कान्हा वंशी को न ठुकराए तो फिर गीत लिखूं, अरे राधा सड़कों पर नहीं आए तो गीत लिखूं... व्यंग्य लिखता हूं, विदूषक ही सही फनकारों. अरे आदमी-आदमी बन जाए तो गीत लिखूं... मुझ को सांपों ने नहीं, आदमी ने काटा है. ये जहर उतर जाए तो गीत लिखूं...
अपने व्यंग्यों से समाज को आईना दिखाने वाले कवि माणिक वर्मा का मंगलवार को 81 की उम्र में निधन हो गया. व्यंग्य, कविताएं, दोहे और गजलों से मंचों की शान बढ़ाने वाले माणिक कुछ समय से बीमार चल रहे थे. मध्य प्रदेश के हरदा में रहने वाले माणिक ने बीमार रहने के बावजूद मंच पर अपना जादू बिखेरना नहीं छोड़ा था. तभी तो मंच संचालक रामरिख मनहर हर वक्त उन्हें याद करते हुए एक दोहा सुनाया करते थे.
सागर मंथन जब हुआ, निकले रत्न अनेक...व्यंग्य समुद्र मथा गया, निकला माणिक एक...
माणिक जनवादी सोच के व्यंग्यकार थे. प्यार, प्रेम, राधा, देश की समस्याएं, भूख, पेट, रोटी, किसान इन सब मुद्दों पर उनके गीत, व्यंग्य और गजलों की दुनिया दीवानी थी. ऐसे ही कुछ जाने-माने व्यंग्यकारों से क्विंट हिंदी ने खास बात-चीत की जो माणिक जी के साथ सालों से जुड़े थे और उनके साथ मंच शेयर किया था.
जानेमाने कवि हरिओम पंवार जी उन्हें याद करते हुए कहते हैं, 'माणिक जी 50 सालों तक मंच के शहंशाह बनकर जिए. वो विनम्रता की प्रति मूर्ति थे.’
माणिक जी की बेहतरीन कविताओं को याद करते हुए उन्होंने एक कविता सुनाई और कहा कि ये उनकी सिग्नेचर कविताओं में से एक है . माणिक देश में हो रहे चुनावों की जमीनी हकीकत को अपने व्यंग्य में ढालकर लोगों को राजनीति के चेहरे से रूबरू कराते थे.
सुनिए: मांगीलाल और मैंने
माणिक वर्मा हिंदी कवि सम्मेलन के प्रसिद्ध और बेजोड़ व्यंग्यकार थे. उनकी जैसी पैनी दृष्टि, सधी हुई भाषा और साहस बहुत कम लोगों में है. ये कहना गलत नहीं होगा कि एक युग था माणिक वर्मा. हरिशंकर परसाई और शरद जोशी जैसे बड़े व्यंग्यकार तक माणिक वर्मा जी के प्रशंसक थे.संपत सरल
व्यंग्यकार संपत सरल का कहना है कि, छपने-छपाने वाले मंच के कवियों से दूरी बना कर रखते हैं, लेकिन माणिक का व्यक्तिव कुछ ऐसा था कि, बड़ी से बड़ी शख्सियत उनकी प्रतिभा की कायल थी. एक और जो खास बात थी. वो ये, कि उर्दू वाले हिंदी वालों को कम तरजीह देते थे, क्योंकि कंटेंट कमजोर होता है, लेकिन माणिक का कंटेंट इतना पॉवरफुल था कि हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं के लोग उन्हें बुलाते थे. उनकी हाजिर जवाबी और मासूमियत के लोग दीवाने थे. सरल कहते हैं कि चुप रहने वाला आदमी जब माइक पर बोलता था तो उसका अंदाज ही अलग होता था.
इतने सालों में माणिक जी से बड़ा व्यंग्य कवि इस मुल्क में कोई नहीं हुआ. और न आगे कोई और होगा. मध्यप्रदेश से कई बड़े-बड़े लेखक रहे, लेकिन कविता में माणिक से बड़ा और कोई नहीं हुआ.सुरेंद्र शर्मा, हास्य कवि
सुरेंद्र शर्मा माणिक जी को याद करते हुए उन्हीं की कविता सुनाते हैं...
कायरता जिन चेहरों का श्रृंगार करती है, उसपर मक्खी तक बैठने से इनकार करती है...
वो कहते हैं कि पर्यावरण पर उनसे अच्छी कविता किसी ने नहीं लिखी. अजकल के अधिकांश कवि मंच पर माणिक वर्मा की कविता सुना-सुना कर बड़े कवियों में अपना नाम दर्ज करा रहे हैं. साधारण से कपड़े पहनने वाले, सरल और विनम्र शख्सियत वाले माणिक बहुत कम बोलते थे. अपने से छोटी उम्र के लोगों को भी सम्मान से पुकारा करते थे.
व्यंग्यकार माणिक वर्मा की कविता
हरा भरा यह देश तुम्हारी ऐसी तैसी
फिर भी इतने क्लेश तुम्हारी ऐसी तैसी
बंदर तक हैरान तुम्हारी शक्ल देखकर
किसके हो अवशेष तुम्हारी ऐसी तैसी
आजादी लुट गई भांवरों के पड़ते ही
ऐसे पुजे गणेश तुम्हारी ऐसी तैसी
हमें बुढ़ापा मिला जवानी में और तुमको
जब देखो तब फ्रेश तुम्हारी ऐसी तैसी
देश बिके तो बिके ठाठ से कर्जा लेकर
घूमो खूब विदेश तुम्हारी ऐसी तैसी
चंदन लकड़ी होय जले तब चिता तुम्हारी
मरकर भी ये ऐश तुम्हारी ऐसी तैसी
पहले अपने लाल कटाओ सीमाओं पर
फिर देना उपदेश तुम्हारी ऐसी तैसी
खुद रूढ़ी से ग्रस्त विश्व को तुम क्या दोगे
मुक्ति का संदेश तुम्हारी ऐसी तैसी
शबीना अदीब सफर कर रहीं थीं, लेकिन माणिक जी के निधन की खबर सुनकर उनकी आवाज और सांसें दोनों ही एक पल के लिए थम गईं. नम आंखों और लड़खड़ाती आवाज के साथ उन्होंने माणिक जी को विनम्र श्रद्धांजलि दी. शबीना अदीब कहती हैं-
फूल मुरझाता है सुगंध नहीं, आप तो खूशबुओं का दरिया हैं. मौत ने आपके बदन को छुआ है लेकिन आप तो लोगों के दिल में जिंदा हैं
शबीना कहती हैं कि वो अपने छोटों से इतने अपनेपन से मिलते थे कि कभी एहसास ही नहीं होता था कि वो कोई गैर हैं. पूरी दूनिया में माणिक जी हास्य का इतना बड़ा नाम हैं कि कोई और उनकी जगह नहीं ले सकता.
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