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वाराणसी:मोदी के गढ़ में बदल गए UP चुनाव 2022 से पहले समीकरण, 8 सीटों का विश्लेषण

UP Election 2022: BJP, SP, BSP, ओपी राजभर, अपना दल...सब खड़े हैं कतार में, लेकिन किसको मिलेगा काशी का आशीर्वाद?

उपेंद्र कुमार
उत्तर प्रदेश चुनाव
Published:
<div class="paragraphs"><p>7 वें चरण में वाराणसी में मतदान</p></div>
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7 वें चरण में वाराणसी में मतदान

फोटो : Altered by Quint

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"ना मैं आया हूं, ना किसी ने मुझे लाया है, मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है". ये वाक्य पीएम मोदी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान वाराणसी की एक रैली में बोला था. उसके बाद के विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में वाराणसी से बीजेपी को खूब वोट मिले. लेकिन इस बार परिस्थितियां पहली जैसी नजर नहीं आ रही हैं. कुछ जगहों पर जनता की नाराजगी और गठबंधन के साथी दोनों ही बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी करते नजर आ रहे हैं.

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Election 2022) का 10 मार्च को रिजल्ट आ जाएगा. चुनाव में सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी . बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर एसपी हो या बीएसपी सभी ने जनता को लुभाने की कोशिश की. कोई कानून व्यवस्था पर तो कोई विकास का एजेंडा लेकर मैदान में उतरा.

यूपी में 7 मार्च को अंतिम चरण में 54 सीटों पर मतदान होना है, जिसमें बनारस की 8 विधानसभा सीटें भी शामिल हैं. पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण वाराणसी की जनता को अपने पक्ष में करने के लिए सभी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी है. एक तरफ पीएम मोदी से लेकर बीजेपी के वो तमाम बड़े नेताओं ने बनारस में डेरा डाला हुआ है तो वहीं दूसरी तरफ एसपी से अखिलेश यादव और कांग्रेस से प्रियंका गांधी भी यहां जमकर प्रचार कर रहे हैं.

वाराणसी, बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल

वाराणसी की जिन 8 सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें वाराणसी दक्षिण, वाराणसी उत्तर, वाराणसी कैंट, रोहनिया, पिंडरा, अजगरा, सेवापुरी, और शिवपुर हैं. पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने की वजह से बीजेपी के लिए वाराणसी सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है, यही वजह है कि पीएम मोदी यहां कई दिनों से डेरा डाले हुए थे.

वहीं, विपक्षी पार्टियां एसपी और कांग्रेस भी इस पर कब्जा कर बीजेपी और मोदी को जोर का झटका देने की तैयारी में हैं. क्योंकि, साल 2014 के बाद से वाराणसी बीजेपी का अभेद किला बन गया है, जिसके दुर्ग भेदने के लिए सभी पार्टियां अपने-अपने स्तर पर कोशिश कर रही हैं.

बीजेपी और RSS के लिए खास क्यों है वाराणसी ?

दरअसल, वाराणसी पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है, जिसकी वजह से बीजेपी का फोकस इस पर ज्यादा है. क्योंकि, वाराणसी में बीजेपी की एक भी सीट पर हार पीएम मोदी से जोड़कर देखी जा सकती है, जिसको भुनाने के लिए विपक्षी पार्टियां कोई भी कोरकसर नहीं छोड़ेंगी.

इसके साथ ही वाराणसी क्षेत्र में जो भी विकास का कार्य होता है उसे बीजेपी पूरे देश में एक मॉडल की तरह पेश करती है. वाराणसी के शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र में स्थित काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के जरिए बीजेपी अपने हिंदुत्व के एजेंडे को भी आगे बढ़ाने में लगी.

इसके साथ ही यहां के गंगा घाट, सड़कें, रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर जैसे विकास कार्यों के जरिए भी बीजेपी इस इलाके को पूरी तरह से भुनाने की कोशिश में लगी हुई है.

इस बार साल 2017 से अलग परिस्थितियां

बीजेपी ने साल 2017 का विधानसभा चुनाव SBSP के साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ बदली है. इस बार ओमप्रकाश राजभर बीजेपी का साथ छोड़कर एसपी की साइकिल पर सवार हो गए हैं. जिनका वोट बैंक मुख्यत: राजभर विरादरी का है. इनकी तादाद पूर्वांचल क्षेत्र में ज्यादा है.

