आंखें नहीं देखी ऐसा काजल नहीं देखा” इश्क की शुरुआत शायद यही से होती होगी”. “होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो” एक मासूमियत भरा इजहार है. उन्होंने माशूक की तारीफ बड़े खास अंदाज से की है “तेरा चेहरा है आईने जैसा” या फिर “बहुत खूबसूरत है आंखें तुम्हारी” सुनकर कोई क्लीन बोल्ड हो जाए तो हैरत नहीं होगी.

मोहब्बत में दर्द के सब्जेक्ट पर उन्हें पीएचडी हासिल थी. ''कोई ये कैसे बताए कि वह तन्हा क्यों है" दिल टूटने का गहरा एहसास है. हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले" गालिब के कलाम को जगजीत सिंह ने अपने ही अंदाज में अमर कर दिया. फिर दर्द पर मरहम भी लगाया, ''वह कौन है दुनिया में जैसे गम नहीं होता" या फिर सच ये है बेकार हमें गम होता है. जो चाहता दुनिया में कम होता है".

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“तेरे खुशबू में बसे खत में जलाता कैसे” या फिर कोई यह कैसे बताएं कि वह तन्हा क्यों है कसक और बिछड़ने के दर्द को जिंदा कर देते हैं. शाम से आंख में नमी सी है" या फिर तेरे बारे में जब सोचा नहीं था मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था" यादों की परतों को छेड़ देते हैं.

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मोहब्बत के अलावा कई सोशल सब्जेक्ट पर भी जगजीत सिंह ने बहुत अच्छा काम किया है. “ना मैं हिंदू ना मुसलमान मुझे जीने दो” सोशल हार्मनी का मैसेज देता है. वहीं एक शख्स की अपने परिवार को चलाने की लाचारी” अब मैं राशन की कतारों में नजर आता हूं अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पाता हूं” मैं दिखाई देती है. इसके अलावा जगजीत सिंह के भजनों को भी खास पसंद किया गया. जग में साचो तेरो नाम हे राम” सचमुच शांति का माहौल बना देता है. 
जगजीत सिंह ने देश-विदेश में कई ब्लॉक बस्टर कॉन्सर्ट किए. अपने शो के बीच वो ऑडियंस से कुछ यूं मुखातिब होते थे कि लोग उनके दीवाने होने से खुद को रोक नहीं पाते थे.  
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''तू मेरे जख्मों को ना देख आज मैंने मोहब्बत को देखा है गिर गया गुलदान तो क्या उसने तो गुलाब ही फेका है. अपने एक लोते जवान बेटे को खो देने का गम उनकी जिंदगी में दिखाई दिया" मिट्टी दा बावा नइयो बोलदा" वह कई बार गुनगुना दिया करते थे. उन्होंने कई जॉनर के पुराने गीतों का कवर वर्जन अपने अंदाज में बनाया. जगजीत सिंह का ''चिट्ठी ना कोई संदेश, जाने वह कौन सा देश, जहां तुम चले गए" जैसे गाने रूह हिला देते हैं.

अनफॉरगेटेबल जैसे कई रिकॉर्डतोड़ एल्बम गाने वाले जगजीत सिंह ने कार हादसे में अपने इकलौते बेटे विवेक को हमेशा के लिए खो दिया. इसके वाद उनकी पत्नी चित्रा ने सुर का साथ हमेशा के लिए छोड़ दिया. लेकिन गमों को मरहम बनाकर वो हमेशा गुनगुनाते रहे. लेकिन 10 अक्टूबर 2011 को अपने चाहने वालों की आखों नम कर इस दुनिया को अलविदा कह गए.

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