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जुदा अंदाज,लाजवाब किरदार: कुछ यह थी शम्मी कपूर की कहानी... 

पढ़िए शम्मी कपूर की पैदाइश, उनकी परवरिश और फिल्मी दुनिया के सफर की दास्तां

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कभी कहा जानवर तो कभी कहा जंगली, लेकिन जब शम्मी का अंदाज लोगों के सामने आया, तो दुनिया बोल उठी, ‘तुमसा तो कोई नहीं देखा शम्मी कपूर’.

शम्मी को थिएटर और सिनेमा विरासत में मिली.उनका जन्म 21 अक्टूबर 1931 में हुआ. शम्मी का बचपन पाकिस्तान के पेशावर में गुजरा. उसके बाद उनके पिता पृथ्वीराज राज कपूर एक थिएटर कंपनी के साथ कलकत्ता पहुंच गए, जहां शम्मी कपूर की शुरुआती पढ़ाई हुई. आज उनके जन्मदिन पर जानिए उनसे जुड़ी कुछ खास बातें.

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एक वक्त था जब पृथ्वीराज राज कपूर न्यू थिएटर के लिए काम करते थे. उन्हें जब भी चाइल्ड आर्टिस्ट की जरूरत पड़ती तो अक्सर शम्मी कपूर ही ये रोल प्ले करते. देर रात तक शो करने के बाद सुबह स्कूल जाने पर अक्सर उनकी आंखें लाल नजर आतीं, शम्मी की पढ़ाई पर बुरा असर पढ़ने लगा.

एक दिन टीचर ने पृथ्वीराज कपूर को शम्मी की शिकायत करने स्कूल बुलाया. बिजी शेड्यूल होने की वजह से वो तो नहीं पहुंचे, लिहाजा उनके बड़े भाई राज कपूर स्कूल गए.

स्कूल अथॉरिटी ने सीधे रंगमंच की बुराई शुरू कर दी. ये देख राजकपूर ने कहा कि जो स्कूल थिएटर की इज्जत नहीं कर सकता और हमारी रोजी-रोटी को तवज्जो नहीं देता, वहां शम्मी को पढ़ने की जरुरत नहीं है. उसके बाद शम्मी का दूसरे स्कूल दाखिला तो जरूर कराया गया, लेकिन इससे ये बात साफ हो गई थी कि कपूर खानदान की कला के लिए किस हद तक दीवानगी है.

कलकत्ता से शम्मी पहुंचे मुंबई, जहां उनकी आगे की पढ़ाई शुरू हुई. शुरुआती दौर में वो एक्टिंग नहीं करना चाहते थे. शम्मी एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनना चाहते थे . लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ आ गया कि ये काम उनके बस का नहीं है. वो तो बस थिएटर के लिए बने थे और फिर सिलसिला शुरू हुआ पृथ्वी थिएटर और उसके बाद फिल्मों का. शुरुआती दौर थोड़ा अजीब था, सभी ने कहा ये तो राज कपूर की कॉपी करता है और इस बात शम्मी का जवाब होता था कि थिएटर में निभाए गए राजकपूर के किरदारों का उनपर गहरा असर होता है. शायद इसलिए उनकी फिल्मों पर राजकपूर की झलक दिखाई देती है.

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तुमसा नहीं देखा से बदल गई शम्मी की किस्मत

शम्मी कपूर की शुरुआती फिल्मों में हीरोइन ज्यादा मजबूत नजर आती थीं, चाहे 'रेल का डिब्बा' रही हो या 'नकाब'. लेकिन एक वक्त आया जब उन्होंने अपना पूरा स्टाइल ही बदल दिया और फिर फिल्म आई 'तुम सा नहीं देखा'. इसके बाद शम्मी कपूर ने कभी पलट के नहीं देखा. शम्मी की ये फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई. इसी बीच उनकी जिंदगी में गीता बाली आईं. शम्मी का दिल गीता पर आ चुका था, वो उनके शादी करना चाहते थे, लेकिन शम्मी के बार-बार मनाने पर भी गीता उन्हें मना करती रहीं.

शम्मी ने मंदिर में गीता की मांग लिपस्टिक से भरी

आखिरकार वो घड़ी आ ही गई जब गीता ने शम्मी से शादी करने के लिए हां कर ही दिया. लेकिन उनकी एक शर्त थी कि शादी होगी तो इसी वक्त नहीं तो शादी कैंसिल. रात बहुत हो चुकी थी, कोई मंदिर भी नहीं खुला था. दोनों ने सुबह 4 बजे तक का इंतजार किया. और आखिरकार एक मंदिर में जाकर शादी कर ली. सिंदूर न होने पर गीता की लिपस्टिक से शम्मी ने उनकी मांग भरी. इस शादी से इन्हें दो बच्चे हुए, बेटी कंचन और बेटा आदित्य.

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एक तरफ शम्मी का सबसे जुदा डांसिंग स्टाइल, तो दूसरी तरफ पर्दे पर उनके परफॉरमेंस ने तहलका मचा दिया. शम्मी की एक्टिंग और डांस का लेवल कोई और मैच नहीं कर पा रहा था. यह बात दूसरे कलाकारों के लिए मुसीबत बन गई, इस तरह शम्मू कपूर फिल्मी दुनिया के अनोखे सितारे बन गए.

शम्मी कपूर अपने करियर की बुलंदी पर थे, तभी एक ऐसा झटका लगा कि उनकी जिंदगी बदल गई. 1965 में उनकी पत्नी गीता बाली का निधन हो गया और फिर शम्मी बुरी तरह से गम में डूब गए.1969 में शम्मी की जिंदगी एक बार फिर खुशियों ने दस्तक दी, नीला देवी के साथ उनकी दूसरी शादी हुई.

शूटिंग के दौरान शम्मी कई बार घायल भी हुए, आखिरकार उन्हें डॉक्टरों ने आराम की सलाह दी. जिसके बाद शम्मी ने फिल्मों से दूरी बना ली. लंबे वक्त तक फिल्मों और एक्टिंग से दूर रहने के बाद शम्मी ने ‘बंडलबाज’ और ‘मनोरंजन’ जैसी सुपरहिट फिल्मों को डायरेक्ट किया. शम्मी कपूर हमेशा से जिंदादिल इंसानों में गिने जाते थे.14 अगस्त 2011 को शम्मी कपूर इस दुनिया को अलविदा कह गए.

यह भी पढ़ें: शम्मी कपूर के डांस जैसी एनर्जी थी गीता बाली की शख्सियत में

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