वहीं, अपना दल भी मां कृष्णा पटेल और बेटी अनुप्रिया पटेल के बीच मदभेदों की वजह से दो भागों में बंट गई है. जिसका एक सिरा यानी कृष्णा पटेल की अपना दल (कमेरावादी) एसपी के साथ है तो वहीं, दूसरा सिरा अनुप्रिया पटेल का अपना दल (सोनेलाल) बीजेपी का साथ खड़ा है. मुखिया अनुप्रिया पटेल केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री हैं.

वहीं, समाजवादी पार्टी का SBSP, अपना दल (कमेरावादी) और जनवादी पार्टी जैसे छोटे दलों को लेकर बनाया गया जातिगत गठबंधन इस क्षेत्र में बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है. पिछले चुनाव में वाराणसी की 8 सीटों में से बीजेपी को 6 सीटें मिली थीं, जबकी सहयोगी रहे अपना दल और सुभासपा को एक-एक सीट.

वाराणसी में मोदी का डेरा और रोड शो की भरमार

पिछले चुनाव की तरह इस बार भी पीएम मोदी का डेरा वाराणसी में जमा. इसके अलावा उनका साथ देने के लिए बीजेपी का पूरा आलाकमान वाराणसी में था. इसके अलावा RSS ने भी वाराणसी के दुर्ग की किलेबंदी अपने स्तर पर शुरू कर दी है.

दरअसल, साल 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन ने यहां की सभी 8 विधानसभा सीटों पर अपना परचम लहराया था. लिहाजा, एक सीट पर भी हुई हार को भी विपक्ष सीधे-सीधे पीएम मोदी की हार के रूप में जोड़कर देखेगा. पीएम मोदी खुद बनारस की गलियों में घूम रहे हैं और सड़कों पर नजर आ रहे हैं. पीएम मोदी ने वाराणसी में रोड शो भी किया साथ ही काशी विश्वनाथ का दर्शन कर पूजा अर्चना की.

वाराणसी में पीएम मोदी के रोड शो के बाद अखिलेश यादव ने भी रोड शो किया. एसपी को रोड शो के लिए 2 घंटे की अनुमति मिली थी. अखिलेश यादव का रोड शो भारत माता मंदिर से शुरू हुआ जो सिगरा, गुरुबाग होते हुए गिरिजा घर पर खत्म हुआ. रोड शो में भारी संख्या में एसपी के कार्यकर्ताओं की मौजूदगी थी.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का भी रोड शो वाराणसी में चर्चा का विषय रहा. प्रियंका गांधी ने वाराणसी में चितइपुर तक रोड शो किया. इसके बाद प्रियंका गांधी ने भाई राहुल गांधी के साथ एक रैली की, जिसमें प्रियंका और राहुल ने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा और बीजेपी पर जनता से झूठ बोलकर वोट लेने का आरोप लगाया.

अब एक नजर वाराणसी की सभी 8 विधानसभा सीटों पर

वाराणसी शहर दक्षिण

वाराणसी का दक्षिण विधानसभा क्षेत्र बीजेपी के लिए बेहद खास हो जाता है क्योंकि, काशी विश्वनाथ मंदिर का क्षेत्र भी इसी इलाके में पड़ता है. ये क्षेत्र पिछले दो-तीन दशकों से बीजेपी का मजबूत गढ़ रहा है. मौजूदा समय में यहां से बीजेपी विधायक नीलकंठ तिवारी हैं, जो यूपी सरकार में मंत्री भी हैं. पिछले चुनाव में नीलकंठ तिवारी को यहां से 92560 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के राजेश मिश्रा थे.

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लेकिन, इस बार मौजूदा विधायक और मंत्री नीलकंठ तिवारी के लिए ये आसान नहीं होने जा रहा है. उनके खिलाफ एसपी के किशन दीक्षित चुनावी मैदान में हैं. बीएसपी ने दिनेश कसुधन को तो कांग्रेस ने मुदिता कपूर को मैदान में उतारा है. हालांकि, इस सीट पर बीजेपी का बर्चस्व रहा है.

