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Cancer Risk: एस्पार्टेम (aspartame) जिसे दुनिया में सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले आर्टिफिशियल स्वीटनर में से एक माना जाता है को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 'संभावित कार्सिनोजेन' (कैंसर पैदा करने वाला पदार्थ) घोषित कर सकता है. ये खबर 30 जून को रॉयटर्स ने प्रकाशित की है.
रिपोर्ट के मुताबिक, WHO की संस्था इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) यह घोषणा कर सकती है कि एस्पार्टेम एक क्लास 2 बी कार्सिनोजेन है.
इस खबर ने कई लोगों को घबरा दिया है. लेकिन क्या आपको सचमुच चिंता करनी चाहिए? आइए जानते हैं इस आर्टिकल में.
अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) के अनुसार, एस्पार्टेम टेबल शुगर यानी चीनी की तुलना में लगभग 200 गुना अधिक मीठा होता है.
यह इसे दूसरे आर्टिफिशियल स्वीटनर की तुलना में कम मीठा बनाता है, लेकिन एक ग्राम एस्पार्टेम की मिठास की तीव्रता लगभग 2 चम्मच चीनी जितनी होती है.
सिर्फ डाइट कोक में ही नहीं, इसका उपयोग भारत और विदेश दोनों में शुगर-फ्री पेय और एडिटिव्स में किया जाता है.
1981 में, संयुक्त WHO और खाद्य एवं कृषि संगठन की खाद्य योजकों पर विशेषज्ञ समिति (JECFA) ने कहा कि स्वीकृत दैनिक सीमा (accepted daily limits) के भीतर एस्पार्टेम का सेवन सुरक्षित है. तब से चार दशकों से भी अधिक समय से इसे ऐसे ही बनाए रखा गया है.
तो, यह स्वीकृत दैनिक सीमा (accepted daily limits) वास्तव में क्या है? 60 किलो वजन वाले वयस्क अगर हर दिन लगभग 12 से 36 कैन डाइट कोक (एस्पार्टेम की मात्रा के आधार पर) पिएं तो वो जोखिम में हो सकते हैं.
IARC उन चीजों को वर्गीकृत (clarifies) करता है, जो संभावित (potentially) रूप से मनुष्यों में कैंसर का कारण बन सकती हैं. उनकी चार श्रेणियां हैं:
1: कैंसर का कारण बनता है
2ए: संभवतः कैंसर का कारण बनता है
2बी: संभवतः कैंसर का कारण बनता है
3: कैंसर के खतरे के रूप में अवर्गीकृत (unclassified)
रॉयटर्स की रिपोर्ट कहती है कि IARC एस्पार्टेम को क्लास 2बी कार्सिनोजेन तक ले जा रहा है. इसका मतलब यह है कि यह "संभवत" कैंसर का कारण बनता है.
यहां कुछ ऐसी चीजें हैं, जो 'संभवतः कैंसरकारी' भी हैं:
नारियल तेल साबुन
एलोवेरा
पिकल्ड सब्जियां
टैल्कम पाउडर
एस्पार्टेम को यूरोपीय खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण (EFSA) ने मानव उपयोग के लिए इसे सुरक्षित माना है और इसका उपयोग जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया सहित 100 देशों में किया जाता है.
फेनिलकेटोन्यूरिक्स कंडीशन को छोड़कर इसे काफी हद तक सभी में सुरक्षित पाया गया है.
भारत में, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के अनुसार, प्रति मिलियन भागों (PPM) में स्वीकार्य सीमा के भीतर उपयोग की अनुमति है.
कार्बोनेटेड पानी: 700 पीपीएम
गैर-कार्बोनेटेड पानी-आधारित पेय पदार्थ: 600 पीपीएम
बिस्किट, ब्रेड, केक: 2200 पीपीएम
भारतीय मिठाइयां: 200 पीपीएम
जैम्स जेली: 1000 पीपीएम
चीनी आधारित/फ्री कन्फेक्शनरी: 10000 पीपीएम
चॉकलेट: 2000 पीपीएम
आइसक्रीम: 1000 पीपीएम
फ्लेवर्ड दूध: 600 पीपीएम
फिट को पहले दिये एक इंटरव्यू में डॉ. सुभाष कुमार वांगनू के अनुसार, एंडोक्रिनोलॉजिस्ट वर्षों से आर्टिफिशियल स्वीटनर से जुड़े विवादों या दुष्प्रभावों के बारे में जानते हैं.
उन्होंने बताया कि कैसे कई ट्रायल्स के मेटा-एनालिसिस की मदद से यह पाया गया कि वजन कम करने के उद्देश्य से गैर मिठास वाली चीनी (non-sugar sweeteners) का उपयोग वास्तव में अप्रभावी है.
डॉ. अग्रवाल ने कहा, चीनी के स्थान पर स्टीविया जैसे चीनी-रहित पदार्थों का उपयोग करने से कैलोरी सेवन में ज्यादा अंतर नहीं आता है. एक व्यक्ति वास्तव में खोई हुई कैलोरी की भरपाई के लिए आवश्यकता से अधिक भोजन का सेवन कर सकता है, जिससे कैलोरी का सेवन बढ़ सकता है.
डॉ. वांग्नू ने बताया कि इसके अलावा, हर दिन गैर मिठास वाली चीनी का उपयोग करने वाले व्यक्तियों में टाइप -2 डायबिटीज, हृदय रोगों और बढ़ी हुई रुग्णता (morbidity) की घटनाओं में तेजी जैसे प्रतिकूल प्रभावों को देखा गया है.
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