मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Fit Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Kerala High Court: 12 साल की बच्ची के गर्भपात को खारिज करने पर एक्सपर्ट्स चिंतित

Kerala High Court: 12 साल की बच्ची के गर्भपात को खारिज करने पर एक्सपर्ट्स चिंतित

एक्सपर्ट्स उन नाबालिगों के लिए चिंतित हैं, जो वर्तमान गर्भपात कानून के तहत सुरक्षित गर्भपात चाहते हैं.

अनुष्का राजेश
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>एक मेडिकल बोर्ड ने प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की राय दी थी.</p></div>
i

एक मेडिकल बोर्ड ने प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की राय दी थी.

(फोटो: विभूषिता सिंह/फिट हिंदी)

advertisement

केरल हाईकोर्ट ने 22 दिसंबर को एक 12 वर्षीय नाबालिग लड़की की प्रेगनेंसी को मेडिकली टर्मिनेट करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया. आरोप है कि बच्ची के अपने नाबालिग भाई से शारिरिक संबंध थे, इससे वो कारण वो गर्भवती हो गई. अब केरल हाईकोर्ट से अबॉर्शन कराने की अनुमति मांगी गई थी.

2 जनवरी को रिपोर्ट किए गए फैसले में, अदालत ने कहा कि क्योंकि भ्रूण पहले ही 34 सप्ताह का हो गया है और "पूरी तरह से विकसित" है, "इस पॉइंट पर गर्भावस्था को समाप्त करना असंभव नहीं तो उचित भी नहीं है."

कोर्ट के इस फैसले पर करीब से नजर डाले तो एक्सपर्ट उन नाबालिगों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, जो वर्तमान गर्भपात कानून के तहत सुरक्षित गर्भपात चाहते हैं. उन्होंने गर्भपात कानून को जिस तरह से लागू किया जाता है, उसपर भी चिंता जाहिर की.

मामला और उससे जुड़े सवाल, जिनके जवाब नहीं मिले

सबसे पहले जानते हैं मामला क्या है?

नाबालिग लड़की के माता-पिता ने गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति मांगी क्योंकि प्रेगनेंसी को पूरा करने से उसे फिजिकल और साइकोलॉजिकल ट्रॉमा हो सकता था. अदालत ने यह भी कहा कि माता-पिता को हाल तक प्रेगनेंसी के बारे में पता नहीं था, इसलिए वे इस बारे में जल्द कुछ नहीं कर सके.

फैसले में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न अनसुने रह गए:

  • भाई की उम्र कितनी थी?

  • उनका रिश्ता क्या है?

  • क्या यह सहमति से था?

  • क्या यह सिबलिंग एब्यूज था?

फिट से बात करते हुए, बायोएथिसिस्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील रोहिन भट्ट कहते हैं, हालांकि, ये महत्वपूर्ण सवाल हैं, इस मामले में एक और असामान्य कारक सामने आता है.

अदालत के आदेश के तहत गठित एक मेडिकल बोर्ड ने 20 दिसंबर 2023 को अदालत में एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें कहा गया था कि एक मेडिकल जांच की गई थी, और "कम उम्र और साइकोलॉजिकल ट्रॉमा को ध्यान में रखते हुए, मेडिकल बोर्ड ने प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की राय दी है."

हालांकि, अदालत ने बोर्ड को सिफारिशों को रिव्यू करने का निर्देश देते हुए कहा कि रिपोर्ट 'बहुत स्पष्ट नहीं' थी.

21 दिसंबर को एक दूसरे मेडिकल बोर्ड के रिव्यू में सर्वसम्मति से राय दी गई कि गर्भावस्था को "मां के साइकोलॉजिकल हेल्थ को गंभीर रूप से प्रभावित किए बिना" फुल टर्म तक रखा जा सकता है.

"मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर दोबारा गौर क्यों किया जा रहा है? जब पहली रिपोर्ट आई थी, तब भी वह 34 सप्ताह की गर्भवती थी, तो उनका निर्णय क्यों बदला गया?" भट्ट कहते हैं.

फिट से बात करते हुए, जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के सेंटर फॉर जस्टिस, लॉ एंड सोसाइटी (सीजेएलएस) की निदेशक और कानून की प्रोफेसर दीपिका जैन कहती हैं कि यहां समस्या यह है कि "डॉक्टरों (मेडिकल बोर्ड में) से कहा गया कि तय करें कि प्रेगनेंसी को फुल टर्म तक बनाए रखना 'मेडिकली संभव' है या नहीं,".