यहां से बीजेपी के श्याम देव चौधरी 8 बार विधायक रहे हैं. इस सीट पर साल 1989 से बाद से बीजेपी का ही कब्जा रहा है. हालांकि, साल 2017 में बीजेपी ने उनका टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को दे दिया था, जिनको 92560 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस के राजेश मिश्रा थे और तीसरे नंबर बीएसपी के राकेश त्रिपाठी थे. इस सीट पर मुस्लिम, यादव, वैश्य, कायस्थ और ब्राह्मणों की संख्या ज्यादा है. यहां, मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं.

वाराणसी शहर उत्तर

शहर उत्तर से मौजूदा विधायक बीजेपी से रविंद्र जयसवाल हैं, जो योगी सरकार में मंत्री भी हैं. साल 2017 में जयसवाल यहां से 116017 वोट पाकर दूसरी बार विधायक बने थे. वहीं, एसपी और कांग्रेस गंठबंधन के प्रत्याशी अब्दुल समद अंसारी को 70515 वोट मिले थे, जबकि करीब 32 हजार वोट पाकर बीएसपी तीसरे नंबर पर रही.

दरअसल, इस सीट पर जातीय समीकरण कुछ ऐसा है कि कोई भी पार्टी इसे लंबे समय तक अपने कब्जे में नहीं रख पाई. साल 1951 से 2017 के बीच 19 विधानसभा चुनावों में से 5 बार कांग्रेस, 4 बार एसपी, 3 बार जनसंघ और 5 बार बीजेपी ने जीत दर्ज की.

इस सीट पर मुस्लिम, यादव और वैश्य जातियों का प्रभाव ज्यादा है. इस सीट पर साल 1974 से 7 बार मुस्लिम उम्मीदवार विधायक बन चुके हैं. यानी इससे स्पष्ट है कि इस सीट पर सबसे बड़े किरदार अदा करने वाले मुस्लिम वोटर हैं.

वाराणसी शहर कैंट

इस सीट पर भी पिछले दो दशक से बीजेपी का ही कब्जा रहा है या यूं कहें की जनसंघ से आने वाले हरीश चंद्र श्रीवास्तव के परिवार का ही वर्चस्व रहा है. जनसंघ के पुराने नेता रहे हरीश चंद्र यहां से विधायक रहे और यूपी सरकार में मंत्री भी रहे. उनके बाद उनकी पत्नी ने बागडोर संभाली और अब उनके बेटे के हाथ में वाराणसी शहर कैंट की बागडोर है. मैजूदा समय में सौरभ श्रीवास्त यहां से विधायक हैं.

इस सीट पर हमेशा से ही कायस्थ वोटर निर्णायक भूमिका में रहे हैं. यही वजह है कि इस सीट से कायस्थ उम्मीदवार ही लड़ते रहे हैं और जीत हासिल करते रहे हैं. इस सीट पर सबसे ज्यादा कायस्थ वोटरों की संख्या है इसके बाद ब्राह्मण, मुस्लिम और यादवों का वोट बैंक शामिल है. साल 2017 में यहां से बीजेपी के सौरभ श्रीवास्तव को 132609 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर रहे कांग्रेस प्रत्याशी अनिल श्रीवास्तव को 71283 वोट हासिल हुआ था. यहां से तीसरे नंबर पर बीएसपी रही थी.

रोहनिया विधानसभा, वाराणसी

इस विधानसभा का इतिहास कुछ बड़ा नहीं है. हालांकि, जातीय समीकरण के हिसाब से यहां पटेलों का प्रभाव ज्यादा है. साल 2012 में रोहनिया विधासभा अस्तित्व में आई थी. मौजूदा समय में यहां से सुरेंद्र नारायण सिंह बीजेपी से विधायक हैं.

वहीं, साल 2012 में अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने यहां से जीत दर्ज की थी. इसी सीट से अनुप्रिया पटेल ने अपनी मां कृष्णा पटेल को हराया था, जिसके बाद से अपना दल दो भागों में टूट गया था.

लेकिन, साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में वो मिर्जापुर से चुनाव जीतकर सांसद बन गईं और ऐसे में उन्हें ये सीट छोड़नी पड़ी. इसके बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की, लेकिन साल 2017 में हुए चुनाव में ये सीट बीजेपी के खाते में चली गई. इस सीट पर पटेल और दलित वर्ग का खासा प्रभाव रहा है जो चुनाव को किसी भी दिशा में मोड़ सकते हैं.

