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International Safe Abortion Day 2022: कुछ महीनों पहले अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी रूप से देश में अबॉर्शन के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर पूरी दुनिया में एक बहस छेड़ दी. ऐसे में अबॉर्शन से जुड़ी बातें सुर्खियों में आ गयी. मां बनना या ना बनना हर एक महिला का निजी मामला है. जहां प्रेग्नेंसी एक महिला के लिए खूबसूरत एहसास है वहीं दूसरी के लिए शारीरिक और मानसिक पीड़ा का कारण भी हो सकता है. कभी अनचाहा गर्भ तो कभी समय और पैसे की किल्लत, कभी मां न बनने की इच्छा (जिसमें कोई बुराई नहीं है) तो कभी गर्भ में पल रहे शिशु का खराब स्वास्थ्य. अबॉर्शन का कारण कुछ भी हो सकता है और उसे सही या गलत ठहराने का हक किसी को नहीं है.
आज हम इस लेख में मेडिकल अबॉर्शन से जुड़ी बातों पर एक्स्पर्ट्स से चर्चा करेंगे.
मेडिकल अबॉर्शन वह प्रक्रिया है, जिसके तहत दवाइयों द्वारा अबॉर्शन किया जाता है. जिसमें ये दवाइयां गर्भाशय की लाइनिंग को खत्म कर देती हैं, जिस कारण भ्रूण गर्भाशय से अलग होकर नष्ट हो जाता है.
अबॉर्शन पिल्स से अबॉर्शन तभी संभव है, जब 4 से 6 वीक तक की प्रेगनेंसी अल्ट्रासाउंड के जरिए यूटेरस में दिखने लगे. लेकिन कई बार महिलाएं खुद ही हिसाब लगाकर सोच लेती है कि इतने वीक हो गए हैं और दवा ले लेती है, जो कि काफी नुकसानदेह है.
अगर सही ढंग से मॉनिटरिंग नहीं हुई हो और इन अबॉर्शन पिल्स को जल्दी ले लिया गया हो तो यह काम ही नहीं करती हैं. इसलिए खुद से कैलकुलेट कर अपना इलाज न करें. डॉक्टर से मिलें और अल्ट्रासाउंड करवाएं.
अबॉर्शन पिल्स लेने से पहले प्रेगनेंसी की सही स्थिति जानने के लिए डॉक्टर से मिलें. एक अल्ट्रासाउंड किया जाता है, जिसमें गर्भ का साइज देखा जाता है और साथ में यह भी देखा जाता है कि कहीं प्रेगनेंसी फैलोपियन ट्यूब में तो नहीं है यानी कि एक्टोपिक प्रेगनेंसी या अस्थानिक गर्भावस्था तो नहीं है. साथ ही अगर महिला हार्ट प्राब्लम, डायबिटीज, अस्थमा, एनीमिया जैसी बीमारी से पीड़ित हैं, तो ये पिल्स नहीं लेने की सलाह दी जाती है.
डॉ यशिका कहती हैं, “हमारे पास अबॉर्शन के लिए 2 तरह की महिला मरीज आती हैं, एक शादीशुदा (married) और दूसरी गैर शादीशुदा (unmarried). जो 18 साल से बड़ी गैर शादीशुदा होती हैं, हम उन्हें जांच के बाद अबॉर्शन पिल्स दे देते हैं, वैसे ही जैसे शादीशुदा महिला को अबॉर्शन की इच्छा जताने पर जांच के बाद दी जाती है. मेरे पास औसतन दिन में 1 मरीज तो अबॉर्शन के लिए आती ही है, जिसमें शादीशुदा और गैर शादीशुदा की संख्या लगभग बराबर होती है.”
मेडिकल अबॉर्शन डॉक्टर से संपर्क और सुझाव के बाद ही करना चाहिए. बिना डॉक्टर की सलाह और निगरानी में किया गया मेडिकल अबॉर्शन कई बार जानलेवा भी साबित हो सकता है.
हमारे देश में ऐसा भी होता है कि लोग डॉक्टर से जांच कराए बिना सीधे केमिस्ट यानी दवा की दुकान से अबॉर्शन पिल खरीद कर खा लेते हैं. ऐसा करना खतरनाक साबित हो सकता है. कई तरह की जटिलताएं हो सकती है, यहां तक कि बात जान पर भी आ सकती है.
हमारे एक्स्पर्ट्स के अनुसार, मेडिकल अबॉर्शन अगर डॉक्टर की साल से किया जाए तो समस्या आने की आशंका न के बराबर रहती है. मेडिकल अबॉर्शन की दवा के साइड इफेक्ट के कारण किसी किसी महिला में दवा से ऐलर्जी, बुखार, कंपकपी, डायरिया, कमजोरी जैसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं.
