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सोली सोराबजी:अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकार के पहरेदार नहीं रहे

सोली सोराबजी ने 1977 से 1980 तक भारत के सॉलिसिटर जनरल के रूप में कार्यभार संभाला.

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पूर्व अटॉर्नी जनरल और अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकार के प्रहरी पद्म विभूषण सोली सोराबजी का 30 अप्रैल की सुबह कोविड के कारण 91 साल की उम्र में निधन हो गया.

सोराबजी ने अपने 68 साल के करियर में बहुत सारी भूमिकाएं अदा कीं. एक तरफ वह प्रसिद्ध मानवाधिकार वकील थे, जिन्हें UN ने मानवाधिकार की रक्षा के लिए 1997 में नाइजीरिया में अपना दूत बना कर भेजा था, तो दूसरी तरफ वह भारत के 1989-90 और 1998 - 2004 तक अटॉर्नी जनरल भी थे.

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सोली सोराबजी का जन्म 9 मार्च 1930 को मुंबई के पारसी परिवार में हुआ था. सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई और गवर्नमेंट लॉ कॉलेज,मुंबई से पढ़ाई पूरी करके सोराबजी ने 1953 में बार की सदस्यता ली. गवर्नमेंट लॉ कॉलेज,मुंबई में पढ़ते हुए उन्हें रोमन लॉ और जूरिप्रूडेंस के लिए किंलॉच फॉर्ब्स गोल्ड मेडल भी मिला था.

1971 में सोराबजी मुंबई हाईकोर्ट के नामित वरिष्ठ वकील थे. उन्होंने 1977 से 1980 तक भारत के सॉलिसिटर जनरल के रूप में कार्यभार संभाला.

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मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी की आवाज़ बने

1997 में नाइजीरिया में UN के विशेष दूत के रूप में काम करने के बाद वह UN सबकमीशन ऑन प्रमोशन एंड प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स के सदस्य बने और बाद में उन्होंने चेयरमैन पद संभाला. 1998 से वें UN सबकमीशन ऑन प्रिवेंशन ऑफ डिस्क्रिमिनेशन एंड प्रोटेक्शन ऑफ माइनॉरिटी के सदस्य भी हैं. सोराबजी 2000 से 2006 के बीच परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के सदस्य भी रहे हैं.

सोली सोराबजी ने अपने वकालत से अपने आप को अभिव्यक्ति की आजादी के प्रहरी के रूप में स्थापित किया. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने कई लैंडमार्क केसों में प्रेस की आजादी की भी रक्षा की और भारत में प्रकाशन पर से सेंसरशिप ऑर्डर और प्रतिबंध को हटाने के लिए उनकी भूमिका बड़ी है. मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के रक्षा के उनके प्रयासों के लिए उन्हें मार्च 2002 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार ,पद्म विभूषण से नवाजा गया था.

सोली सोराबजी ‘ सिटीजन्स जस्टिस कमेटी ऑफ 1984 एंटी सिख राइट्स’ के सदस्य भी थे और उन्होंने पीड़ितों की तरफ से प्रो-बोनो (बिना फीस) केस भी लड़ा था.

देश के अहम मामलों से जुड़े

सोराबजी भारतीय न्यायिक इतिहास के कुछ सबसे बड़े मामलों से जुड़े. इसमें 1973 का लैंडमार्क केशवानंद भारती केस भी शामिल है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों ने संविधान की मूल सरंचना पर सुनवाई हुई. वो 1978 में मेनका गांधी केस से भी जुड़े थे, जिसके बाद संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीवन और निजता के अधिकार का दायरा बढ़ गया.

इसके अतिरिक्त 1994 में उन्होंने S.R बोम्मई वाद में भी जिरह की जिसमें संघवाद और राज्य सरकारों के स्थायित्व के प्रश्न पर निणर्य दिया गया.

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दो बार देश के अटॉर्नी जनरल रहे

सोराबजी 1977 से 1980 तक देश के सॉलिसिटर जनरल रहे. दिसंबर 1989 से दिसंबर 1990 और फिर 1998 से 2004 तक, उन्होंने दो बार बतौर अटॉर्नी जनरल देश को सेवा दी.

2002 में, भारत सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया.

म्यूजिक से भी था काफी लगाव

सोराबजी को जैज म्यूजिक काफी पसंद था. भारत में इस जॉनर को उनका काफी सपोर्ट मिला था. वो जैज इंडिया के दिल्ली चैप्टर के अध्यक्ष भी रहे थे. उन्हें क्लेरीनेट, पियानो और सैक्सोफोन बजाने का भी शौक था

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सोली सोराबजी के साथ क्विंट का आखिरी इंटरव्यू:

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