शिवपुर विधानसभा, वाराणसी

रोहनिया विधासभा सीट की तरह शिवपुर विधानसभा सीट का भी उदय साल 2012 के विधानसभा चुनाव में हुआ. यहां से पहली बार साल 2012 में बीएसपी के उदय लाल मौर्या ने अपना परचम लहराया था. लेकिन, साल 2017 के विधानसभा चुनाव में ये भी सीट बीजेपी के पाले में चली गई और विधायक बने बीजेपी के अनिल राजभर. योगी सरकार में अनिल राजभर मंत्री भी हैं.

इस सीट पर दलित वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है. उसके बाद नंबर आता है कायस्थ, यादव, मुस्लिम, राजभर, क्षत्रिय और ब्राह्मण समाज का. इस सीट पर दलित वोटर ही चुनाव की दिशा और दशा तय करते हैं. साल 2017 विधानसभा चुनाव में 110453 वोट पाकर बीजेपी के अनिल राजभर पहले स्थान पर रहे, जबकि एसपी के आनंद मोहन यादव दूसरे और बीएसपी के वीरेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे.

अजगरा विधानसभा, वाराणसी

वाराणसी की अजगरा विधानसभा सीट ओमप्रकाश राजभर की पार्टी SBSP के पास है. यहां से सुभासपा के कैलाशनाथ सोनकर मौजूदा विधायक हैं. साल 2017 का विधानसभा चुनाव ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था, इसलिए ये सीट उनके पाले में आ गई थी. लेकिन, इस सीट पर बीएसपी भारी रही है. इस बार ओमप्रकाश राजभर एसपी के साथ हैं.

साल 2017 में बीजेपी गठबंधन की साथी रही SBSP के कैलाशनाथ सोनकर 83,778 वोट पाकर पहले नंबर थे, जबकि एसपी के लालजी सोनकर दूसरे और बीएसपी के त्रिभुवन राम 52480 वोट पाकर तीसरे स्थान पर थे. इस सीट पर जातीय समीकरण की बात की जाए तो दलित वर्ग मुख्य भूमिका में है. वहीं, वैश्य, पटेल, मुस्लिम और यादवों की तादाद भी काफी संख्या में है, जो किसी भी चुनाव को पलटने की ताकत रखते हैं.

पिंडरा विधानसभा, वाराणसी

किसी समय में इस सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी का सबसे बड़ा दखल हुआ करता था. बाहुबली कहे जाने वाले अजय राय यहां साल 2017 तक विधायक रहे, लेकिन साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां जीत दर्ज की. बीजेपी के अवधेश सिंह को पिछले विधासभा चुनाव में 90614 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के अजय राय को 52863 वोट ही मिल पाए और हार गए.

मौजूदा समय में यहां कुल मतदाता करीब 369265 हैं. वहीं, जातिगत आधार पर बात की जाए तो यहां, ब्राह्मण, भूमिहार और कुर्मी बेस वोटर है. इस सीट पर दलित वर्ग की भी अच्छी खासी संख्या है जो चुनाव में खासा असर डाल सकता है.

सेवापुरी विधानसभा, वाराणसी

सेवापुरी विधानसभा सीट भी साल 2012 में परिसीमन के बाद ही अस्तित्व में आई थी. मौजूदा समय में बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के नील रतन पटेल विधायक हैं. साल 2017 के चुनाव में नील रतन पटेल 103423 वोट पाकर पहले नंबर रहे थे, जबकि दूसरे नंबर पर एसपी के सुरेंद्र सिंह पटेल को 54241 वोट ही मिले थे. वहीं, 35657 वोट पाकर बीएसपी के महेंद्र कुमार पांडेय तीसरे स्थान पर थे.

इस सीट पर अगर जातीय समीकरण की बात की जाए तो पटेल वोटर की बड़ी भूमिका है. हालांकि, इस क्षेत्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, यादव और दलित वोटर्स की संख्या अच्छी है. लेकिन हार जीत तय करने में पटेल बिरादरी ही निर्णायक भूमिका में होती है.

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