अपने खान-पान का ध्यान रखना चाहिए, जिससे कि कमजोरी दूर हो सके. किसी-किसी को ब्लीडिंग अधिक होती है. ऐसे समय पर थोड़ा आराम करना अच्छा होगा.
सामान्य दिनचर्या बनाए रखना चाहिए.
मेडिकल अबॉर्शन के बाद डॉक्टर के बताए समय पर अल्ट्रासाउंड जरुर कराना चाहिए ताकि आगे चल कर किसी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े.
मान लें, अबॉर्शन पिल्स लेने के बाद भी अबॉर्शन नहीं हुआ, तो इसके बाद डॉक्टर की सलाह से सर्जिकल अबॉर्शन करवा लेना चाहिए.
अगर बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है और साथ में बुखार भी है, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं.
दिनचर्या में अधिक समस्या आने पर डॉक्टर से संपर्क करें.
मेडिकल अबॉर्शन के बाद गर्भनिरोध के तरीकों का इस्तेमाल जरुर करें.
बिना डॉक्टर की सलाह और जांच के मेडिकल अबॉर्शन घातक साबित हो सकता है खास कर उन महिलाओं के लिए जो हाई रिस्क मरीज हों. एनिमिया के मरीजों के लिए मेडिकल अबॉर्शन खतरनाक साबित हो सकता है. अगर कोई महिला एनिमिया से ग्रसित है, तो मेडिकल अबॉर्शन से पहले ब्लड चढ़ाना बेहद जरुरी है. ब्लड चढ़ाए बिना मेडिकल अबॉर्शन नहीं किया जा सकता है. एनिमिया ग्रसित महिला अगर बिना डॉक्टर की सलाह और जांच के अबॉर्शन पिल का सेवन कर लें तो वो उसके लिए जानलेवा साबित हो सकता है.
अबॉर्शन प्रक्रिया के दौरान अधिक मात्रा में ब्लीडिंग होने से
फैलोपियन ट्यूब में प्रेग्नन्सी होने से मेडिकल अबॉर्शन के कारण ट्यूब फटने की आशंका होती है
हार्ट प्राब्लम
डायबिटीज
अस्थमा
एनीमिया
डॉक्टरों के अनुसार, मेडिकल अबॉर्शन की सफलता दर 85-90% होती है अगर सही समय पर, डॉक्टर की सलाह से किया जाए तो. मेडिकल अबॉर्शन की असफलता बिना डॉक्टर की सलाह दवा लेने वालों में बहुत ज्यादा देखी जाती है.
डॉ अंजना सिंह बताती हैं, “हमारे देश भारत में अबॉर्शन ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी कानून (MTP - 1971) के अनुसार महिलाओं को अबॉर्शन का अधिकार प्राप्त है. फिर वो चाहे शादीशुदा हों या गैर शादीशुदा”.
संक्षेप में जानते हैं MTP कानून में आए बदलाव के बारे में.
विशेष परिस्थितियों में अबॉर्शन की अवधि को 20 हफ्ते से 24 हफ्ते कर दिया गया है . इन परिस्थितियों में रेप के द्वारा ठहरे गर्भ, इन्सेस्ट के गर्भ, शारीरिक रूप से अक्षम गर्भधारक, नाबालिग गर्भधारण, और फिर असामान्य गर्भधारण जैसे हालात को शामिल किया गया है.
एक नई बात जो जुड़ी है, वो यह है कि अगर गर्भ में पल रहे बच्चे में कोई बड़ी समस्या है, तो कोर्ट में अपील करके 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन कराने की अनुमति ली जा सकती हैं.
20 हफ्ते से कम की प्रेगनेंसी में 1 गायनकॉलिजस्ट की सलाह और देखरेख से अबॉर्शन कराया जा सकता है लेकिन अगर प्रेगनेंसी 20 हफ्ते से ज्यादा की है, तो 2 गायनकॉलिजस्ट की सलाह से ही अबॉर्शन कराया जा सकता है.
अबॉर्शन करने वाली महिला का नाम और उसकी पहचान को गुप्त रखने की बात कानून में कही गयी है.
प्रत्येक महिला को MTP ACT का पालन करते हुए अबॉर्शन का अधिकार प्राप्त है. इससे गैर कानूनी अबॉर्शन पर रोक लगने में मदद मिलेगी.
International Safe Abortion Day 2022: इंटरनेशनल सेफ अबॉर्शन डे पर हम ये लेख दोबारा प्रकाशित कर रहे हैं.
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Published: 08 Jul 2022,10:35 AM IST