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कभी रिटायर न होने वाले फौजी ‘राइफलमैन’ जसवंत सिंह की कहानी

हिंदुस्तानी फौज का जवान जसवंत सिंह आज भी सरहद पर तैनात है. उसके नाम के आगे ‘स्वर्गीय’ नहीं लिखा जाता

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'सवा लाख से एक लड़ाऊं, तब गोबिंद सिंह नाम कहाऊं'. हिंदुस्तान की रगों में दौड़ने वाला यह जज्बा कई बार प्रत्‍यक्ष दिखा है. 1962 की जंग में चीन के सामने हिमालय-सा अडिग खड़ा रहने वाले गढ़वाल राइफल के जवान, राइफलमैन जसवंत सिंह की दास्तान आज भी अमर जवान ज्योति की लौ बनकर जिंदा है.

'एमएस धोनी' के बाद अब बॉलीवुड स्टार सुशांत सिंह राजपूत इन्‍हीं जसवंत सिंह का किरदार निभाने जा रहे हैं. हाल ही में सुशांत ने अपनी आने वाली फिल्म ‘राइफलमैन’ का मोशन पोस्टर 15 जनवरी को आर्मी डे पर रिलीज किया था. ऐसे में जसवंत सिंह के जीवन के सफर पर गौर करना जरूरी है.

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उत्तराखंड के एक छोटे-से गांव का जवान चीन के लिए नासूर बन गया था. साल 1962 में हुई चीन और भारत की लड़ाई के बारे में कौन नहीं जानता. देश के अभिमान और गौरव से सीना चौड़ा करने वाले उस एक जवान ने चीन की सेना को नाकों चने चबवा दिए थे.

इस जंग में चीनी सेना अरुणाचल के सेला टॉप के रास्ते हिंदुस्तानी सरहद पर सुरंग बनाने की कोशिश कर रही थी. उसे गुमान था कि दूसरी तरफ भारतीय सैनिकों को मार गिराया गया है. तभी सामने के पांच बंकरों से आग और बारूद के ऐसे शोले निकले, जिसने चीनी सेना के 300 जवानों देखते ही देखते ढेर कर दिया था.

चीनी फौज सकते में आ गई कि न जाने सामने हिंदुस्तान की कितनी बड़ी बटालियन तैनात है. 72 घंटों के लंबे सिलसिले के बाद धमाकों का शोर थम गया. आगे बढ़े चीनी सैनिक यह देख हैरान हो गए कि सामने घायल पड़े बस एक फौजी ने सारी चीनी जमात की कमर तोड़ दी थी. वह शख्स था 'वन मैन आर्मी' गढ़वाल राइफल की डेल्टा कंपनी का राइफलमैन जसवंत सिंह रावत.

कौन हैं ‘राइफलमैन’ जसवंत सिंह?

जसवंत सिंह जब 17 साल की उम्र में पहली कोशिश में फौज में भर्ती नहीं हो पाए, तो हार नहीं मानी. उन्‍होंने फिर कोशश की और बतौर राइफलमैन सेना में भर्ती हुए.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में जसवंत सिंह रावत जन्म हुआ था. उनकी मां ने भले ही बचपन में उन्हें हर बला से बचाने के लिए काला टीका लगाया हो, लेकिन वो खुद ऐसे 'महावीर' निकले, जिनका गौरव अजर अमर है.

जसवंत सिंह रावत ऐसे सैनिक थे, जिनकी शहादत न केवल भारतीय जवानों के लिए मिसाल बन गई, बल्कि चीनी सेना आज भी इस नाम से खौफ खाती है.

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इस जांबाज शख्स को चीनी फौज ने फांसी पर चढ़ा दिया, लेकिन तभी भारतीय सेना ने धावा बोलकर चीन को खदेड़ दिया. आज भी अरुणाचल प्रदेश को हासिल करने का चीन का सपना उसके अपने बनाए काल्‍पनिक नक्‍शे तक सिमटकर रह गया है.

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माना जाता है कि हिंदुस्तानी फौज का वह जवान आज भी सरहद पर तैनात है. उसके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लिखा जाता. वे भारतीय फौज के इकलौते ऐसे सैनिक हैं, जिन्‍हें कभी रिटायर नहीं माना गया. बाकायदा आज भी पोस्ट और प्रमोशन दिया जाता है.

सरहद पर उनका मंदिर बनाया गया है, जहां उनके साजो-सामान के साथ उनकी यूनिफॉर्म का खास खयाल रखा जाता है. यह माना जाता है कि वीर जसवंत सिंह रावत आज भी हिंदुस्तानी सरहदों की सरपरस्ती में तैनात हैं. उनके साथ पांच गार्ड हमेशा तैनात रहते हैं.

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