रिव्यू रिपोर्ट में यह भी कहा गया, "इससे शिशु के समग्र परिणाम (overall outcome) को बेहतर बनाने में भी मदद मिलेगी."

भट्ट कहते हैं, "इससे यह आभास होता है कि नाबालिग लड़की की शारीरिक और साइकोलॉजिकल वेलबिंग पर फोटल वायबिलिटी (foetal viability) को प्राथमिकता दी जा रही है."

"आप जो कह रहे हैं वह यह है कि आपको लगता है कि 12 साल की बच्ची को जन्म देने के लिए मजबूर करना ठीक है, जबकि मेडिकल ओपिनियन कह रहा है कि गर्भपात करना ठीक है."
दीपिका जैन

क्लैरिटी-बायस-मोरल स्टैंड्स की कमी: कानून का इम्प्लीमेंटेशन अक्सर गड़बड़ होता है

जैन कहते हैं, ''भारत में मेडिकल एबॉर्शन कराने में जिन लोगों को सबसे अधिक परेशानी होती है, वे किशोर हैं.''

भट्ट और जैन दोनों बताते हैं कि यह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) एक्ट की कुछ लिमिटेशंस से जुड़ा हुआ है - ये दो कानून हैं, जो नाबालिग की गर्भावस्था की समाप्ति के मामले में लागू होते हैं.

खास कर के ये दो क्लॉज:

  1. एमटीपी एक्ट 2021 के अनुसार, एक नाबालिग केवल एडल्ट गार्जियन की सहमति से ही एबॉर्शन करा सकती है.

  2. POCSO एक्ट के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को नाबालिग से जुड़े यौन संबंध के बारे में जानकारी होने पर पुलिस को इसकी सूचना देनी होगी.

हाल ही में, डॉक्टरों को इस क्लॉज से अलग किया गया था. जैन कहते हैं, "फिर भी इस पर अमल नहीं हो रहा है. इसमें कोई सरकारी आदेश नहीं है."

इसके अलावा, एमटीपी एक्ट यह भी कहता है कि 24 सप्ताह से अधिक, गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति केवल मेडिकल बोर्ड की अनुमति के अधीन होगी. जैन कहते हैं, "इस तरह के मामलों में, ज्यूडिशियल ऑथोराइजेशन ही मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण ( fundamentally flawed) है. इसे इस पूरे फ्रेमवर्क का हिस्सा नहीं होना चाहिए."

"क्योंकि इसमें कोई क्लेरिटी नहीं है और इसे अदालत की राय पर छोड़ दिया गया है, यह असंगत न्यायशास्त्र (inconsistant jurisprudence) बन गया है, जहां कुछ जज अनुमति दे रहे हैं, कुछ अनुमति नहीं दे रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यह ठीक नहीं है, और कुछ मामलों में मेडिकल बोर्ड और जज की राय के बीच टकराव होता है."
दीपिका जैन

उदाहरण के लिए, मई में इसी तरह के एक मामले में, केरल हाई कोर्ट ने एक 15 वर्षीय लड़की की मेंटल और सोशल वेलबीइंग पर पॉसिबल इंपैक्ट के आधार पर प्रेगनेंसी को खत्म करने की अनुमति देते हुए कहा था: "फैक्ट्स को ध्यान में रखते हुए, बच्चा अपने ही सिबलिंग (sibling) से पैदा हुआ है, विभिन्न सामाजिक और चिकित्सीय (medical) जटिलताएँ उत्पन्न होने की आशंका है."

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

'अपवाद आदर्श बन सकते हैं': फैसलों में चिंताजनक बदलाव का संकेत?

जिन एक्सपर्ट्स से हमने बात की, उनका कहना है कि केरल हाई कोर्ट का यह फैसला, खासकर जब इसी तरह के दूसरे हालिया (recent) मामलों के साथ देखा जाता है, तो यह एक चिंताजनक मिसाल कायम करता है.

भट्ट, 16 अक्टूबर, 2023 को पारित सुप्रीम कोर्ट के हालिया उल्लेखनीय फैसले का हवाला देते हैं, जिसने एक विवाहित महिला की 26 सप्ताह की गर्भावस्था की मेडिकल टर्मिनेशन को स्थगित कर दिया था, जिसे एक दूसरे पीठ द्वारा गर्भपात की अनुमति दी गई थी.

