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Birju Maharaj: 13 साल की उम्र में डांस टीचर, 'दुख हारन' कैसे बने बिरजू महाराज?

पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज ने 83 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा.

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कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज का 16 जनवरी की देर रात दिल्ली में उनके घर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज ने 83 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कहा.

4 फरवरी 1938 को ब्रिटिश भारत में जन्में बिरजू महाराज, लखनऊ के कालका-बिंदादीन घराने के वंशज थे. बचपन में उनका नाम 'दुख हारन' रखा गया था, जिसे बाद में बदलकर 'बृजमोहन' कर दिया गया. बृजमोहन नाथ मिश्रा आगे चलकर बिरजू बन गया और अब पूरी दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती है.

पिता और चाचाओं से सीखी नृत्य की कला

उन्होंने बचपन में अपने पिता, अच्चन महाराज के साथ परफॉर्म करना शुरू किया था. पिता के निधन के बाद, उन्होंने अपने चाचा- शंभु और लच्छु महाराज के साथ नृत्य की ट्रेनिंग शुरू की. केवल 13 साल की उम्र में वो डांस टीचर बन गए, जब दिल्ली में संगीत भारती में उन्हें कथक सिखाने के लिए बुलाया गया.

उनकी वेबसाइट के मुताबिक, बिरजू महाराज का पहली बड़ी सोलो परफॉर्मेंस बंगाल में मनमथ नाथ घोष समारोह में संगीत के दिग्गजों की उपस्थिति में थी.

उन्हें वहां खूब पहचान मिली और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
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तबला और नाल बजाने के थे शौकीन

बिरजू महाराज को तबला और नाल बजाने का काफी शौक था. वो काफी अच्छे ड्रमर भी थे. उनकी वेबसाइट के मुताबिक, वो सितार, सरोद, वायलिन, सारंगी भी अच्छे से बजाते थे.

ठुमरी, भजन, गजल और दादरा गाने में भी उन्हें महारत हासिल थी.

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बॉलीवुड गानों को भी किया कोरियोग्राफ

बिरजू महाराज ने सत्यजीत रे की फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' में दो क्लासिकल सीक्वेंस का डायरेक्शन, संगीत कंपोज और गाना गाया है. इसमें से एक वाजिद अली शाह (अमजद खान) पर फिल्माया गया एक ग्रुप डांस था, जिसे उनकी रानियों के साथ नृत्य करते हुए दिखाया गया था.

उन्होंने यश चोपड़ा की फिल्म 'दिल तो पागल है' में एक जुगलबंदी सीन को भी डायरेक्ट किया था और उसका म्यूजिक भी कंपोज किया था. इस सीन में माधुरी दीक्षित कथक स्टाइल में डांस परफॉर्म करती हैं. उन्होंने संजय लीला भंसाली की फिल्म 'देवदास' में 'काहे छेड़े मोहे' सीन को भी कोरियोग्राफ किया था और इस गाने को अपनी आवाज भी दी थी.

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करियर में मिले कई सम्मान

कथक में उनकी महारात ऐसी थी कि 28 साल की उम्र में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनके पूरे करियर में उन्हें कई सम्मान मिले- संगीत नाटक अकादमी, पद्म विभूषण, कालीदास सम्मान, नृत्य चूड़ामनी, आंध्र रत्ना, नृत्य विलास, आधारशिला शिखर सम्मान, राजीव गांधी पीस अवॉर्ड संगम कला अवॉर्ड, और इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि.

उन्हें अक्सर राष्ट्रपति भवन में विशेष समारोहों और विदेशी मेहमानों के सम्मान में परफॉर्म करने के लिए बुलाया गया.

बिरजू महाराज अलग-अलग त्योहारों में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए भारत सरकार द्वारा विदेश भेजे गए विभिन्न सांस्कृतिक मंडलों का हिस्सा रहे हैं. उनकी वेबसाइट के मुताबिक, उन्होंने रूस, अमेरिका, जापान, UAE, UK, फ्रांस, जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य जैसे देशों में परफॉर्म किया था.

बिरजू महाराज के पांच बच्चे हैं- तीन बेटियां और दो बेटे. उनके बच्चे - जयकिशन, दीपक और अनिता - परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए प्रोफेशनल कथक डांसर्स हैं.

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