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विश्व में पिछले कुछ सालों से कैंसर रोग के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. भारत में भी हालात चिंताजनक हैं. बीते 2 वर्षों में कोविड के कारण समय पर इलाज न करा पाने से कैंसर की समस्या और अधिक बढ़ गयी है.
इसी बीच कैंसर के इलाज को लेकर एक दवा का ट्रायल किया गया, जिसका परिणाम सफल साबित हुआ है. इस दवा का उपयोग रेक्टल कैंसर यानी मलाशय के कैंसर के इलाज के लिए किया गया और दवा के शुरुआती ट्रायल में हर मरीज को कैंसर से छुटकारा मिल गया है.
पहली बार ऐसा देखा गया कि, डोस्टारलिमैब (Dostarlimab) नाम की एक कैंसर दवा 12 लोगों के एक ग्रुप में देने पर, हर एक व्यक्ति का कैंसर ट्यूमर पूरी तरह से गायब हो गया.
यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन द्वारा बनाई गई एक प्रायोगिक दवा, Dostarlimab-gxly को अगस्त 2021 में ट्यूमर वाले रोगियों पर उपयोग के लिए मंजूरी दी थी.
परीक्षण न्यूयॉर्क के मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर में किया गया था.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है:
अध्ययन में बताया गया कि, "जिन रोगियों को डोस्टारलिमैब थेरेपी के पूरा होने पर क्लिनिकल कम्प्लीट रिस्पांस मिली, उन पर कीमोरेडियोथेरेपी और सर्जरी नहीं की गई"
सभी 12 रोगियों को उपचार के साथ-साथ छह महीने की फॉलो-अप ट्रीट्मेंट केयर दी गई. अवधि के अंत में, सभी 12 रोगियों में ट्यूमर पूरी तरह से गायब हो गए थे.
न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक बयान में मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर के डॉ लुईस ए डियाज जे ने इसे कैंसर के इलाज के इतिहास में एक अभूतपूर्व कदम बताया.
जिन मरीजों को ये दवा दी गई थी, वे कैंसर के लिए कई अन्य उपचार प्रक्रियाओं से गुजर चुके थे, पर उन्हें कहीं भी सफलता नहीं मिली थी.
मई 2022 में, एक और उपचार पहली बार प्रशासित किया गया था. इसमें जेनेटिकली मॉडिफाइड वायरस CF33-hNIS का प्रयोग किया गया, जो कैंसर सेल्स को टारगेट करता है और मार देता है पर स्वस्थ सेल्स को नुकसान नहीं पहुंचता है. परीक्षण के परिणाम कैंसर के उपचार के लिए बहुत आवश्यक हो सकते हैं यदि उन्हें दोहराया जा सके.
हालांकि, उत्तरी कैरोलाइना विश्वविद्यालय की ऑन्कोलॉजिस्ट हैना के. सैनॉफ के अनुसार, कैंसर के उपचार में डोस्टारलिमैब की सुरक्षा और प्रभावशीलता का पूरी तरह से पता पूरे परीक्षण के परिणाम आने के बाद ही लग पाएगा, जिसमें लगभग 30 उम्मीदवार शामिल होंगे.
मेदांता अस्पताल के कैंसर इंस्टीट्यूट में मेडिकल एंड हेमेटो ऑन्कोलॉजी विभाग के चेयरमैन डॉ अशोक कुमार वैद फिट हिंदी से कहते हैं, "यह कैंसर के 12 मामलों की प्रारंभिक रिपोर्ट थी न कि क्लिनिकल परीक्षण की. इस रिपोर्ट का परिणाम बहुत उत्साहजनक है, लेकिन जब तक एक बड़ा परीक्षण नहीं किया जाता है, तब तक हम इसमें बहुत अधिक आशावान नहीं हो सकते हैं. हालांकि, अभी के लिए, 12 मामलों में परिणाम बहुत अच्छे और आशाजनक हैं. पर एक बार बड़ी संख्या पर इसके परिणामों का पता चलने पर ही निष्कर्षों को पूरी तरह से माना जाएगा".
"यह कोई प्रायोगिक दवा नहीं है, यह इम्यूनोथेरेपी के अंतर्गत आने वाली एक चेक प्वाइंट इनहिबिटर है. इस तरह की दवाओं का उपयोग फेफड़े, स्तन और अन्य कैंसर उपप्रकारों के इलाज में किया जाता है. यह उन बाधाओं को हटा देता है जो कैंसर सेल्स को मारने या बाहर निकालने से हमारे इम्यून सेल्स यानी टी सेल्स को रोकते हैं. इस दवा का इस्तेमाल कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज के लिए किया जा रहा है" ये कहना है डॉ मंदीप सिंह मल्होत्रा का.
वो आगे कहते हैं,
"हमें यह समझने की जरूरत है कि इसका उपयोग उन रोगियों में किया गया था जिनके कोलोरेक्टल कैंसर में ट्यूमर म्यूटेशन अधिक था और कैंसर ने इम्यून सिस्टम से बचने के लिए चेक प्वाइंटस का उपयोग किया था. ऐसा जरुरी नहीं है कि हर कैंसर या कोलोरेक्टल कैंसर के मामले में कैंसर इन चेक प्वाइंटस का इस्तेमाल करेगा. कैंसर सेल जीवित रहने और बढ़ने के लिए कई मार्गों और तरीकों का उपयोग कर सकता है".
स्टडी के अनुसार, 12 मरीजों को कैंसर की यह दवा दी गई. बाद में उनकी जांच की गई, जिसमें एंडोस्कोपी, पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी या पीईटी स्कैन या एमआरआई स्कैन शामिल था.
सभी जांचों में पाया गया कि रोगियों के शरीर से कैंसर के ट्यूमर खत्म हो गए थे. इस दवा को लेकर न्यूयॉर्क के मेमोरियल स्लोन केटरिंग कैंसर सेंटर के डॉक्टर लुईस ए डियाज ने कहा कि रोगियों को 6 महीने तक हर तीन सप्ताह पर दवा के डोज दिए गए. यहां बता दें कि सभी रोगियों को कैंसर मलाशय में था और शरीर के अन्य अंगों तक नहीं पहुंचा था.
दवा के दुष्प्रभाव बहुत गंभीर नहीं हैं. कुछ इस प्रकार हैं:
थकान
चकत्ते
मतली
थायराइड की समस्या
बुखार
टैकीकार्डिया
और शायद कभी-कभी-
एनाफिलेक्टिक शॉक
निमोनिया
रेक्टल कैंसर बड़ी आंत के आखिरी हिस्से में होता है और कम उम्र के लोगों (तुलनात्मक रूप से) में अधिक देखा जाता है. इसका इलाज कीमोथेरेपी, रेडीएशन और सर्जरी से किया जाता है.
इम्यूनोथेरेपी उपचार में प्रति माह लगभग 4 लाख रुपये खर्च हो सकते हैं और ज्यादातर रोगियों को छह महीने से एक वर्ष तक इलाज की आवश्यकता होती है.
दवा की महंगी कीमत पर विशेषज्ञों ने चिंता जताई और कहा कि भारत में इम्यूनोथेरेपी उपचार अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर है.
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