"तब भी जो तर्क दिया गया था वह यह था कि फीटस वायबल (foetus viable) है, जीवित रहने की अनुकूल संभावना है, और इसलिए गर्भावस्था को पूरा किया जाना चाहिए," वे आगे कहते हैं, "यह पहली बार था कि ऐसा कुछ हुआ है. "

"वे यह कहते रहते हैं कि गर्भावस्था को 'फुल टर्म' तक ले जाना बेहतर विकल्प है. लेकिन यह किसके लिए बेहतर है?" जैन कहते हैं.

"भ्रूण संबंधी विसंगति (Fetal anomaly) उन दो कारणों में से एक है, जिसकी वजह से इसकी अनुमति दी गई है. लेकिन अगर किसी विसंगति के साथ भ्रूण को समाप्त करना सुरक्षित है, तो इसे ऐसे भी सुरक्षित क्यों नहीं माना जाता है?" वह पूछती हैं.

वो आगे कहती हैं:

"ऐसे निर्णयों का एक दुष्परिणाम यह हो सकता है कि 24-सप्ताह की सीमा धीरे-धीरे कठिन सीमा बन जाएगी जिसके बाद गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, भ्रूण संबंधी विसंगति और याचिकाकर्ता के जीवन के लिए जोखिम के मामले को छोड़कर."

नाबालिग लड़की के हेल्थ के बारे में क्या?

सोशल स्टिग्मा, टैबू और साइकोलॉजिकल ट्रॉमा से परे, फिजिकल ट्रामा भी है. फिट से बात करते हुए स्त्री रोग विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे शारीरिक कारण भी हैं, जिनकी वजह से बहुत कम उम्र की लड़कियों में गर्भधारण को हतोत्साहित (discouraged) किया जाता है.

दिल्ली के सीके बिड़ला अस्पताल में प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ, सलाहकार डॉ. प्रियंका सुहाग कहती हैं, "उस स्टेज में एक बच्चा प्रेगनेंसी से गुजरने के लिए साइकोलॉजिकल और फिजिकल रूप से तैयार नहीं होता है."

फैक्ट यह है कि, इस मामले में, मेडिकल बोर्ड यह कहते हुए सिजेरियन डिलीवरी की सिफारिश करता है, "मां की कम उम्र के कारण सामान्य डिलीवरी असंभव हो सकती है," यह भी इसका एक प्रमाण है.

पहले फिट से बात करते हुए, डॉ नोज़र शेरियार, जिन्होंने भारत के मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 पर काम किया है, ने कहा कि हमारे गर्भपात कानूनों (abortion law) में सुधार करना और असुरक्षित गर्भपात की संख्या को कम करना एक महत्वपूर्ण कदम है. "15 वर्ष से कम आयु की किसी महिला की 20 वर्ष से अधिक आयु की महिला की तुलना में गर्भावस्था से मरने की आशंका पांच गुना अधिक होती है."

"20 वर्ष से कम उम्र के किसी व्यक्ति की गर्भावस्था से मृत्यु की आशंका 20 वर्ष से अधिक उम्र के किसी व्यक्ति की तुलना में दोगुनी होती है."
डॉ नोज़र शेरियार

डॉ. सुहाग अब इसे दोहराते हुए समझाते हैं:

"इस उम्र में, एक युवा किशोर का शरीर प्रेगनेंसी, डिलीवरी और पोस्टपार्टम केयर के लिए भी तैयार नहीं होता है."

"उनमें एनीमिया का खतरा अधिक होता है. इसके अलावा, डिलीवरी प्रोसेस पर भी असर पड़ता है. पोस्टपार्टम हैमरेजेज और ब्लड लॉस का खतरा होता है, जो मातृ मृत्यु का एक प्रमुख कारण है."
डॉ. प्रियंका सुहाग

डॉ. शेरियार ने यह भी बताया कि ऑटोनोमी की कमी और उचित चिकित्सा देखभाल तक पहुंच भी उन्हें जोखिम में डालती है.

"अगर गर्भावस्था को समाप्त करना सुरक्षित है, तो इसकी अनुमति दी जानी चाहिए, बजाय यह देखने के कि क्या गर्भावस्था को टर्म के खत्म होने तक रखना सुरक्षित है. ऐसा नहीं होने पर हो सकता है, अधिक लोग चिकित्सा मार्ग पर जाने से बचें और असुरक्षित बैक-एली सेविसेज का विकल्प चुनें."
दीपिका जैन

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT